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श्री सूक्त || Sri Suktam Path || Sri Sukta || Shree Suktam || Shree Sukta

श्री सूक्त पाठ | Shri Suktam Path | Sri Suktam Ke Fayde | Sri Suktam Ke Labh | Sri Suktam Benefits | Sri Suktam Pdf | Sri Suktam Mp3 Download | Sri Suktam Lyrics | श्री सूक्त || Sri Suktam Path || Sri Sukta || Shree Suktam || Shree Sukta : श्री सूक्त स्तोत्र को श्री सुक्ता के नाम से भी जाना जाता है ! Sri Suktam पूर्ण रूप से संस्कृत भाषा में लिखा हुआ हैं ! Sri Suktam स्तोत्र का पाठ करने माँ श्री लक्ष्मी जी का आवाहन किया जाता हैं ! और आप सब जानते है की माँ श्री लक्ष्मी जी धन की देवी हैं ! जो भी व्यक्ति नियमित रूप से Sri Suktam स्तोत्र का पाठ करता हैं ! उसके जीवन में धन और समृद्धि के सुखी की कमी नही होती हैं ! और मान श्री लक्ष्मी जी का आशीर्वाद उस पर सदैव बना रहता हैं ! Sri Suktam का पाठ करने से माँ लक्ष्मी जी धन, स्वास्थ्य, भाग्य और शांति प्रदान करती हैं !! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !! यदि आप अपनी कुंडली दिखा कर परामर्श लेना चाहते हो तो या किसी समस्या से निजात पाना चाहते हो तो कॉल करके या नीचे दिए लाइव चैट ( Live Chat ) से चैट करे साथ ही साथ यदि आप जन्मकुंडली, वर्षफल, या लाल किताब कुंडली भी बनवाने हेतु भी सम्पर्क करें : 9667189678 Sri Suktam By Online Specialist Astrologer Sri Hanuman Bhakt Acharya Pandit Lalit Trivedi.

श्री सूक्त || Sri Suktam Path || Shree Suktam

श्री सूक्त || Sri Suktam || Sri Sukta || Shree Suktam || Shree Sukta

विनियोगः

ॐ श्री हिरण्यवर्णां इति पञ्चदशर्चस्य श्री सूक्तस्य आद्यमन्त्रस्य लक्ष्मी ऋषिः चतुर्दशमंत्राणां आनंदकर्दमचिक्लीतेईंदिरासुता ऋषयः जात वेदोग्नि दुर्गा श्री महालक्ष्मी देवता आद्यानां तिसृणां अनुष्टुप छन्दः चतुर्थ मंत्रस्य बृहति छन्दः व्यंजनानि बीजानि स्पर्श शक्तयः बिन्दवः कीलकं मम अलक्ष्मी परिहार पूर्वकं दशविधलक्ष्मी प्राप्त्यर्थं यथा शक्ति श्रीसूक्ते पाठे ( जपे-होमे ) विनियोगः |

इसके पश्चात् श्रीसूक्त पाठ के पूर्व न्यास करे |

ॐ नमो भगवत्यै महालक्ष्म्यै हिरण्यवर्णायै अङ्गुष्ठाभ्यां नमः | बोलकर अंगूठे को स्पर्श करे |

ॐ नमो भगवत्यै महालक्ष्म्यै हिरण्यै तर्जनीभ्यां नमः | बोलकर तर्जनी को स्पर्श करे |

ॐ नमो भगवते महालक्ष्म्यै सुवर्णरजतस्त्रजायै मध्यमाभ्यां नमः | बोलकर मध्यमा ऊँगली को स्पर्श करे |

ॐ नमो भगवत्यै महालक्ष्म्यै चन्द्रायै अनामिकाभ्यां नमः | बोलकर अनामिका ऊँगली को स्पर्श करे |

ॐ नमो भगवत्यै महालक्ष्म्यै हिरण्मयै कनिष्ठिकाभ्यां नमः | बोलकर कनिष्ठिका ऊँगली को स्पर्श करे |

ॐ नमो भगवत्यै महालक्ष्म्यै सुवर्ण रजतस्त्रजायै शिखायै नमः | बोलकर शिखा को स्पर्श करे |

ॐ नमो भगवत्यै महालक्ष्म्यै चन्द्रायै कवचाय हुम् | बोलकर दोनों हाथो से परस्पर कवच बनाये |

ॐ नमो भगवत्यै महालक्ष्म्यै हिरण्मयै नेत्रत्रयाय वौषट | बोलकर दोनों आँखों को स्पर्श करे |

ॐ नमो भगवत्यै महालक्ष्म्यै अस्त्राय फट | बोलकर सिर के ऊपर से तीन बार हाथ घुमाकर तीन बार ताली बजाये |

