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अनंत चतुर्दशी व्रत कथा || Anant Chaturdashi Vrat Katha || Anant Chaturdashi Ki Katha

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अनंत चतुर्दशी व्रत कथा || Anant Chaturdashi Vrat Katha || Anant Chaturdashi Ki Katha

अनंत चतुर्दशी व्रत कब हैं ? || Anant Chaturdashi 2022 Date ?

अनंत चतुर्दशी व्रत भाद्रपद मास (भादों) की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन की जाती हैं। इस साल 2022 यह 9 सितम्बर, वार शुक्रवार के दिन मनाई जाएगी। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार अनंत चतुर्दशी करने से जातक को भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती हैं।

अनंत चतुर्दशी व्रत कथा || Anant Chaturdashi Vrat Katha || Anant Chaturdashi Ki Katha

अनंत चतुर्दशी व्रत कथा || Anant Chaturdashi Vrat Katha || Anant Chaturdashi Ki Katha

एक बार नैमिषारण्य तीर्थ पर पुराणों के जानने वाले श्रीसूत जी महाराज अपने शिष्यों और अन्य ऋषि मुनियों को श्रीमद्भागवत की कथा सुनाते हुये बोले- हे ऋषियों! जरासंध की मृत्यु के पश्चात्‌ महाराज युधिष्ठिर ने विशाल राजसूय यज्ञ का आयोजन किया। उस यज्ञ मे दूर –दूर से भारत वर्ष के बड़े-बड़े राजा – महाराजा सम्मिलित हुये। पाण्ड़वों द्वारा बसाया गया नगर इंद्रप्रस्थ बहुत ही सुंदर था। उसका वैभव और स्थापत्य देखते ही बनता था। पाण्ड़वों के लिये असुरों के शिल्पी मय दानव ने बहुत ही सुंदर भवन का निर्माण किया था। उसमें भवन में कई ऐसी विशेषतायें थी, जो उस भवन को देखने वालों को भ्रम में ड़ाल देती थी। उसमें जहाँ पर अग्नि प्रज्जवलित होती दिखती वहाँ सबकुछ सामान्य होता, जहाँ जल होता वहाँ स्थल होने का आभास होता और जहाँ स्थल होता वहाँ जल होने का भ्रम होता। ऐसी विशेषताओं वाले उस भवन को देखने के लिये दुर्योधन भी गया और उस भवन की भव्यता और सौंदर्य को देखकर विस्मित हो गया। 

एक स्थान पर जहाँ जल था, परंतु स्थल होने का आभास होता था, वहाँ वो जल में गिर पड़ा और उसे ऐसी अवस्था में देखकर द्रोपदी को हंसी आ गई और उसने दुर्योधन को अंधे का पुत्र अंधा कह दिया। द्रोपदी द्वारा किये इस अपमान से दुर्योधन तिलमिला उठा। उसने पाण्ड़वों और द्रोपदी को अपमानित करने और उनसे उनका राज्य छीनने की इच्छा से पाण्ड़वों को हस्तिनापुर आकर द्यूत (जुआ / चौसर) खेलने का निमंत्रण दिया और उस चौसर के खेल में कपट द्वारा पाण्ड़वों का राज्य छीन कर उन्हे दास बना लिया और महारानी द्रोपदी को जीतकर उन्हे दासी कहकर अपमानित किया और उसके चीरहरण का प्रयास किया। उस समय द्रोपदी के सम्मान की रक्षा स्वयं भगवान कृष्ण ने की थी। उसके बाद पाण्ड़वों को बारह वर्ष के वनवास और एक वर्ष के अज्ञातवास का प्रण निभाने के लिये कहा गया। एक सम्राट से महाराज युधिष्ठिर एक वनवासी बन गये थे। उनका समस्त वैभव उनके पास से चला गया था। वो अपने भाइयों और रानी द्रोपदी के साथ वन में रहने ले लिये विवश हो गये। एक बार जब भगवान श्रीकृष्ण उनसे भेंट करने के लिये आये तब उन्होने दुखी होकर उनसे अपने मन का सारा हाल कहा और उनसे उपाय पूछा कि कैसे उनकी समस्त परेशानियों का नाश हो सकता हैं? कौन सा ऐसा व्रत और पूजन है, जिसके करने से उन्हे उनका खोया हुआ मान-सम्मान और राज्य प्राप्त हो सकता हैं। Anant Chaturdashi Vrat Katha

तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हे अनंत चतुर्दशी के व्रत का विधान सुनाया। श्रीकृष्ण ने कहा, “हे धर्मराज! अनंत भगवान का व्रत एवं पूजन करने से आपकी समस्त परेशानियों और दुखों का नाश हो जायेगा और जो कुछ भी आपने खोया है वो पुन: आपको प्राप्त हो जायेगा। आपकी सभी मनोकामनायें पूर्ण होगी।“ यह कहकर भगवान श्री कृष्ण ने उन्हे अनंत चतुर्दशी के व्रत की विधि बताकर उसकी कथा सुनाई। Anant Chaturdashi Vrat Katha

अति प्राचीनकाल में सतयुग के समय में एक ब्राह्मण हुआ करता था। उसका नाम था सुमन्त। उसका विवाह वशिष्ठ गोत्र में उत्पन्न हुई भृगु की सुन्दर कन्या से हुआ। और विवाह के बाद उनके उत्तम गुणों वाली कन्या का जन्म हुआ। उन्होने उसका नाम सुशीला रखा। सुशीला की अल्पायु में उसकी माँ का स्वर्गवास हो गया। तब उसके पिता सुमंत का दूसरा विवाह कर्कशा नाम की कन्या से हुआ। कर्कशा स्वभाव से बहुत ही दुष्ट थी और वो सुशीला के प्रति द्वेषपूर्ण भाव रखती थी। कर्कशा अपने पति से भी प्रतिदिन झगड़ा किया करती थी। समय के साथ सुशीला की आयु बढती गई और वो विवाह के योग्य हो गई। उसके रूप और गुणों की चर्चा सुनकर वेदों के ज्ञाता और मुनियों में श्रेष्ठ कौंडिल्य ऋषि सुमंत के पास सुशीला से विवाह की इच्छा लेकर आयें। कौंडिल्य ऋषि ने सुमंत से उसकी पुत्री सुशीला विवाह उनके साथ करने के लिये कहा। सुमंत ने खुशी के साथ अपनी पुत्री का विवाह कौंडिल्य ऋषि के साथ कर दिया। Anant Chaturdashi Vrat Katha

अपनी पुत्री को विदा करते समय उसे कुछ देने की इच्छा से सुमंत अपनी पत्नी कर्कशा से कहा तो उसने घर के सारे पुराने सामान और बारात के खाने के लिये रास्ते के भोजन के लिये रात का बचा हुआ भोजन बाँध दिया। यह सब सुशीला ने देखा लिया। उसको यह देखकर बहुत दुख हुआ। उसे लगा कि जब उसके ससुराल वालों को यह सब पता चलेगा तो उसका कितना अपमान करेंगे? उसे उनका तिरस्कार भी सहना पड़े। यह सोचकर उसके मन में आत्महत्या का विचार आया। जब मार्ग में सब एक नदी के किनारे रूके तो सुशीला नदी में ड़ूबकर आत्महत्या करने के विचार से वहाँ पहुँच गई। वो जब वहाँ पहुँची तो उसने देखा की वहाँ पर बहुत सी स्त्रियाँ कोई पूजन कर रही हैं। सुशीला ने उन स्त्रियों से पूछा कि आप लोग यह क्या कर रही हो? तब उन्होने उसे बताया कि आज अनंत चतुर्दशी है और हम सब अनंत भगवान का व्रत एवं पूजन कर रहे हैं। इसके करने से मनुष्य की सभी मनोकामनायें पूरी होती हैं। तब सुशीला ने उनसे अनंत चतुर्दशी के व्रत एवं पूजन की विधि पूछी। तब एक स्त्री ने उसे बताया कि, “हे सुशीला! यह अनंत चतुर्दशी का व्रत है और इसमें भगवान विष्णु के अनन्त स्वरूप का व्रत और पूजन किया जाता हैं। पूजन के बाद चौदह ग्रंथि वाला धागा शुद्ध करके स्त्रियाँ अपने बाये हाथ पर और पुरूष अपने दायें हाथ पर बाँधते हैं। इस धागे को बांधते समय अन्नत भगवान से प्रार्थना करे कि, हे अनंतदेव! आप इस संसार रूपी सागर से मुझे पार लगाओ, मेरा उद्धार करों, आपको बारम्बार मेरा प्रणाम हैं।“ Anant Chaturdashi Vrat Katha

