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हनुमान अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् || Hanuman Ashtottara Shatanama Stotra

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श्री हनुमान अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् || Shri Hanuman Ashtottara Shatanama Stotra

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श्री हनुमान अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् || Shri Hanuman Ashtottara Shatanama Stotra

(श्रीपद्मोत्तरखण्डतः)

नारद उवाच ।

सर्वशास्त्रार्थतत्त्वज्ञ सर्वदेवनमस्कृत ।

यत्त्वया कथितं पूर्वं रामचन्द्रेण धीमता ॥ १॥

स्तोत्रं समस्तपापघ्नं श्रुत्वा धन्योऽस्मि पद्मज ।

इदानीं श्रोतुमिच्छामि लोकानां हितकाम्यया ॥ २॥

वायोरंशावतरणमाहात्म्यं सर्वकामदम् ।

वद मे विस्तराद्ब्रह्मन् देवगुह्यमनुत्तमम् ॥ ३॥

इति पृष्टो नारदेन ब्रह्मा लोकपितामहः ।

नमस्कृत्य जगन्नाथं लक्ष्मीकान्तं परात्परम् ॥ ४॥

प्रोवाच वायोर्माहात्म्यं नारदाय महात्मने ।

यच्छ्रुत्वा सर्वसौभाग्यं प्राप्नुवन्ति जनाः सदा ॥ ५॥

ब्रह्मोवाच । इदं रहस्यं पापघ्नं वायोरष्टोत्तरं शतम् ।

विष्णुना लोकनाथेन रमायै कथितं पुरा ॥ ६॥

रमा मामाह यद्दिव्यं तत्ते वक्ष्यामि नारद ।

इदं पवित्रं पापघ्नं श्रद्धया हृदि धारय ॥ ७॥

हनुमानञ्जनापुत्रो वायुसूनुर्महाबलः ।

रामदूतो हरिश्रेष्ठः सूरी केसरीनन्दनः ॥

सूर्यश्रेष्ठो महाकायो वज्री वज्रप्रहारवान् ।

महासत्त्वो महारूपो ब्रह्मण्यो ब्राह्मणप्रियः ॥ ९॥

मुख्यप्राणो महाभीमः पूर्णप्रज्ञो महागुरुः ।

ब्रह्मचारी वृक्षधरः पुण्यः श्रीरामकिङ्करः ॥ १०॥

सीताशोकविनाशी च सिंहिकाप्राणनाशकः ।

मैनाकगर्वभङ्गश्च छायाग्रहनिवारकः ॥ ११॥

लङ्कामोक्षप्रदो देवः सीतामार्गणतत्परः ।

रामाङ्गुलिप्रदाता च सीताहर्षविवर्धनः ॥ १२॥

महारूपधरो दिव्यो ह्यशोकवननाशकः ।

मन्त्रिपुत्रहरो वीरः पञ्चसेनाग्रमर्दनः ॥ १३॥

दशकण्ठसुतघ्नश्च ब्रह्मास्त्रवशगोऽव्ययः ।

दशास्यसल्लापपरो लङ्कापुरविदाहकः ॥ १४॥

तीर्णाब्धिः कपिराजश्च कपियूथप्ररञ्जकः ।

चूडामणिप्रदाता च श्रीवश्यः प्रियदर्शकः ॥ १५॥

कौपीनकुण्डलधरः कनकाङ्गदभूषणः ।

सर्वशास्त्रसुसम्पन्नः सर्वज्ञो ज्ञानदोत्तमः ॥ १६॥

मुख्यप्राणो महावेगः शब्दशास्त्रविशारदः ।

बुद्धिमान् सर्वलोकेशः सुरेशो लोकरञ्जकः ॥ १७॥

लोकनाथो महादर्पः सर्वभूतभयापहः ।

रामवाहनरूपश्च सञ्जीवाचलभेदकः ॥ १८॥

कपीनां प्राणदाता च लक्ष्मणप्राणरक्षकः ।

रामपादसमीपस्थो लोहितास्यो महाहनुः ॥ १९॥

रामसन्देशकर्ता च भरतानन्दवर्धनः ।

रामाभिषेकलोलश्च रामकार्यधुरन्धरः ॥ २०॥

कुन्तीगर्भसमुत्पन्नो भीमो भीमपराक्रमः ।

लाक्षागृहाद्विनिर्मुक्तो हिडिम्बासुरमर्दनः ॥ २१॥

धर्मानुजः पाण्डुपुत्रो धनञ्जयसहायवान् ।

बकासुरवधोद्युक्तस्तद्ग्रामपरिरक्षकः ॥ २२॥

भिक्षाहाररतो नित्यं कुलालगृहमध्यगः ।

पाञ्चाल्युद्वाहसञ्जातसम्मोदो बहुकान्तिमान् ॥ २३॥

विराटनगरे गूढचरः कीचकमर्दनः ।

दुर्योधननिहन्ता च जरासन्धविमर्दनः ॥ २४॥

सौगन्धिकापहर्ता च द्रौपदीप्राणवल्लभः ।

पूर्णबोधो व्यासशिष्यो यतिरूपो महामतिः ॥ २५॥

दुर्वादिगजसिंहस्य तर्कशास्त्रस्य खण्डकः ।

बौद्धागमविभेत्ता च साङ्ख्यशास्त्रस्य दूषकः ॥ २६॥

द्वैतशास्त्रप्रणेता च वेदव्यासमतानुगः ।

पूर्णानन्दः पूर्णसत्वः पूर्णवैराग्यसागरः ॥ २७॥

इति श्रुत्वा नारदस्तु वायोश्चरितमद्भुतम् ।

मुदा परमया युक्तः स्तोतुं समुपचक्रमे ॥ २८॥

रामावतारजाताय हनुमद्रूपिणे नमः ।

वासुदेवस्य भक्ताय भीमसेनाय ते नमः ॥ २९॥

वेदव्यासमतोद्धारकर्त्रे पूर्णसुखाय च ।

दुर्वादिध्वान्तचन्द्राय पूर्णबोधाय ते नमः ॥ ३०॥

गुरुराजाय धन्याय कञ्जनेत्राय ते नमः ।

दिव्यरूपाय शान्ताय नमस्ते यतिरूपिणे ॥ ३१॥

स्वान्तस्थवासुदेवाय सच्चित्ताय नमो नमः ।

अज्ञानतिमिरार्काय व्यासशिष्याय ते नमः ॥ ३२॥

अथाभिवन्द्य पितरं ब्रह्माणं नारदो मुनिः ।

परिक्रम्य विनिर्यातो वासुदेवं हरिं स्मरन् ॥ ३३॥

अष्टोत्तरशतं दिव्यं वायुसूनोर्महात्मनः ।

यः पठेच्छ्रद्धया नित्यं सर्वबन्धात् प्रमुच्यते ॥ ३४॥

सर्वरोगविनिर्मुक्तः सर्वपापैर्न लिप्यते ।

राजवश्यं भवेन्नित्यं स्तोत्रस्यास्य प्रभावतः ॥ ३५॥

भूतग्रहनिवृत्तिश्च प्रजावृद्धिश्च जायते ।

आयुरारोग्यमैश्वर्यं बलं कीर्तिं लभेत् पुमान् ॥ ३६॥

यः पठेद्वायुचरितं भक्त्या परमया युतः ।

सर्वज्ञानसमायुक्तः स याति परमं पदम् ॥ ३६॥

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