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मंत्र राजपद स्तोत्र || Mantra Raja Pada Stotram || Mantra Raja Pada Stotra

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श्री मंत्र राजपद स्तोत्र || Sri Mantra Raja Pada Stotram || Mantra Raja Pada Stotra

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श्री मंत्र राजपद स्तोत्र || Sri Mantra Raja Pada Stotram || Mantra Raja Pada Stotra

ईश्वर उवाच-

वृत्तोत्फुल्लविशालाक्षं विपक्षक्षयदीक्षितम्।

निनादत्रस्तविश्वाण्डं विष्णुमुग्रं नमाम्यहम् ॥१॥

सर्वैरवध्यतां प्राप्तं सबलौघं दितेः सुतम्।

नखाग्रैः शकलीचक्रे यस्तं वीरं नमाम्यहम् ॥२॥

पादावष्टब्धपातालं मूर्धाविष्टत्रिविष्टपम्।

भुजप्रविष्टाष्टदिशं महाविष्णुं नमाम्यहम्॥३॥

ज्योतींष्यर्केन्दुनक्षत्रज्वलनादीन्यनुक्रमात्।

ज्वलन्ति तेजसा यस्य तं ज्वलन्तं नमाम्यहम् ॥४॥

सर्वेन्द्रियैरपि विना सर्वं सर्वत्र सर्वदा।

यो जानाति नमाम्याद्यं तमहं सर्वतोमुखम् ॥५॥

नरवत् सिंहवच्चैव यस्य रूपं महात्मनः।

महासटं महादंष्ट्रं तं नृसिंहं नमाम्यहम् ॥६॥

यन्नामस्मरणाद्भीताः भूतवेताळराक्षसाः।

रोगाद्याश्च प्रणश्यन्ति भीषणं तं नमाम्यहम् ॥७॥

सर्वोऽपि यं समाश्रित्य सकलं भद्रमश्नुते।

श्रिया च भद्रया जुष्टो यस्तं भद्रं नमाम्यहम् ॥८॥

साक्षात् स्वकाले संप्राप्तं मृत्युं शत्रुगणानपि।

भक्तानां नाशयेद्यस्तु मृत्युमृत्युं नमाम्यहम् ॥९॥

नमस्कारात्मकं यस्मै विधायाऽऽत्मनिवेदनम्।

त्यक्तदुःखोऽखिलान् कामान् अश्नुते तं नमाम्यहम् ॥१०॥

दासभूतास्स्वतस्सर्वे ह्यात्मानः परमात्मनः।

अतोऽहमपि ते दासः इति मत्वा नमाम्यहम् ॥११॥

शङ्करेणादरात्प्रोक्तं पदानां तव निर्णयम्।

त्रिसन्ध्यं यः पठेत्तस्य श्रीर्विद्याऽऽयुश्च वर्धते ॥१२॥

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