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शमी पूजा विधि || Shami Puja Vidhi || Shami Vriksh Puja Kaise Kare

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शमी पूजा विधि || Shami Puja Vidhi || Shami Vriksh Puja Kaise Kare

स्कंद पुराण के अनुसार यदि जब दशमी नवमी से संयुक्त हो तो अपराजिता देवी का पूजन दशमी तिथि के दिन किया जाता हैं, यंहा हम आपको शमी पेड़ की पूजा के बारे में बताने जा रहे हैं । Online Specialist Astrologer Acharya Pandit Lalit Trivedi द्वारा बताये जा रहे शमी पूजा विधि || Shami Puja Vidhi || Shami Vriksh Puja Kaise Kare को करके आप भी विजयदशमी के दिन शमी वृक्ष की पूजा करके अपनी समस्त मनोकामना पूरी करा सकते हैं !! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !! जय श्री मेरे पूज्यनीय माता – पिता जी !! यदि आप अपनी कुंडली दिखा कर परामर्श लेना चाहते हो तो या किसी समस्या से निजात पाना चाहते हो तो कॉल करके या नीचे दिए लाइव चैट ( Live Chat ) से चैट करे साथ ही साथ यदि आप जन्मकुंडली, वर्षफल, या लाल किताब कुंडली भी बनवाने हेतु भी सम्पर्क करें Mobile & Whats app Number : 9667189678 Shami Puja Vidhi By Online Specialist Astrologer Sri Hanuman Bhakt Acharya Pandit Lalit Trivedi. 

शमी पूजा विधि || Shami Puja Vidhi || Shami Puja Kaise Kare

 

शमी पूजा विधि || Shami Puja Vidhi || Shami Vriksh Puja Kaise Kare

 

शमी पूजा मुहूर्त टाइम || Shami Puja Muhurat Time

सुबह 06:26 से 09:19 तक

दोपहर 12:12 से 01:39 तक 

सांय 04:32 से 05:58 तक 

सांय 05:58 से रात्रि 08:28 तक 

स्कंद पुराण के अनुसार जातक को स्नान आदि करके साफ़ कपड़े धारण करें। उसके बाद फिर उत्तर पूर्व दिशा में अपराह्न के समय में विजय और कल्याण की कामना से करना चाहिए ! हिन्दू धर्म के अनुसार अपराजिता पूजन के लिए दोपहर के समय उत्तर-पूर्व व् ईशान कोण की तरफ एक साफ शुद्ध भूमि और स्वच्छ स्थल पर गोबर से लीपना चाहिए ! उसके बाद फिर चंदन से आठ कोण ( चंदन, कुमकुम, पुष्प से अष्टदल कमल ) दल बनाकर संकल्प इस प्रकार से करना चाहिए – “मम सकुटुम्बस्य क्षेमसिद्धयर्थ अपराजिता पूजन करिष्ये” 

अब इसके पश्चात उस आकृति के बीच में अपराजिता देवी का आवाहन करना चाहिए और इसके दाहिने एवं बायें जया एवं विजया का आवाहन करना चाहिए एवं साथ ही क्रिया शक्ति को नमस्कार एवं उमा को नमस्कार करना चाहिए । इसके पश्चात “अपराजितायै नमः” “जयायै नमः” “विजयायै नमः” मंत्रों के साथ षोडशोपचार पूजन करना चाहिए। इसके बाद यह प्रार्थना करनी चाहिए की – ” हे देवी, यथाशक्ति मैंने श्रदा और आस्था के साथ आपकी जो पूजा की है वो अपनी रक्षा के लिए की है उसे स्वीकार कर आप अपने स्थान को जा सकती हैं। इस प्रकार अपराजिता देवी पूजन करने के बाद उत्तर-पूर्व की ओर शमी वृक्ष की तरफ जाकर Shami Puja करना चाहिए। 

शमी के पेड़ के पास जाकर सच्चे मन से प्रमाण करके गंगाजल मिश्रित शुद्ध जल चढ़ाएं। उसके बाद तेल या शुद्ध घी का दीपक जलाकर उसके नीचे अपने सभी शस्त्र रख दें। फिर पेड़ के साथ शस्त्रों को धूप, दीप, मिठाई चढ़ाकर आरती कर पंचोपचार अथवा षोडषोपचार पूजन करें। साथ ही हाथ जोड़ कर सच्चे मन से यह नीचे दिए गये Shami Puja Mantra से प्रार्थना करें।

शमी पूजा मंत्र || Shami Puja Mantra

‘शमी शम्यते पापम् शमी शत्रुविनाशिनी।

अर्जुनस्य धनुर्धारी रामस्य प्रियदर्शिनी।।

करिष्यमाणयात्राया यथाकालम् सुखम् मया।

तत्रनिर्विघ्नकर्त्रीत्वं भव श्रीरामपूजिता।।’