फिर सूत्र को अपने हाथ में बाँधे और अनन्त भगवान का ध्यान करें। तब सुशीला ने वही व्रत का संकल्प किया और पूजन करके अपनी बायी बाँह पर चौदह ग्रन्थि युक्त सूत्र बांधा और अनंत भगवान से प्रार्थना करी, हे प्रभु! आप तो सब जानते है। आज मेरे ससुराल वालो के समक्ष मेरी और मेरे पिता का लाज रखों। मैं आपसे यही माँगती हूँ। यह ध्यान करके जब सुशीला वापस उसी स्थान पर पहुँची तो उसके पति ने उससे पूछा कि वो कहाँ गयी थी? तो उसने कहा, कि आज अनंत चतुर्दशी हैं, और मैं नदी के किनारे अनंत भगवान का पूजन करने गयी थी। इधर उसके बारात के सब लोग आनन्द से भोजन कर रहे थे। वहाँ भोजन में तरह-तरह के पकवान थे। सबने सुशीला के परिवार का प्रशंसा करी। तब सुशीला ने अनंत भगवान का आभार किया और अपना व्रत पूर्ण किया। जब वो अपने ससुराल पहुँची तो उसे अनंत चतुर्दशी के व्रत का महात्म्य पता चला। उस व्रत के प्रभाव से उसके परिवार में सुख-समृद्धि बढ़ने लगी और धन-धान्य से उसका घर परिपूर्ण हो गया। उसका जीवन सुखमय हो गया। एक बार उसके पति के दृष्टि उसके हाथ पर बंधे सूत्र पर पड़ी तो उसने सुशीला से पूछा कि यह क्या हैं? और तुमने इसे क्यों बाँध रखा हैं? तब सुशीला ने कहा, “हे स्वामी! यह अनंत भगवान का सूत्र है। मैं अनंत भगवान का व्रत करती हूँ और उन्ही की कृपा से आज हमारे पास धन-धान्यादि सबकुछ हैं। सुशीला की ऐसे वचन सुनकर कौंडिल्य ऋषि अहंकार वश अनन्त सूत्र को तोड़कर जलती हुई अग्नि में फेंक दिया। सुशीला ने तुरंत अनन्त सूत्र को आग से निकाला और उसे दूध में डाल दिया। Anant Chaturdashi Vrat Katha

