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गायत्री साधना विधि || Gayatri Sadhana Vidhi || Gayatri Mantra Sadhana Vidhi

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गायत्री साधना विधि || Gayatri Sadhana Vidhi || Gayatri Sadhana Kaise Kare

आज हम आपको Gayatri Sadhana Vidhi के बारे में बताने जा रहे हैं ! गायत्री को भारतीय संस्कृति की जननी कहा गया है । वेदों से लेकर धर्मशास्त्रों तक समस्त दिव्य ज्ञान गायत्री के बीजाक्षरों का ही विस्तार है । माँ गायत्री का आँचल पकड़ने वाला साधक कभी निराश नहीं हुआ । इस मंत्र के चौबीस अक्षर चौबीस शक्तियों-सिद्धियों के प्रतीक हैं । गायत्री उपासना करने वाले की सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं, ऐसा ऋषिगणों का अभिमत है !! Online Specialist Astrologer Acharya Pandit Lalit Trivedi द्वारा बताये जा रहे गायत्री साधना विधि || Gayatri Sadhana Vidhi || Gayatri Mantra Sadhana Vidhi को जानकर आप भी गायत्री मंत्र साधना पूरी कर सकते हैं !! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !! जय श्री मेरे पूज्यनीय माता – पिता जी !! यदि आप अपनी कुंडली दिखा कर परामर्श लेना चाहते हो तो या किसी समस्या से निजात पाना चाहते हो तो कॉल करके या नीचे दिए लाइव चैट ( Live Chat ) से चैट करे साथ ही साथ यदि आप जन्मकुंडली, वर्षफल, या लाल किताब कुंडली भी बनवाने हेतु भी सम्पर्क करें Mobile & Whats app Number : 9667189678 Gayatri Sadhana Vidhi By Online Specialist Astrologer Sri Hanuman Bhakt Acharya Pandit Lalit Trivedi.

गायत्री साधना विधि || Gayatri Sadhana Vidhi || Gayatri Sadhana Kaise Kare

गायत्री महामंत्र अर्थ || Gayatri Mantra Ka Artha

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।

भावार्थ: उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्तःकरण में धारण करें । वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे ।

गायत्री साधना लाभ / फ़ायदे || Benefits of Gayatri Sadhana

गायत्री वेदमाता हैं एवं मानव मात्र का पाप नाश करने की शक्ति उनमें है । इससे अधिक पवित्र करने वाला और कोई मंत्र स्वर्ग और पृथ्वी पर नहीं है । भौतिक लालसाओं से पीड़ित व्यक्ति के लिए भी और आत्मकल्याण की इच्छा रखने वाले मुमुक्षु के लिए भी एकमात्र आश्रय गायत्री ही है । गायत्री से आयु, प्राण, प्रजा, पशु,कीर्ति, धन एवं ब्रह्मवर्चस के सात प्रतिफल अथर्ववेद में बताए गए हैं, जो विधिपूर्वक उपासना करने वाले हर साधक को निश्चित ही प्राप्त होते हैं । जाति, मत, लिंग भेद से परे कोई गायत्री साधना कर सकता है । सबके लिए उसकी गायत्री मंत्र साधना करने व लाभ उठाने का मार्ग खुला हुआ है ।

गायत्री मंत्र साधना लाभ / फ़ायदे आपको अगली पोस्ट में पूर्ण रूप से बताये जायेंगे। 

गायत्री साधना विधि || Gayatri Sadhana Vidhi || Gayatri Mantra Sadhana Vidhi

गायत्री साधना में बैठने का आसन || Gayatri Sadhana Me Baithane Ka Aasan

गायत्री मंत्र साधना को सिद्ध करने के लिए और उसका पूर्ण लाभ उठाने के लिए साधक को कुस का आसन सर्वोत्तम है। और गृहस्थों के लिए श्वेत या पीला या लाल रंग का कम्बल या शॉल या ऊनी वस्त्र का आसन सर्वोत्तम है। आपको उसके ऊपर पद्मासन, सुखासन, वीरासन या वज्रासन आदि का आसान लगाकर बैठना हैं | हमारे ऋषि मुनि गायत्री मंत्र साधना के लिए सिद्धासन का प्रयोग किया करते थे |

