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शादी के 7 वचन || Shadi Ke 7 Vachan || Vivah Ke Saat Vachan

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शादी के 7 वचन || Shadi Ke 7 Vachan || Vivah Ke Saat Vachan

आजकल विवाह / शादी के फेरो में इतना हल्कापन आधुनिकता के चमक में हम हमारे वैदिक रीति रिवाजों को छोड़ रहे है जो की अत्यंत चिंतनीय विषय है | विवाह के समय पति-पत्नी अग्नि को साक्षी मानकर एक-दूसरे को सात वचन देते हैं जिनका दांपत्य जीवन में काफी महत्व होता है। आज हम उन्हीं वचनों को अर्थ सही बताने जा रहे हैं जिसे आप अपने वैदिक रीति रिवाजों का महत्व आसानी से जान सको | 

शादी के 7 वचन || Shadi Ke 7 Vachan || Vivah Ke Saat Vachan

शादी के 1 वचन || Shadi Ke Pahala Vachan || Vivah Ke Pahala Vachan

तीर्थव्रतोद्यापन यज्ञकर्म मया सहैव प्रियवयं कुर्या: |

वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति वाक्यं प्रथमं कुमारी ||

अर्थात :- यहां कन्या वर से कहती है कि यदि आप कभी तीर्थयात्रा को जाओ तो मुझे भी अपने संग लेकर जाना। कोई व्रत-उपवास अथवा अन्य धर्म कार्य आप करें तो आज की भांति ही मुझे अपने वाम भाग में अवश्य स्थान दें। यदि आप इसे स्वीकार करते हैं तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूं।

किसी भी प्रकार के धार्मिक कृत्यों की पूर्णता हेतु पति के साथ पत्नी का होना अनिवार्य माना गया है। पत्नी द्वारा इस वचन के माध्यम से धार्मिक कार्यों में पत्नी की सहभा‍गिता व महत्व को स्पष्ट किया गया है।

शादी के 2 वचन || Shadi Ke Dusra Vachan || Vivah Ke Dusra Vachan

पुज्यो यथा स्वौ पितरौ ममापि तथेशभक्तो निजकर्म कुर्या: |

वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं द्वितीयम ||

अर्थात :- कन्या वर से दूसरा वचन मांगती है कि जिस प्रकार आप अपने माता-पिता का सम्मान करते हैं, उसी प्रकार मेरे माता-पिता का भी सम्मान करें तथा कुटुम्ब की मर्यादा के अनुसार धर्मानुष्ठान करते हुए ईश्वर भक्त बने रहें तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूं।

यहां इस वचन के द्वारा कन्या की दूरदृष्टि का आभास होता है। उपरोक्त वचन को ध्यान में रखते हूए वर को अपने ससुराल पक्ष के साथ सदव्यवहार के लिए अवश्य विचार करना चाहिए।

शादी के 3 वचन || Shadi Ke Tisra Vachan || Vivah Ke Tisra Vachan

जीवनम अवस्थात्रये पालनां कुर्यात |

वामांगंयामितदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं तृतीयं ||

अर्थात :- तीसरे वचन में कन्या कहती है कि आप मुझे ये वचन दें कि आप जीवन की तीनों अवस्था- युवावस्था, प्रौढ़ावस्था, वृद्धावस्था में मेरा पालन करते रहेंगे, तो ही मैं आपके वामांग में आने को तैयार हूं। 

शादी के 4 वचन || Shadi Ke Choutha Vachan || Vivah Ke Choutha Vachan

कुटुम्बसंपालनसर्वकार्य कर्तु प्रतिज्ञां यदि कातं कुर्या: |

वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं चतुर्थ: ||

अर्थात :- कन्या चौथा वचन ये मांगती है कि अब तक आप घर-परिवार की चिंता से पूर्णत: मुक्त थे। अब जब कि आप विवाह बंधन में बंधने जा रहे हैं तो भविष्य में परिवार की समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति का दा‍यित्व आपके कंधों पर है। यदि आप इस भार को वहन करने की प्रतिज्ञा करें तो ही मैं आपके वामांग में आ सकती हूं।

इस वचन में कन्या वर को भविष्य में उसके उत्तरदायित्वों के प्रति ध्यान आकृष्ट करती है। इस वचन द्वारा यह भी स्पष्ट किया गया है कि पुत्र का विवाह तभी करना चाहिए, जब वो अपने पैरों पर खड़ा हो, पर्याप्त मात्रा में धनार्जन करने लगे।

शादी के 5 वचन || Shadi Ke Panchva Vachan || Vivah Ke Panchva Vachan

स्वसद्यकार्ये व्यहारकर्मण्ये व्यये मामापि मन्‍त्रयेथा |

वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: पंचमत्र कन्या ||

अर्थात :- इस वचन में कन्या कहती जो कहती है, वो आज के परिप्रेक्ष्य में अत्यंत महत्व रखता है। वो कहती है कि अपने घर के कार्यों में, लेन-देन अथवा अन्य किसी हेतु खर्च करते समय यदि आप मेरी भी मंत्रणा लिया करें तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूं।

यह वचन पूरी तरह से पत्नी के अधिकारों को रेखांकित करता है। अब यदि किसी भी कार्य को करने से पूर्व पत्नी से मंत्रणा कर ली जाए तो इससे पत्नी का सम्मान तो बढ़ता ही है, साथ-साथ अपने अधिकारों के प्रति संतुष्टि का भी आभास होता है।

शादी के 6 वचन || Shadi Ke Chhatha Vachan || Vivah Ke Chhatha Vachan

न मेपमानमं सविधे सखीना द्यूतं न वा दुर्व्यसनं भंजश्वेत |

वामाम्गमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं च षष्ठम ||

अर्थात :- कन्या कहती है कि यदि मैं अपनी सखियों अथवा अन्य स्‍त्रियों के बीच बैठी हूं, तब आप वहां सबके सम्मुख किसी भी कारण से मेरा अपमान नहीं करेंगे। यदि आप जुआ अथवा अन्य किसी भी प्रकार के दुर्व्यसन से अपने आपको दूर रखें तो ही मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूं।

शादी के 7 वचन || Shadi Ke Satawan Vachan || Vivah Ke Satawan Vachan

परस्त्रियं मातूसमां समीक्ष्य स्नेहं सदा चेन्मयि कान्त कूर्या |

वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: सप्तमत्र कन्या ||

अर्थात :- अंतिम वचन के रूप में कन्या ये वर मांगती है कि आप पराई स्त्रियों को माता के समान समझेंगे और पति-पत्नी के आपसी प्रेम के मध्य अन्य किसी को भागीदार न बनाएंगे। यदि आप यह वचन मुझे दें तो ही मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूं।

इस वचन के माध्यम से कन्या अपने भविष्य को सुरक्षित रखने का प्रयास करती है।

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