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एकदन्त स्तोत्रम् || Ekdant Stotram || Ekdant Stotra

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श्री एकदन्त स्तोत्रम् || Shri Ekdant Stotram || Shri Ekdant Stotra

यह तो आप सब पहले से जानते हो की भगवान श्री गणेश जी को एकदन्त नाम से भी जाना जाता हैं। जिन्हें महादेव और पार्वती देवी का पुत्र कहा जाता है। भगवान एकदंत बुद्धि, सफलता, ज्ञान, समृद्धि, धन और स्वास्थ्य के देवता कहलाते है। भगवान गणेश जी को एकदंत के अलावा और कई नामों से भी जाना जाता है जैसे गणपति, गजानंद, मंगलमूर्ति, विनायक आदि। हम यंहा आपको Shri Ekdant Stotram में बताने जा रहे हैं। Shri Ekdant Stotram भगवान श्री गणेश जी का सबसे प्रभावी प्रार्थना है। नारद पुराण में Shri Ekdant Stotram का उल्लेख मिलता है। यह सभी प्रकार की समस्याओं को समाप्त करता है। !! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !! यदि आप अपनी कुंडली दिखा कर परामर्श लेना चाहते हो तो या किसी समस्या से निजात पाना चाहते हो तो कॉल करके या नीचे दिए लाइव चैट ( Live Chat ) से चैट करे साथ ही साथ यदि आप जन्मकुंडली, वर्षफल, या लाल किताब कुंडली भी बनवाने हेतु भी सम्पर्क करें : 9667189678 Shri Ekdant Stotram By Online Specialist Astrologer Acharya Pandit Lalit Trivedi.

श्री एकदन्त स्तोत्रम् || Shri Ekdant Stotram || Shri Ekdant Stotra

महासुरं सुशांतं वै दृष्ट्वा विष्णुमुखा: सुरा: ।

भ्रग्वादयश्र्च मुनय एकदन्तं समाययु: ।।1।।

प्रणम्य तं प्रपूज्यादौ पुनस्तं नेमुरादरात् ।

तुष्टुवुर्हर्षसंयुक्ता एकदन्तं गणेश्र्वरम् ।।2।।

देवर्षय ऊचु:

सदात्मरूपं सकलादिभूतममायिनं सोऽहमचिन्त्यबोधम् ।

अनादिमध्यांतविहीनमेकं तमेकदन्तं शरणं व्रजाम: ।।3।।

अनन्तचिद्रूपमयं गणेशं ह्मभेदभेदादिविहीनमाद्यम् ।

हृदि प्रकाशस्य धरं स्वधीस्थं तमेकदन्तं शरणं व्रजाम: ।।4।।

विश्र्वादिभूतं ह्रदि योगिनां वै प्रत्यक्षरूपेण विभान्तमेकम् ।

सदा निरालम्बसमाधिगम्यं तमेकदन्तं शरणं व्रजाम: ।।5।।

स्वबिम्बभावेन विलासयुक्तं बिंदुस्वरूपा रचिता स्वमाया ।

तस्या स्ववीर्य प्रददाति यो वै तमेकदन्तं शरणं व्रजाम: ।।6।।

त्वदीयवीर्येण समर्थभूता माया तया संरचितं च विश्र्वम् ।

नादत्मकं ह्मात्मतया प्रतीतं तमेकदन्तं शरणं व्रजाम: ।।7।।

त्वदीयसत्ताधरमेकदन्तं गणेशमेकं त्रयबोधितारम् ।

सेवन्त आपुस्तमजं त्रिसंस्थास्तमेकदन्तं शरणं व्रजाम: ।।8।।

ततस्त्वया प्रेरित एव नादस्तेनेदमेवं रचितं जगद्वैतम् ।

आनन्दरूपं समभावसंस्थं तमेकदन्तं शरणं व्रजाम: ।।9।।

तदेव विश्र्वं कृपया तवैव सम्भूतमाद्यं तमसा विभातम् ।

अनेकरूपं ह्मजमेकभूतं तमेकदन्तं शरणं व्रजाम: ।।10।।

ततस्त्वया प्रेरितमेव तेन सृष्टं सुसूक्ष्मं जगदेकसंस्थम् ।

सत्त्वात्म्कं श्र्वेतमनन्तमाद्यं तमेकदन्तं शरणं व्रजाम: ।।11।।

तदेव स्वप्नं तपसा गणेशं संसिद्धिरूपं विविधं वभूव ।

तदेकरूपं कृपया तवापि तमेकदन्तं शरणं व्रजाम: ।।12।।

सम्प्रेरितं तच्य त्वया ह्रदिस्थं तथा सुसृष्टं जगदंशरूपम् ।

तेनैव जाग्रन्मयमप्रमेयं तमेकदन्तं शरणं व्रजाम: ।।13।।

जाग्रत्स्वरूपं रजसा विभातं विलोकितं तत्कृपया यदैव ।

तदा विभिन्नं भवदेकरूपं तमेकदन्तं शरणं व्रजाम: ।।14।।

एवं च सृष्ट्वा प्रक्रतिस्वभावात्तदन्तरे त्वं च विभासि नित्यम् ।

बुद्धिप्रदाता गणनाथ एकस्तमेकदन्तं शरणं व्रजाम: ।।15।।

त्वदाज्ञया भांति ग्रहाश्र्च सर्वे नक्षत्ररूपाणि विभान्ति खे वै ।

आधारहीनानि त्वया धृतानि तमेकदन्तं शरणं व्रजाम: ।।16।।

त्वदाज्ञया सृष्टिकरो विधाता त्वदाज्ञया पालक एव विष्णु: ।

त्वदाज्ञया संहरते हरोऽपि तमेकदन्तं शरणं व्रजाम: ।।17।।

यदाज्ञया भूर्जलमध्यसंस्था यदाज्ञयाऽऽप: प्रवहन्ति नद्य: ।

सीमां सदा रक्षति वै समुद्रस्तमेकदन्तं शरणं व्रजाम: ।।18।।

यदाज्ञया देवगणो दिविस्थो ददाति वै कर्मफलानि नित्यम् ।

यदाज्ञया शैलगणोऽचलो वै तमेकदन्तं शरणं व्रजाम: ।।19।।

यदाज्ञया शेष इलाधरो वै यदाज्ञया मोहकरश्र्च काल: ।

यदाज्ञया कालधरोऽर्यमा च तमेकदन्तं शरणं व्रजाम: ।।20।।

यदाज्ञया वाति विभाति वायुर्यदाज्ञयाऽग्निर्जठरादिसंस्थ: ।

यदाज्ञया वै सचराचरं च तमेकदन्तं शरणं व्रजाम: ।।21।।

सर्वान्तरे संस्थिततेकगूढं यदाज्ञया सर्वमिदं विभाति ।

अनन्तरूपं ह्रदि बोधकं वै तमेकदन्तं शरणं व्रजाम: ।।22।।

यं योगिनो योगबलेन साध्यं कुर्वन्ति तं क: स्तवनेन नौति ।

अत: प्रणामेन सुसिद्धिदोऽस्तु तमेकदन्तं शरणं व्रजाम: ।।23।।

ग्रत्सप्तद उवाच

एवं स्तुत्वा च प्रह्लादं देवा: समुनयश्र्च वै ।

तूष्णींभावं प्रपद्येव ननृतुर्हर्षसंयुता: ।।24।।

स तानुवाच प्रोतात्मा ह्मेकदंत: स्तवेन वै ।

जगाद तान्महाभागान्देवर्षीन्भक्तवत्सल: ।।25।।

एकदंत उवाच

प्रसन्नोस्मि च स्तोत्रेण सुरा: सर्षिगणा: किल ।

वृणुतां वरदोऽहं वो दास्यामि मनसीप्सितम् ।।26।।

भवत्कृतं मदीयं वै स्तोत्रं प्रीतिप्रदं मम ।

भविष्यति न संदेह: सर्वसिद्धिप्रदायकम् ।।27।।

यं यमिच्छति तं तं वै दास्यामि स्तोत्रपाठत: ।

पुत्रपौत्रादिकं सर्वं लभते धनधान्यकम् ।।28।।

गजाश्र्वादिकमत्म्यन्तं राज्यभोगं लभेद्ध्रुवम् ।

भुक्तिं मुक्तिं च योगं वै लभते शान्तिदायकम् ।।29।।

मारणोंचटनादीनि राज्यबंधादिकं च यत् ।

पठतां श्रृण्वतां न्रणां भवेच्च बंधहीनता ।।30।।

एकविंशतिवारं च श्लोकाच्श्रैवैकविंशतिम् ।

पठते नित्यमेवं च दिनानि त्वेकविंशतिम् ।।31।।

न तस्य दुर्लभं किंचित्त्रिषु लोकेशु वै भवेत् ।

असाध्यं साधयेन्मत्र्य: सर्वत्र विजयी भवेत् ।।32।।

नित्यं य: पठेत स्तोत्रं ब्रह्मभूत: स वै नर: ।

तस्य दर्शनत: सर्वे देवा: पूता भवन्ति वै ।।33।।

एवं तस्य वच: श्रुत्वा प्रह्रष्टा देवतर्षय: ।

ऊचु: करपुटा: सर्वे भक्तियुक्ता गजाननम् ।।34।।

श्री एकदन्त स्तोत्रम् के लाभ और फ़ायदे || Shri Ekdant Stotram Ke Labh / Fayde

जो भी जातक Shri Ekdant Stotram का छह महीने तक प्रतिदिन पाठ करता है वो जातक की सभी प्रकार की बाधाओं और दुखों से मुक्ति पाता हैं। 

जो भी जातक Shri Ekdant Stotram का एक वर्ष तक प्रतिदिन पाठ करता है तो उसकी सारी परेशानियाँ और कठिनाइयाँ भगवान श्री एकदंत जी की कृपा से समाप्त होने लग जाती हैं। 

जो भी जातक रोजाना Shri Ekdant Stotram का पाठ करता है उसे पुत्र-पौत्र, धन-धान्य, वाहन, मकान एवं समस्त भौतिक सुख साधनो एवं शांति कि प्राप्ति होती हैं ।

Shri Ekdant Stotram का नियमित रूप से 21 या 27 बार पाठ करने से जातक के ऊपर किये जाने वाले मारण, उच्चाटन और मोहन आदि प्रयोग से जातक की रक्षा होती हैं । उसकी सभी जगह विजय प्राप्ति होती हैं !

जो भी जातक Shri Ekdant Stotram का एक वर्ष में 1,25,000 बार पाठ करता हैं उस जातक को सभी प्रकार की सिद्धि प्राप्त होती हैं।

जो भी Shri Ekdant Stotram का पाठ दिन के तीनों समय में करता हैं उस जातक किसी भी प्रकार के भय से मुक्ति, धन संबधित परेशानी के साथ साथ मोक्ष को प्राप्त होता हैं। 

Shri Ekdant Stotram का नियमित पाठ करने से छह महीने के भीतर यह अपने परिणाम देने लग जाता हैं। 

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