गायत्री साधना कब करें || Gayatri Sadhana Kab Kare

गायत्री साधना करने से पूर्व साधक को नित्य कर्म से निवृत होकर साफ़ पीले रंग के कपड़े धारण करें। गायत्री मंत्र साधना के लिए आप ऐसा स्थान चुनें जंहा आप आलस्य से दूर और वातावरण शांत हो | गायत्री मंत्र साधना के सूर्योदय से दो घण्टे पूर्व से सूर्यास्त के एक घंटे बाद तक कभी भी गायत्री उपासना की जा सकती है । मौन-मानसिक जप या मन्त्रलेखन चौबीस घण्टे किया जा सकता है । ब्रह्म मुहूर्त अर्थात् सूर्योदय से पूर्व का समय उपयुक्त है | संध्या के समय पूजा आरती के बाद भी जप का समय सही माना गया है | गायत्री मंत्र साधना करते समय साधक को पूर्वमुखी या उत्तरमुखी होकर करनी चाहिए | गायत्री मंत्र साधना जाप जिस समय पर आप कर रहे है अगले दिन उसी समय पर जाप करे |

गायत्री साधना षठ कर्म और देवावाहन कैसे करें || Gayatri Sadhana Shath Karm Aawahan Vidhi

जल से जप के पूर्व पवित्रीकरण, आचमन, शिखा बन्धन, प्राणायाम, शापविमोचन और न्यास आदि अवश्य करें। ततपश्चात पृथिवी पूजन। उसके बाद गुरु गायत्री का आह्वाहन करें। उसके बाद गायत्री मंत्र साधना करें। यह सारी विधियाँ नीचे विस्तार पूर्ण बताई गई हैं।

गायत्री साधना में दीपक प्रज्ववलन और कलश स्थापना कैसे करें || Gayatri Sadhana Kalsha Sthapan Kaise Kare

गायत्री मंत्र साधना से पूर्व शुद्ध घी का दीपक जला लें और एक लोटा जल में मिश्री के एक या दो दाने डालकर रख दें। जप के बाद शांतिपाठ मंन्त्र में उस लोटे से जल लेकर स्वयं के ऊपर छिड़क लें। फ़िर जल को सूर्य को या तुलसी के गमले में अर्पित कर दें। यदि आप अकेले में रहते हो और दीपक घी का जलाने में असुविधा है तो धुपबत्ती जला लो। अगर कुछ भी संभव नहीं तो एक ग्लास या लोटे जल को समक्ष रख के आह्वाहन करके जप कर लो।

गायत्री साधना माला का चयन || Gayatri Sadhana Mala Chayan

गायत्री मंत्र सद्बुद्धि का मंन्त्र है इसके लिए तुलसी या चंदन की माला सर्वोत्तम है। यदि यह दोनों मालायें संभव ना  हो तो रुद्राक्ष की माला से भी गायत्री मंत्र जपा जा सकता है। गायत्री  मंत्र उच्चारण करते समय माला को कपडे की थैली में रखे | माला जाप करते समय कभी ना देखे की कितनी मोती शेष बचे है | इससे अपूर्ण फल मिलता है | ध्यान रखे की जैसा गायत्री मंत्र बताया गया है वो ही उच्चारण आप करे | गायत्री मंत्र उच्चारण में गलती ना करे | होठ हिले और हल्की फुसफुसाहट सी हो लेकिन बगल में बैठा व्यक्ति भी मंन्त्र न सुन सके। ऐसे गायत्री मंत्र साधना जपना है, जिससे मुख का अग्निचक्र एक्टिवेट हो जाये। माला को फेरते समय दांये हाथ के अंगूठे और मध्यमा अंगुली का प्रयोग करे | माला पूर्ण होने पर सुमेरु को पार नही करे | माला पूरी होने पर माला को प्रणाम करके माथे पर लगाएं । फ़िर जप पुनः प्रारम्भ करें। 

गायत्री साधना की विधि इस प्रकार है :

(१) ब्रह्म सन्ध्या – जो शरीर व मन को पवित्र बनाने के लिए की जाती है । इसके अंतर्गत पाँच कृत्य करने होते हैं ।

(अ) पवित्रीकरण – बाएँ हाथ में जल लेकर उसे दाहिने हाथ से ढँक लें एवं मंत्रोच्चारण के बाद जल को सिर तथा शरीर पर छिड़क लें ।