अनंत सूत्र का इस प्रकार अपमान करने से कौंडिल्य ऋषि पर अनंत भगवान रूष्ट हो गये और इसके कारण उनका समस्त ऐश्वर्य समाप्त हो गया। घर जल गया, धन चोरी हो गया, घर परिवार में कलह होने लगा और उनका स्वास्थ्य भी खराब रहने लगा। तब उन्होने अपने पत्नी सुशीला से कहा, अचानक यह क्या हो गया? हमारा सारा धन-वैभव नष्ट हो गया। तब सुशीला ने उन्हे कहा कि यह सब अनंत भगवान और उनके उस सूत्र के अपमान के कारण हुआ हैं। तब कौंडिल्य ऋषि को अपनी गलती पर पश्याताप हुआ। और उसका प्रायश्चित करने के लिये वो तप करने और अनन्त भगवान के दर्शन की इच्छा से वन में चले गये। वन में पहुँच कर कौंडिल्य ऋषि इधर-उधर घूम कर सबसे अनंत भगवान के विषय मे पूछने लगे। वन में उन्होने एक फलों से लदा पेड़ देखा, जिसमें कीड़े पड़े हुये थे। उन्होने उससे पूछा कि तुमने अनंत भगवान को देखा है क्या? तब उस वृक्ष ने मना कर दिया और कहा नही मैंनें नही देखा। यह सुनकर जब कौंडिल्य ऋषि आगे बढ़ने लगे तो वृक्ष ने कहा कि अगर तुम्हे अनंत भगवान मिले तो उनसे पूछना कि मेरे अंदर कीड़े क्यो हैं? तब कौंडिल्य ऋषि उसे हाँ कहा और आगे बढ़ गये। Anant Chaturdashi Vrat Katha

अनंत भगवान के दर्शन की इच्छा मन में लिये कौंडिल्य ऋषि वन में आगे बढ़ते रहे। वन में उन्हे घूमती गायें और बछड़े मिले तब कौंडिल्य ऋषि ने गायों से पूछा, हे गौमाता क्या तुमने अनंत भगवान को देखा हैं? तब उस गाय ने भी मना कर दिया। आगे कौंडिल्य ऋषि को एक बैल मिला उससे भी उन्होने वही प्रश्न किया तो उस बैल ने भी मना कर दिया। उससे आगे उन्हे दो पुष्कर्णियाँ मिली उनसे भी उन्होने वही सवाल किया और उन्होने भी वही उत्तर दिया जो उनसे पहले सब ने दिया था। इस प्रकार कौंडिल्य ऋषि वन में आगे बढ़ते रहे और उन्हे जो भी मिलता उससे वो यही प्रश्न पूछते कि क्या आपने अनन्त भगवान को देखा हैं? परंतु किसी से भी संतोषजनक उत्तर ना पाकर वो बहुत दुखी हुये और उन्होने अपने प्राण त्यागने का निश्चय कर लिया। जब उन्होने आत्महत्या का प्रयास किया तभी अनन्त भगवान एक ब्राह्मण के रूप में प्रकट हो गये। और कौंडिल्य ऋषि को लेकर एक गुफा के अंदर ले गये। उस गुफा के अंदर कौंडिल्य ऋषि को बहुत सुंदर लोक दिखा वहां पर चारो ओर एक दिव्य प्रकाश फैला हुआ था। Anant Chaturdashi Vrat Katha

वहाँ पर सभी लोग प्रसन्न थे। वही पर उन्हे अनंत भगवान के विश्वरूप के दर्शन हुये। एक दिव्य सिंहासन पर अनंत भगवान शंख, चक्र, गदा, पद्म लिये गरुड़ के साथ विराजमान थे। भगवान के विराट रूप को देखकर कौंडिल्य ऋषि ने उनकी स्तुति करी और अपनी गलतियों के लिये उनसे क्षमा माँगी। कौंडिल्य ऋषि के भक्ति युक्त वचन सुनकर अनंत भगवान ने उनसे कहा, हे कौंडिल्य! तुम किस इच्छा से मुझे खोज रहे थे। तुम भयमुक्त होकर मुझसे अपने मन की बात कहो। तब कौंडिल्य ऋषि ने कहा, “ हे प्रभु! मैंने अज्ञान और अहंकार के कारण आपका अपमान किया और आपके अनंत सूत्र को अग्नि में फेंक दिया। जिसके कारण मेरी सारी सम्पत्ति नष्ट हो गई। मेरे परिवार में अशांति हो गई। मेरी मान-प्रतिष्ठा धूमिल हो गई। मैं अपनी गलती की क्षमा प्रार्थना लेकर आपके दर्शनार्थ यहाँ आया हूँ। आपके दिव्य स्वरूप के दर्शन पाकर मेरा जीवन धन्य हो गया। हे प्रभु! मैं आपसे अपने अपराध के लिये क्षमा माँगता हूँ। और मेरे जीवन में सबकुछ पहले जैसा कैसे होगा इसका उपाय भी कृपा करके बताइये। तब अनंत भगवान को उसपर दया आ गई और उन्होने कहा, “है कौंडिल्य! तुम अपने घर जाकर चौदह वर्षों तक अनंत चतुर्दशी का व्रत एवं पूजन पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ करों। अपने दायें हाथ में चौदह ग्रंथि युक्त अनंतसूत्र बांधना। Anant Chaturdashi Vrat Katha

