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परत्वादि पञ्चकम् || Paratwadi Panchakam

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श्री परत्वादि पञ्चकम् || Sri Paratwadi Panchakam

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श्री परत्वादि पञ्चकम् || Sri Paratwadi Panchakam

वन्देऽहं वरदार्यं तं वत्साभिजनभूषणम्।

भाष्यामृतप्रदानाद्यः सञ्जीवयति मामपि॥

परवासुदेवस्तुतिः

उद्यद्भानुसहस्रभास्वरपरव्योमास्पदं निर्मल-,

ज्ञानानन्दघनस्वरूपममलज्ञानादिभिष्षड्गुणै- ।

र्जुष्टं सूरिजनाधिपं धृतरथाङ्गाब्जं सुभूषोज्ज्वलं,

श्रीभूसेव्यमनन्तभोगिनिलयं श्रीवासुदेवं भजे ॥१॥

व्यूहवासुदेवस्तुतिः

आमोदे भुवने प्रमोद उत संमोदे च सङ्कर्षणं,

प्रद्युम्नं च तथाऽनिरुद्धमपि तान् सृष्टिस्थिती चाप्ययम्।

कुर्वाणान् मतिमुख्यषड्गुणवरैः युक्तांस्त्रियुग्मात्मकैः,

व्यूहाधिष्ठितवासुदेवमपि तं क्षीराब्धिनाथं भजे ॥२॥

विभवस्तुतिः

वेदान्वेषण मन्दराद्रिभरण क्ष्मोद्धारण स्वाश्रित,

प्रह्लादावन भूमिभिक्षण जगद्विक्रान्तयो यत्क्रियाः।

दुष्टक्षत्रनिबर्हणं दशमुखाद्युन्मूलनं कर्षणं,

कालिन्द्या अतिपाप कंसनिधनं यत्क्रीडितं तं नुमः ॥३॥

अन्तर्यामिस्तुतिः

यो देवादि चतुविधेष्ट जनिषु ब्रह्माण्डकोशान्तरे,

संभक्तेषु  चराचरेषु निवसन्नास्ते सदान्तर्बहिः।

विष्णुं तं निखिलेष्वणुष्वणुतरं भूयस्सु भूयस्तरं,

स्वाङ्गुष्ठप्रमितं च योगिहृदयेष्वासीनमीशं भजे ॥४॥

अर्चास्तुतिः

श्रीरङ्गस्थल वेङ्कटाद्रि करिगिर्यादौ शतेऽष्टोत्तरे,

स्थाने ग्रामनिकेतनेषु च सदा सान्निध्यमासेदुषे ।

अर्चारूपिणमर्चकाभिमतितः स्वीकुर्वते विग्रहं,

पूजां चाखिलवाञ्छितान् वितरते श्रीशाय तस्मै नमः ॥५॥

फलश्रुतिः

प्रातर्विष्णोः परत्वादि पञ्चकस्तुतिमुत्तमाम् ।

पठन् प्राप्नोति भगवद्भक्तिं वरद निर्मिताम् ॥६॥

॥ इति श्रीपरत्वादिपञ्चकं समाप्तम् ॥

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