गायत्री साधना पवित्रीकरण मंत्र || Gayatri Sadhana Pavitrikaran Mantra

ॐ अपवित्रः पवित्रो वा, सर्वावस्थांगतोऽपि वा ।

यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥

ॐ पुनातु पुण्डरीकाक्षः पुनातु पुण्डरीकाक्षः पुनातु ।

(ब) आचमन – वाणी, मन व अंतःकरण की शुद्धि के लिए चम्मच से तीन बार जल का आचमन करें । हर मंत्र के साथ एक आचमन किया जाए ।

गायत्री साधना आचमन मंत्र || Gayatri Sadhana Aachaman Mantra 

ॐ अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा । ॐ अमृतापिधानमसि स्वाहा । ॐ सत्यं यशः श्रीर्मयि श्रीः श्रयतां स्वाहा ।

(क) शिखा स्पर्श एवं वंदन – शिखा के स्थान को स्पर्श करते हुए भावना करें कि गायत्री के इस प्रतीक के माध्यम से सदा सद्विचार ही यहाँ स्थापित रहेंगे । निम्न मंत्र का उच्चारण करें।

गायत्री साधना शिखा स्पर्श एवं वंदन मंत्र || Gayatri Sadhana Shikha Sparsh & Vandan Mantra 

ॐ चिद्रूपिणि महामाये, दिव्यतेजः समन्विते । तिष्ठ देवि शिखामध्ये, तेजोवृद्धिं कुरुष्व मे॥

(ड) प्राणायाम – श्वास को धीमी गति से गहरी खींचकर रोकना व बाहर निकालना प्राणायाम के क्रम में आता है । श्वास खींचने के साथ भावना करें कि प्राण शक्ति, श्रेष्ठता श्वास के द्वारा अंदर खींची जा रही है, छोड़ते समय यह भावना करें कि हमारे दुर्गुण, दुष्प्रवृत्तियाँ, बुरे विचार प्रश्वास के साथ बाहर निकल रहे हैं । प्राणायाम निम्न मंत्र के उच्चारण के साथ किया जाए ।

गायत्री साधना प्राणायाम मंत्र || Gayatri Sadhana Pranayam Mantra 

ॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ महः, ॐ जनः ॐ तपः ॐ सत्यम् ।

ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।

ॐ आपोज्योतीरसोऽमृतं, ब्रह्म भूर्भुवः स्वः ॐ ।

(य) न्यास – इसका प्रयोजन है- शरीर के सभी महत्त्वपूर्ण अंगों में पवित्रता का समावेश तथा अंतः की चेतना को जगाना ताकि देव-पूजन जैसा श्रेष्ठ कृत्य किया जा सके । बाएँ हाथ की हथेली में जल लेकर दाहिने हाथ की पाँचों उँगलियों को उनमें भिगोकर बताए गए स्थान को मंत्रोच्चार के साथ स्पर्श करें ।

गायत्री साधना न्यास मंत्र || Gayatri Sadhana Nyas Mantra 

ॐ वाङ् मे आस्येऽस्तु । (मुख को)

ॐ नसोर्मे प्राणोऽस्तु । (नासिका के दोनों छिद्रों को)

ॐ अक्ष्णोर्मे चक्षुरस्तु । (दोनों नेत्रों को)

ॐ कर्णयोर्मे श्रोत्रमस्तु । (दोनों कानों को)

ॐ बाह्वोर्मे बलमस्तु । (दोनों भुजाओं को)

ॐ ऊर्वोमे ओजोऽस्तु । (दोनों जंघाओं को)

ॐ अरिष्टानि मेऽङ्गानि, तनूस्तन्वा मे सह सन्तु । (समस्त शरीर पर)

आत्मशोधन की ब्रह्म संध्या के उपरोक्त पाँचों कृत्यों का भाव यह है कि सााधक में पवित्रता एवं प्रखरता की अभिवृद्धि हो तथा मलिनता-अवांछनीयता की निवृत्ति हो । पवित्र-प्रखर व्यक्ति ही भगवान् के दरबार में प्रवेश के अधिकारी होते हैं ।