ॐ भूर्भुवः स्वरोमिति दिग्बन्धः | बोलकर दिशाओ को बाँध ले |

महालक्ष्मी ध्यान

ॐ अरुणकमल संस्था तद्रजः पुञ्जवर्णां, करकमल धृतेष्ठाभीति युग्माम्बुजा च |

मणिमुकुटविचित्रालङ्कृता कल्पजातैः भवतु भुवनमाता सन्ततं श्रीं श्रिये नः ||

ध्यान करने के बाद महालक्ष्मी की मानसोपचार पूजा करे |

ॐ लं पृथिव्यात्मकं गन्धं परिकल्पयामि |

ॐ हं आकाशात्मकं पुष्पं परिकल्पयामि |

ॐ यं वाय्वात्मकं धूपं परिकल्पयामि |

ॐ रं तेजात्मकं दीपं परिकल्पयामि |

ॐ शं सोमात्मकं ताम्बूलादि सर्वोपचारान परिकल्पयामि |

ॐ छत्रं चामरं मुकुट पादुके परिकल्पयामि |

यह मानसिकपूजा करने के बाद श्रीसूक्त का आरम्भ करे |

श्री सूक्त || Sri Suktam

ॐ हिरण्यवर्णाम हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम्।

चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह॥१॥

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।

यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम्॥२॥

अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रबोधिनीम्।

श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मादेवी जुषताम्॥३॥

कांसोस्मितां हिरण्यप्राकारां आद्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्।

पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वयेश्रियम्॥४॥

चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियंलोके देव जुष्टामुदाराम्।

तां पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे॥५॥

आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तववृक्षोथ बिल्व:।

तस्य फलानि तपसानुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मी:॥६॥

उपैतु मां देवसख: कीर्तिश्चमणिना सह।

प्रादुर्भुतो सुराष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृध्दिं ददातु मे॥७॥

क्षुत्पपासामलां जेष्ठां अलक्ष्मीं नाशयाम्यहम्।

अभूतिमसमृध्दिं च सर्वानिर्णुद मे गृहात॥८॥

गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम्।

ईश्वरिं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम्॥९॥

मनस: काममाकूतिं वाच: सत्यमशीमहि।

पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्री: श्रेयतां यश:॥१०॥

कर्दमेनप्रजाभूता मयिसंभवकर्दम।

श्रियं वासयमेकुले मातरं पद्ममालिनीम्॥११॥

आप स्रजन्तु सिग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे।

नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले॥१२॥

आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टि पिङ्गलां पद्ममालिनीम्।

चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह॥१३॥

आर्द्रां य: करिणीं यष्टीं सुवर्णां हेममालिनीम्।

सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मी जातवेदो म आवह॥१४॥

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।

यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योश्वान् विन्देयं पुरुषानहम्॥१५॥

य: शुचि: प्रयतोभूत्वा जुहुयाादाज्यमन्वहम्।

सूक्तं पञ्चदशर्च च श्रीकाम: सततं जपेत्॥१६॥

पद्मानने पद्मउरू पद्माक्षि पद्मसंभवे।

तन्मे भजसि पद्मक्षि येन सौख्यं लभाम्यहम्॥१७॥

अश्वदायै गोदायै धनदायै महाधने।

धनं मे लभतां देवि सर्वकामांश्च देहि मे॥१८॥

पद्मानने पद्मविपत्रे पद्मप्रिये पद्मदलायताक्षि।

विश्वप्रिये विष्णुमनोनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि संनिधस्त्वं॥१९॥

पुत्रपौत्रं धनंधान्यं हस्ताश्वादिगवेरथम्।

प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु मे॥२०॥

धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्योधनं वसु।

धनमिन्द्रो बृहस्पतिर्वरूणं धनमस्तु मे॥२१॥

वैनतेय सोमं पिब सोमं पिबतु वृतहा।

सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु सोमिन:॥२२॥

न क्रोधो न च मात्सर्य न लोभो नाशुभामति:।

भवन्ति कृतपुण्यानां भक्तानां श्रीसूक्तं जपेत्॥२३॥

सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांसुकगन्धमाल्यशोभे।

भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीदमह्यम्॥२४॥

विष्णुपत्नीं क्षमां देवी माधवी माधवप्रियाम्।

लक्ष्मीं प्रियसखीं देवीं नमाम्यच्युतवल्लभाम्॥२५॥

महालक्ष्मी च विद्महे विष्णुपत्नी च धीमहि।

तन्नो लक्ष्मी: प्रचोदयात्॥२६॥

श्रीवर्चस्वमायुष्यमारोग्यमाविधाच्छोभमानं महीयते।

धान्यं धनं पशुं बहुपुत्रलाभं शतसंवत्सरं दीर्घमायु:॥२७॥

॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

॥ इति श्रीसूक्तं समाप्तम ॥ Sri Suktam Sampurn॥

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