ऐसा करने से तुम्हारे सभी कष्टों का नाश हो जायेगा। तुम्हारी सभी मनोकामनायें पूरी होंगी। जीवन के सभी सुख भोगकर तुम अंत समय में सद्गति को प्राप्त करोगे। भगवान के ऐसे वचन सुनकर कौंडिल्य ऋषि को संतोष हुआ। तब उन्होने अनंत भगवान से मार्ग में मिले वृक्ष द्वारा पूछे गये प्रश्न के विषय में पूछा तब अनंत भगवान ने उसे बताया कि वो वृक्ष पूर्व जन्म में एक विद्वान ब्राह्मण था परंतु उसने विद्यार्थियों को शिक्षा ना देकर जो पाप अर्जित किया था उसी का परिणाम है कि उस फलदार वृक्ष पर फल तो आते पर कीड़ों के कारण कोई उनका उपभोग नही करता। कौंडिल्य ऋषि के मन में वन में मिले अन्य जीवों के विषय में जानने की इच्छा हुई। उन्होने अनन्त भगवान से उनके विषय में पूछा तो उन्होने बताया कि वो दोनो पुष्कर्णी पूर्वजन्म में बहने थी। उन्होने तब कोई पुण्य कर्म नही किया, ना ही किसी याचक को भिक्षा दी ना ही कोई धर्म का कार्य किया। इसलिये परस्पर लहरे उनसे आकर टकराती है परन्तु जल वहाँ नही रूकता। अनन्त भगवान ने आगे कहा कि वो गाय पृथ्वी है, वह बैल धर्म है, गधा क्रोध है, वह हाथी अहंकार है, वो गुफा संसार है, और मैं अनन्त हूँ। फिर कौंडिल्य ऋषि ने अपने घर आकर अपनी स्त्री के साथ चौदह वर्ष तक अनन्त चतुर्दशी के व्रत का पालन किया। और अनन्त भगवान की कृपा से जीवन के समस्त सुख भोगकर अंत में स्वर्ग को चला गया। Anant Chaturdashi Vrat Katha

फिर भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर से कहा कि आप भी इस व्रत को करों। जैसे कौंडिल्य ऋषि और सुशीला की सभी मनोकामनायें अनन्त भगवान ने पूर्ण करी थी उसी प्रकार तुम्हारी भी सभी मनोकामनायें पूर्ण होगी। जो कुछ भी आपने ने खोया है, वो सब आपको पुन: प्राप्त होगा। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा, “हे धर्मराज युधिष्ठिर! अनंत चतुर्दशी का जो व्रत मैंने तुम्हे बताया है, उस व्रत को करने से मनुष्य अपने सभी पापों से मुक्त होकर स्वर्गलोक को जाता हैं। भगवान श्रीकृष्ण के कहे अनुसार धर्मराज युधिष्ठिर ने भी अनंत भगवान का व्रत और पूजन किया। व्रत के प्रभाव से उनके सभी मनोरथ सिद्ध हुये और महाभारत के युद्ध में जीतकर उन्हे उनका राज्य और यश पुन: प्राप्त हुआ। और मरणोपरांत पांड़वों को स्वर्ग प्राप्त हुआ। Anant Chaturdashi Vrat Katha

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