(२) देवपूजन – गायत्री उपासना का आधार केन्द्र महाप्रज्ञा-ऋतम्भरा गायत्री है । उनका प्रतीक चित्र सुसज्जित पूजा की वेदी पर स्थापित कर उनका निम्न मंत्र के माध्यम से आवाहन करें । भावना करें कि साधक की प्रार्थना के अनुरूप माँ गायत्री की शक्ति वहाँ अवतरित हो, स्थापित हो रही है।

गायत्री साधना देवपूजन मंत्र || Gayatri Sadhana Devpujan Mantra 

ॐ आयातु वरदे देवि त्र्यक्षरे ब्रह्मवादिनि । गायत्रिच्छन्दसां मातः! ब्रह्मयोने नमोऽस्तु ते ॥

ॐ श्री गायत्र्यै नमः । आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि, ततो नमस्कारं करोमि ।

प्रातःकाल ब्रह्मरूपा गायत्री माता का ध्यान –

ॐ बालां विद्यां तु गायत्रीं लोहितां चतुराननाम् ।

रक्ताम्बरद्वयोपेतामक्षसूत्रकरां तथा ॥

कमण्डलुधरां देवी हंसवाहनसंस्थिताम् ।

ब्रह्माणी ब्रह्मदैवत्यां ब्रह्मलोकनिवासिनीम् ॥

मन्त्रेनावाहयेद्देवीमायान्ती सूर्यमण्डलात् ।

‘भगवती गायत्री का मुख्य मन्त्र के द्वारा सूर्यमण्डल से आते हुए इस प्रकार ध्यान करना चाहिये कि उनकी किशोरावस्था है और वे ज्ञानस्वरुपिणी है । वे रक्तवर्णा एवं चतुर्मुखी है । उनके उत्तरी तथा मुख्य परिधान दोनो ही रक्तवर्णके है । उनके हाथमें रुद्राक्षकी माला है । हाथमे कमण्डलु धारण किये वे हंसपर विराजमान है । वे सरस्वती-स्वरूपा है, ब्रह्मलोकमें निवास करती है और ब्रह्माजी उनके पतिदेवता है।’

गायत्री का आवाहन – इसके बाद गायत्री माताके आवाहनके लिये निम्नलिखित विनियोग करे –

तेजोऽसीति धामनामासीत्यस्य च परमेष्ठी प्रजापतिऋषिर्यजुस्त्रिष्टुबुष्णिहौ छन्दसी आज्यं देवता गायत्र्यावाहने विनियोगः ।

पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र से गायत्री का आवाहन करे –

‘ॐ तेजोऽसि शुक्रमस्यमृतमसि । धामनामासि प्रियं देवानामना धृष्टं देवयजनमसि।’ (यजु० १।३१।)

गायत्री देवी का उपस्थान (प्रणाम) – आवाहन करने पर गायत्री देवी आगयी है, ऐसा मानकर निम्नलिखित विनियोग पढ़कर आगे के मन्त्र से उनको प्रणाम करे-

गायत्र्यसीति विवस्वान् ऋषिः स्वराण्महापङ्क्तिश्छन्दः परमात्मा देवता गायत्र्युपस्थाने विनियोगः ।

ॐ गायत्र्यस्येकपदी द्विपदी त्रिपदी चतुष्पद्यपदसि । न हि पद्यसे नमस्ते तुरीयाय दर्शताय पदाय परोरजसेऽसावदो मा प्रापत् ।

(ख) गुरु – गुरु परमात्मा की दिव्य चेतना का अंश है, जो साधक का मार्गदर्शन करता है । सद्गुरु के रूप में पूज्य गुरुदेव एवं वंदनीया माताजी का अभिवंदन करते हुए उपासना की सफलता हेतु गुरु आवाहन निम्न मंत्रोच्चारण के साथ करें ।

ॐ गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः, गुरुरेव महेश्वरः । गुरुरेव परब्रह्म, तस्मै श्रीगुरवे नमः॥ अखण्डमंडलाकारं, व्याप्तं येन चराचरम् । तत्पदं दर्शितं येन, तस्मै श्रीगुरवे नमः॥ ॐ श्रीगुरवे नमः, आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि ।

