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श्री विष्णु पुराण ध्रुव कृत भगवत स्तुति || Sri Vishnu Purana Dhruva Kruta Bhagwat Stuti || Bhagwat Stuti

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श्री विष्णु पुराण ध्रुव कृत भगवत स्तुति || Sri Vishnu Purana Dhruva Kruta Bhagwat Stuti || Bhagwat Stuti

श्रीविष्णुपुराणे ध्रुव कृत भगवत स्तुति भगवान श्री विष्णु जी को समर्पित हैं !  यह वाली भगवत स्तुति ध्रुव द्वारा रचियत हैं ! दी गई भगवत स्तुति श्री विष्णु पुराण के अंतर्गत से ली गई हैं ! श्रीविष्णुपुराणे ध्रुव कृत भगवत स्तुति आदि के बारे में बताने जा रहे हैं !! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !! यदि आप अपनी कुंडली दिखा कर परामर्श लेना चाहते हो तो या किसी समस्या से निजात पाना चाहते हो तो कॉल करके या नीचे दिए लाइव चैट ( Live Chat ) से चैट करे साथ ही साथ यदि आप जन्मकुंडली, वर्षफल, या लाल किताब कुंडली भी बनवाने हेतु भी सम्पर्क करें : 9667189678 Sri Vishnu Purana Dhruva Kruta Bhagwat Stuti By Online Specialist Astrologer Sri Hanuman Bhakt Acharya Pandit Lalit Trivedi.

श्री विष्णु पुराण ध्रुव कृत भगवत स्तुति || Sri Vishnu Purana Dhruva Kruta Bhagwat Stuti || Bhagwat Stuti

भूमिरापोऽनलो वायुः खं मनो बुद्धिरेव च।

भूतादिरादिप्रकृतिर्यस्य रूपं नतोऽस्म्यहम् ॥१॥

शुद्धः सूक्ष्मोऽखिलव्यापी प्रधानात्परतः पुमान्।

यस्य रूपं नमस्तस्मै पुरुषाय गुणाशिने ॥२॥

भूरादीनां समस्तानां गन्धादीनां च शाश्वतः।

बुध्यादीनां प्रधानस्य पुरुषस्य च यः परः॥३॥

तं सूक्ष्मभूतमात्मानमशेषजगतः पतिम् ।

प्रपद्ये शरणं शुद्धं त्वद्रूपं परमेश्वर ॥४॥

बृहत्त्वात्बृंहणत्वाच्च यद्रूपं ब्रह्मसंज्ञितम्।

तस्मै नमस्ते सर्वात्मन् योगिचिन्त्याऽविकारिणे ॥५॥

सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपात्।

सर्वव्यापी भुवः स्पर्शादत्यतिष्ठद्दशाङ्गुलम्॥६॥

यद्भूतं यच्च वै भव्यं पुरुषोत्तम तद्भवान्।

त्वत्तो विराट् स्वराट् सम्राट् त्वत्तश्चाप्यधिपूरुषः ॥७॥

अत्यरिच्यत सोऽधश्च तिर्यगूर्ध्वं च वै भुवः।

त्वत्तो विश्वमिदं जातं त्वत्तो भूतभविष्यती ॥८॥

त्वद्रूपधारिणश्चान्तर्भूतं सर्वमिदं जगत्।

त्वत्तो यज्ञः सर्वहुतः पृषदाज्यं पशुर्द्विधा ॥९॥

त्वत्तः ऋचोऽथ सामानि त्वत्तः छ्न्दांसि जज्ञिरे ।

त्वत्तो यजूंष्यजायन्त त्वत्तोऽश्वाश्चैकतो दतः ॥१०॥

गावस्त्वत्तः समुद्भूतास्त्वत्तोऽजा अवयो मृगाः ।

त्वन्मुखाद्ब्राह्मणस्त्वत्तो बाहोः क्षत्रमजायत॥११॥

वैश्यास्तवोरुजाः शूद्रास्तव पद्भ्यां समुद्गताः।

अक्ष्णोः सूर्योऽनिलः प्राणाच्चन्द्रमा मनसस्तव ॥१२॥

प्राणोन्तःसुषिराज्जातो  मुखादग्निरजायत ।

नाभितो गगनं द्यौश्च शिरसः समवर्तत ॥१३॥

दिशः श्रोत्रात्क्षितिः पद्भ्यां त्वत्तः सर्वमभूदिदम्।।१४॥

न्यग्रोधः सुमहानल्पे यथा बीजे व्यवस्थितः ।

संयमे विश्वमखिलं बीजभूते तथा त्वयि ॥१५॥

बीजादङ्कुरसम्भूतो न्यग्रोधस्तु समुत्थितः।

विस्तारं च यथा याति त्वत्तः सृष्टौ तथा जगत् ॥१६॥

यथा हि कदली नान्या त्वक्पत्रादपि दृश्यते।

एवं विश्वस्य नान्यस्त्वं त्वत्स्थायीश्वर दृश्यते ॥१७॥

ह्लादिनी सन्धिनी संवित्त्वय्येका सर्वसंस्थितौ।

ह्लादतापकरी मिश्रा त्वयि नो गुणवर्जिते ॥१८॥

पृथक्भूतैकभूताय भूतभूताय ते नमः।

प्रभूतभूतभूताय तस्मै भूतात्मने नमः ॥१९॥

व्यक्तं प्रधानपुरुषौ विराट् सम्राट् स्वराट् तथा ।

विभाव्यतेऽन्तःकरणे पुरुषेष्वक्षयो भवान् ॥२०॥

सर्वस्मिन्सर्वभूतस्त्वं सर्वः सर्वस्वरूपधृक्।

सर्वं त्वत्तस्ततश्च त्वं नमः सर्वात्मनेऽस्तु ते ॥२१॥

सर्वात्मकोऽसि सर्वेश सर्वभूतस्थितो यतः ।

कथयामि ततः किं ते सर्वं वेत्ति हृदि स्थितम् ॥२२॥

सर्वात्मन् सर्वभूतेश सर्वसत्त्वसमुद्भव।

सर्वभूतो भवान् वेत्ति सर्वसत्त्वमनोरथम् ॥२३॥

यो मे मनोरथो नाथ सफलः स त्वया कृतः।

तपश्च तप्तं सफलं यद्दृष्टोऽसि जगत्पते ॥२४॥

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