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सोम प्रदोष व्रत कथा || Som Pradosh Vrat Katha || Som Trayodashi Vrat Katha
सोम प्रदोष व्रत कथा का महत्व || Som Pradosh Vrat Katha Ka Mahatva
सोम त्रयोदशी अर्थात् सोम प्रदोष का व्रत करने वाला मनुष्य सदा सुखी रहता है। उसके सम्पूर्ण पापों का नाश इस व्रत से हो जाता है। इस व्रत के करने से सुहागन नारियों का सुहाग सदा अटल रहता है, बंदी कारागार से छूट जाता है। जो स्त्री पुरुष जिस कामना को लेकर इस व्रत को करते हैं, उनकी सभी कामनाएं कैलाशपति शंकर जी पूरी करते हैं। सूत जी कहते हैं- त्रयोदशी व्रत करने वाले को सौ गऊ दान का फल प्राप्त होता है। इस व्रत को जो विधि विधान और तन, मन, धन से करता है उसके सभी दु:ख दूर हो जाते हैं।
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सूत जी बताने लगे- “सोम त्रयोदशी प्रदोष व्रत से शिव-पार्वती प्रसन्न होते हैं । व्रती के समस्त मनोरथ पूर्ण होते हैं ।”
सोम प्रदोष व्रत कथा के लाभ / फायदे || Benefits of Som Pradosh Vrat
- सोम प्रदोष व्रत करने से साधक के सम्पूर्ण पाप नष्ट हो जाते हैं !
- इस व्रत को करने से साधक के सभी दुःख दूर हो जाते हैं !
- जिस भी जातक पर झूठा इल्जाम के कारण कारागार में बंद हो तो इस सोम प्रदोष व्रत करने से लाभ मिलता हैं !
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सोम प्रदोष व्रत कथा || Som Pradosh Vrat Katha || Som Trayodashi Vrat Katha
एक नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी । उसके पति का स्वर्गवास हो गया था । उसका अब कोई आश्रयदाता नहीं था, इसलिए प्रातः होते ही वह अपने पुत्र के साथ भीख मांगने निकल पड़ती थी । भिक्षाटन से ही वह स्वयं व पुत्र का पेट पालती थी। Som Pradosh Vrat Katha
एक दिन ब्राह्मणी घर लौट रही थी तो उसे एक लड़का घायल अवस्था में कराहता हुआ मिला । ब्राह्मणी दयावश उसे अपने घर ले आई । वह लड़का विदर्भ का राजकुमार था । शत्रु सैनिकों ने उसके राज्य पर आक्रमण कर उसके पिता को बन्दी बना लिया था और राज्य पर नियंत्रण कर लिया था, इसलिए वह मारा-मारा फिर रहा था । राजकुमार ब्राह्मण-पुत्र के साथ ब्राह्मणी के घर रहने लगा । एक दिन अंशुमति नामक एक गंधर्व कन्या ने राजकुमार को देखा और उस पर मोहित हो गई । अगले दिन अंशुमति अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलाने लाई । उन्हें भी राजकुमार भा गया । कुछ दिनों बाद अंशुमति के माता-पिता को शंकर भगवान ने स्वप्न में आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमति का विवाह कर दिया जाए । उन्होंने वैसा ही किया ।
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ब्राह्मणी प्रदोष व्रत करती थी । उसके व्रत के प्रभाव और गंधर्वराज की सेना की सहायता से राजकुमार ने विदर्भ से शत्रुओं को खदेड़ दिया और पिता के राज्य को पुनः प्राप्त कर आनन्दपूर्वक रहने लगा । राजकुमार ने ब्राह्मण-पुत्र को अपना प्रधानमंत्री बनाया । ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत के माहात्म्य से जैसे राजकुमार और ब्राह्मण-पुत्र के दिन फिरे, वैसे ही शंकर भगवान अपने दुसरे भक्तों के दिन भी फेरते हैं।” Som Pradosh Vrat Katha
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