(ग) माँ गायत्री व गुरु सत्ता के आवाहन व नमन के पश्चात् देवपूजन में घनिष्ठता स्थापित करने हेतु पंचोपचार द्वारा पूजन किया जाता है । इन्हें विधिवत् संपन्न करें । जल, अक्षत, पुष्प, धूप-दीप तथा नैवेद्य प्रतीक के रूप में आराध्य के समक्ष प्रस्तुत किये जाते हैं । एक-एक करके छोटी तश्तरी में इन पाँचों को समर्पित करते चलें । जल का अर्थ है – नम्रता-सहृदयता । अक्षत का अर्थ है – समयदान अंशदान । पुष्प का अर्थ है – प्रसन्नता-आंतरिक उल्लास । धूप-दीप का अर्थ है – सुगंध व प्रकाश का वितरण, पुण्य-परमार्थ तथा नैवेद्य का अर्थ है – स्वभाव व व्यवहार में मधुरता-शालीनता का समावेश ।

ये पाँचों उपचार व्यक्तित्व को सत्प्रवृत्तियों से संपन्न करने के लिए किये जाते हैं । कर्मकाण्ड के पीछे भावना महत्त्वपूर्ण है ।

(गायत्री-उपस्थानके बाद गायत्री-शापविमोचनका तथा गायत्री-मन्त्र-जपसे पूर्व चौबीस मुद्राओंके करनेका भी विधान है, परंतु नित्य-संध्यावन्दनमे अनिवार्य न होनेपर भी इन्हे जो विशेषरूपसे करनेके इच्छुक है, उनके लिये यहाँपर दिया जा रहा है ।)

गायत्री साधना शाप विमोचन विधि || Gayatri Sadhana Shap Vimochan Vidhi  

ब्रह्मा, वसिष्ठ, विश्वामित्र और शुक्रके द्वारा गायत्री-मन्त्र शप्त है । अतः शाप-निवृत्तिके लिये शाप-विमोचन करना चाहिये ।

१. ब्रह्म-शापविमोचन – विनियोग – ॐ अस्य श्रीब्रह्मशापविमोचनमन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषिर्भुक्तिमुक्तिप्रदा ब्रह्मशापविमोचनी गायत्री शक्तिर्देवता गायत्री छन्दः ब्रह्मशापविमोचने विनियोगः ।

मन्त्र –

ॐ गायत्री ब्रह्मेत्युपासीत यद्रूपं ब्रह्मविदो विदुः ।

तां पश्यन्ति धीराः सुमनसो वाचमग्रतः ॥

ॐ वेदान्तनाथाय विद्महे हिरण्यगर्भाय धीमहि तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् । ॐ देवि! गायत्रि ! त्वं ब्रह्मशापाद्विमुक्ता भव ।

२. वसिष्ठ -शापविमोचन – विनियोग – ॐ अस्य श्रीवसिष्ठ-शापविमोचनमन्त्रस्य निग्रहानुग्रहकर्ता वसिष्ठ ऋषिर्वसिष्ठानुगृहीता गायत्री शक्तिर्देवता विश्वोद्भवा गायत्री छन्दः वसिष्ठशापविमोचनार्थं जपे विनियोगः ।

मन्त्रः-

ॐ सोऽहमर्कमयं ज्योतिरात्मज्योतिरहं शिवः ।

आत्मज्योतिरहं शुक्रः सर्वज्योतीरसोऽस्म्यहम् ॥

योनिमुद्रा दिखाकर तीन बार गायत्री जपे ।

ॐ देवि ! गायत्रि ! त्वं वसिष्ठशापाद्विमुक्ता भव ।

३. विश्वामित्र-शापविमोचन – विनियोग – ॐ अस्य श्रीविश्वामित्रशापविमोचनमन्त्रस्य नूतनसृष्टिकर्ता विश्वामित्रऋषिर्विश्वामित्रानुगृहीता गायत्री शक्तिर्देवता वाग्देहा गायत्री छन्दः विश्वामित्रशापविमोचनार्थं जपे विनियोगः ।

मन्त्र-

ॐ गायत्री भजाम्यग्निमुखी विश्वगर्भां यदुद्भवाः ।

देवाश्चक्रिरे विश्वसृष्टिं ता कल्याणीमिष्टकरी प्रपद्ये ॥

ॐ देवि ! गायत्रि ! त्वं विश्वामित्रशापाद्विमुक्ता भव ।

४. शुक्र-शापविमोचन – विनियोग – ॐ अस्य श्रीशुक्रशापविमोचनमन्त्रस्य श्रीशुकऋषिः अनुष्टुप‌छन्दः देवी गायत्री देवता शुक्रशापविमोचनार्थं जपे विनियोगः ।