इसका अर्थ है हे शमी वृक्ष आप पापों को नाश और दुश्मनों को हराने वाले है। आपने ही शक्तिशाली अर्जुन का धनुश धारण किया था। साथ ही आप प्रभु श्रीराम के अतिप्रिय है। ऐसे में आज हम भी आपकी Shami Puja कर रहे हैं। हम पर कृपा कर हमें सच्च व जीत के रास्ते पर चलने की प्रेरणा दें। साथ ही हमारी जीत के रास्ते पर आने वाली सभी बांधाओं को दूर कर हमें जीत दिलाए।

यह Shami Puja Mantra प्रार्थना करने के बाद शमी वृक्ष के नीचे चावल, सुपारी व तांबे का सिक्का रखें और फिर वृक्ष की प्रदक्षिणा कर उसकी जड़ के पास मिट्टी व कुछ पत्ते घर लेकर आये। फिर थोड़ी सी मिट्टी वृक्ष के पास से लेकर उसे किसी पवित्र स्थान पर रख दें ! अगर आपको पेड़ के पास कुछ गिरी हुई पत्तियां मिलें तो उसे प्रसाद के तौर पर ग्रहण करें। साथ ही बाकी की पत्तियों को लाल रंग के कपड़े में बांधकर हमेशा के लिए अपने पास रखें। इससे आपके जीवन की परेशानियां दूर होने के साथ दुश्मनों से छुटकारा मिलेगा। इस बात का खास ध्यान रखें कि आपकी पेड़ से अपने आप गिरी पत्तियां उठानी है। खुद पेड़ से पत्तों को तोड़ने की गलती न करें।

ध्यान रखे की Shami Puja में शमी के कटे फटे हुए पत्ते और डालियों नही होनी चाहिए क्युकी इसे डालियाँ और पत्ते का पूजन निधेष होता है !  भगवान श्री राम के पूर्वज रघु ने विश्वजीत यज्ञ कर अपनी सम्पूर्ण धन-सम्पत्ति दान कर दी तथा पर्ण कुटिया में रहने लगे। इसी समय कौत्स को चोदह करोड़ स्वर्ण मुद्राओं की आवश्कता गुरु दक्षिणा के लिए पड़ी। तब रघु ने कुबेर पर आक्रमण कर दिया तब कुबेर ने शमी एवं अश्मंतक पर स्वर्ण मुद्राओं की वर्षा की थी तब से शमी व अश्मंतक की पूजा की जाती है। अश्मंतक के पत्र घर लाकर स्वर्ण मानकर लोगों में बांटने का रिवाज प्रचलित हुआ। अश्मंतक की पूजा के समय निम्न मंत्र बोलना चाहिए: अश्मंतक महावृक्ष महादोष निवारणम। इष्टानां दर्शनं देहि कुरु शत्रुविनाशम।। अर्थात हे अश्मंतक महावृक्ष तुम महादोषों का निवारण करने वाले हो, मुझे मेरे मित्रों का दर्शन कराकर शत्रु का नाश करो।

शमी वृक्ष के उपाय || Shami Vriksh Ke Upay || Shami Vriksh Ke Totke

1. भगवान श्री गणेश की को शमी दूर्वा की तरह पसन्द लगती हैं ! यह ‘वह्निवृक्ष या पत्र’ नाम से भी जाना जाता है। इसमें शिव का वास भी माना गया है, जो श्री गणेश के पिता हैं और मानसिक क्लेशों से मुक्ति देने वाले देवता हैं । नीचे बताई जा रही पूजा विधि से श्री गणेश जी की पूजा शमी से करने से जातक के पारिवारिक समस्या समाप्त हो जाती हैं व मानसिक परेशानी दूर हो जाती हैं ! 

सुबह जल्दी जग कर नित्य कर्म निवृत होकर स्नान करके साफ़ कपडे पहनकर भगवान श्री गणेश जी का ध्यान व् पूजा करें । पूजन में श्री गणेश जी को गंध, अक्षत, फूल, सिंदूर अर्पित करें ! और नीचे लिखे मंत्र का उच्चारण करते हुए शमी पत्र अर्पित करें : 

त्वत्प्रियाणि सुपुष्पाणि कोमलानि शुभानि वै । शमी दलानि हेरम्ब गृहाण गणनायक ।।

उसके बाद नैवेद्य अर्पित कर भगवान श्री गणेश जी की आरती करें !  

2. विजयादशमी की संध्या में शमी वृक्ष के नीचे दीपक जलाने से शत्रु पक्ष से युद्ध और मुक़दमो में विजय मिलती है और शत्रुओं का भय समाप्त होने के साथ आरोग्य व धन की प्राप्ति होती है ।

3. विजयादशमी के दिन शमी का पुँजन करने से घर में सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है क्युकी शमी का वृक्ष टोने-टोटके के दुष्प्रभाव और नकारात्मक प्रभाव को दूर करता है ! यदि विजयादशमी की संध्या में शमी वृक्ष के नीचे दीपक जलाने से शत्रु पक्ष से युद्ध और मुक़दमो में विजय मिलती है और शत्रुओं का भय समाप्त होने के साथ आरोग्य व धन की प्राप्ति होती है ।

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