मन्त्र –

ॐ सोऽहमर्कमयं ज्योतिरात्मज्योतिरहं शिवः ।

आत्मज्योतिरहं शुक्रः सर्वज्योतीरसोऽस्म्यहम् ॥

ॐ देवि ! गायत्रि ! त्वं शुक्रशापाद्विमुक्ता भव ।

प्रार्थना –

ॐ अहो देवि महादेवि संध्ये विद्ये सरस्वति ।

अजरे अमरे चैव ब्रह्मयोनिर्नमोऽस्तु ते ॥

ॐ देवि गायत्रि त्वं ब्रह्मशापाद्विमुक्ता भव, वसिष्ठशापाद्विमुक्ता भव, विश्वामित्रशापाद्विमुक्ता भव, शुक्रशापाद्विमुक्ता भव ।

जप के पूर्व की चौबीस मुद्राएँ

सुमुखं सम्पुटं चैव विततं विस्तृतं तथा ।

द्विमुखं त्रिमुखं चैव चतुष्पञ्चमुखं तथा ॥

षण्मुखाऽधोमुखं चैव व्यापकाञ्जलिकं तथा ।

शकटं यमपाशं च ग्रथितं चोन्मुखोन्मुखम् ॥

प्रलम्बं मुष्टिकं चैव मत्स्यः कूर्मो वराहकम् ।

सिंहाक्रान्तं महाक्रान्तं मुद्गरं पल्लवं तथा ॥

एता मुद्रश्चतुर्विंशज्जपादौ परिकीर्तिताः ॥

१. सुमुखम् – दोनो हाथों की अँगुलियोंको मोड़कर परस्पर मिलाये ।

२. सम्पुटम् – दोनो हाथों को फुलाकर मिलाये ।

३. विततम् – दोनो हाथों कि हथेलियाँ परस्पर सामने करे ।

४. विस्तृतम् – दोनो हाथों की अँगुलियाँ खोलकर दोनोंको कुछ अधिक अलग करे ।

५. द्विमुखम् – दोनों हाथों की कनिष्ठिका से कनिष्ठिका तथा अनामिका से अनामिका मिलाये ।

६. त्रिमुखम् – पुनः दोनों मध्यमाओं को मिलाये ।

७. चतुर्मुखम् – दोनो तर्जनियाँ और मिलाये ।

८. पञ्चमुखम् – दोनो अँगूठे और मिलाये ।

९. षण्मुखम् – हाथ वैसे ही रखते हुए दोनो कनिष्ठिकाओं को खोले ।

१०. अधोमुखम् – उलटे हाथों की अँगुलियों को मोड़े तथा मिलाकर नीचे की ओर करे ।

११. व्यापकाञ्जलिकम् – वैसे ही मिले हुए हाथों को शरीर की ओर घुमाकर सीधा करे ।

१२.शकटम् – दोनो हाथों को उलटाकर अँगूठे से अँगूठा मिलाकर तर्जनियों को सीधा रखते हुए मुट्ठी बाँधे ।

१३. यमपाशम् – तर्जनी से तर्जनी बाँधकर दोनो मुट्ठियाँ बाँधे ।

१४. ग्रथितम् – दोनो हाथों की अँगुलियों को परस्पर गूँथे ।

१५. उन्मुखोन्मुखम् – हाथों की पाँचो अँगुलियों को मिलाकर प्रथम बायें पर दाहिना, फिर दाहिने पर बायाँ हाथ रखे ।

१६. प्रलम्बम् – अँगुलियों को कुछ मोड़ दोनो हाथोंको उलटाकर नीचे की ओर करे ।

१७. मुष्टिकम् – दोनों अँगूठे ऊपर रखते हुए दोनों मुट्ठियाँ बाँधकर मिलाये ।

१८. मत्स्यः – दाहिने हाथकी पीठपर बायाँ हाथ उलटा रखकर दोनो अँगूठे हिलाये ।

१९. कूर्मः – सीधे बाये हाथकी मध्यमा, अनामिका तथा कनिष्ठिकाको मोड़कर उलटे दाहिने हाथकी मध्यमा, अनामिकाको उन तीनों अँगुलियोंके नीचे रखकर तर्जनीपर दाहिनी कनिष्ठिका और बायें अँगूठेपर दाहिनी तर्जनी रखे ।

२०. वराहकम् – दाहिनी तर्जनी को बाये अँगूठे से मिला, दोनो हाथों की अँगुलियों को परस्पर बाँधे ।

२१. सिंहाक्रान्तम् – दोनो हाथों को कानों के समीप करे ।

२२. महाक्रान्तम् – दोनो हाथों की अँगुलियों को कानों के समीप करे ।

२३. मुद्‌गरम् – मुट्ठी बाँध, दाहिनी कुहनी बायी हथेली पर रखे ।

२४. पल्लवम् – दाहिने हाथ की अँगुलियों को मुख मे सम्मुख हिलाये ।

गायत्री साधना विनियोग मंत्र || Gayatri Sadhana Viniyog Mantra 

विनियोग : ॐ कारस्य ब्रह्मा ऋषिर्गायत्री छन्दः परमात्मा देवता, ॐ भूर्भुव्ह स्वरिति महाव्याह्रतीनां परमेष्ठी प्रजापति-ऋषिर्गायत्र्युष्णिगनुष्टुभश्छन्दांसि अग्निवायुसूर्या देवताः, ॐ तत्सवितुरित्यस्य विश्वामित्रऋषिर्गायत्री छन्दः सविता देवता जपे विनियोगः ।

(३) जप – गायत्री मंत्र का जप न्यूनतम तीन माला अर्थात् घड़ी से प्रायः पंद्रह मिनट नियमित रूप से किया जाए । अधिक बन पड़े, तो अधिक उत्तम । होठ हिलते रहें, किन्तु आवाज इतनी मंद हो कि पास बैठे व्यक्ति भी सुन न सकें । जप प्रक्रिया कषाय-कल्मषों-कुसंस्कारों को धोने के लिए की जाती है । ऊपर हमने Gayatri Sadhana Mantra जप विधि कैसे करें पूर्ण रूप से लिखी हुई हैं। 

गायत्री साधना मंत्र || Gayatri Sadhana Mantra

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।

इस प्रकार मंत्र का उच्चारण करते हुए माला की जाय एवं भावना की जाय कि हम निरन्तर पवित्र हो रहे हैं । दुर्बुद्धि की जगह सद्बुद्धि की स्थापना हो रही है ।

(४) ध्यान – जप तो अंग-अवयव करते हैं, मन को ध्यान में नियोजित करना होता है । साकार ध्यान में गायत्री माता के अंचल की छाया में बैठने तथा उनका दुलार भरा प्यार अनवरत रूप से प्राप्त होने की भावना की जाती है । निराकार ध्यान में गायत्री के देवता सविता की प्रभातकालीन स्वर्णिम किरणों को शरीर पर बरसने व शरीर में श्रद्धा-प्रज्ञा-निष्ठा रूपी अनुदान उतरने की भावना की जाती है, जप और ध्यान के समन्वय से ही चित्त एकाग्र होता है और आत्मसत्ता पर उस क्रिया का महत्त्वपूर्ण प्रभाव भी पड़ता है ।

(५) सूर्यार्घ्यदान – विसर्जन-जप समाप्ति के पश्चात् पूजा वेदी पर रखे छोटे कलश का जल सूर्य की दिशा में र्अघ्य रूप में निम्न मंत्र के उच्चारण के साथ चढ़ाया जाता है ।

ॐ सूर्यदेव! सहस्रांशो, तेजोराशे जगत्पते । अनुकम्पय मां भक्त्या गृहाणार्घ्यं दिवाकर॥

ॐ सूर्याय नमः, आदित्याय नमः, भास्कराय नमः॥

भावना यह करें कि जल आत्म सत्ता का प्रतीक है एवं सूर्य विराट् ब्रह्म का तथा हमारी सत्ता-सम्पदा समष्टि के लिए समर्पित-विसर्जित हो रही है ।

गायत्री साधना करने के बाद पूजा स्थल पर देवताओं को करबद्ध नतमस्तक हो नमस्कार किया जाए व सब वस्तुओं को समेटकर यथास्थान रख दिया जाए । 

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