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विजयदशमी को शमी की पूजा का महत्व || Vijayadashami Ko Shami Ki Puja Ka Mahatv
हमारे भारतीय संस्कृति में प्रत्येक त्यौहार का अपना एक अलग महत्व है ! हर एक भारतीय पर्व हमें यह नया संदेश देता है कि हम अपने जीवन को किस प्रकार सुखी समृद्ध बना सकते हैं ! विजयादशमी पर रावण दहन के बाद कई प्रांतों में शमी के पत्ते को सोना समझकर देने का प्रचलन है, तो कई जगहों पर Shami Ki Puja का प्रचलन है ! आओ जानते हैं कि क्यों पूजनीय है शमी का वृक्ष ।
यह तो आप सब जानते है की अश्विन मास के शारदीय नवरात्रों में शक्ति माँ दुर्गा जी की पूजन के नौ दिन बाद दशहरा अर्थात विजयादशमी का पर्व मनाया जाता है ! दशहरा अर्थात विजयादशमी को असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक हैं ! इस पर्व के दौरान रावण दहन और शस्त्र पूजन के साथ Shami Ki Puja किया जाता है ! संस्कृत साहित्य में अग्नि को ‘शमी गर्भ’ के नाम से जाना जाता है !
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हिंदू धर्म में विजयादशमी के दिन Shami Ki Puja करते हैं ! शास्त्रानुसार कहते है की भगवान श्री राम ने लंका पर विजय पाने के लिए वृक्ष का पूजन कर विजय प्राप्ति हेतु प्रार्थना की ! और महाभारत के समय में जब पांडवों को देश निकला दिया गया जब तो उन्होंने अपने अंतिम वर्षो में अपने शस्त्रों को शमी के वृक्ष में छिपाए थे इन्ही 2 कारणों से शमी पूजन की प्रथा आरम्भ हुई ! घर में ईशान कोण (पूर्वोत्तर) में स्थित शमी का वृक्ष विशेष लाभकारी और शुभकारी होता है ! कहते है की गुजरात के कच्छ जिले, के भुज शहर में करीबन साढ़े चार सौ साल पूराना एक शमी वृक्ष है !
भविष्यवक्ता भी कहते है शमी वृक्ष को :
विक्रमादित्य के समय में सुप्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य वराहमिहिर ने भी अपने ‘बृहतसंहिता’ नामक ग्रंथ के ‘कुसुमलता’ नाम के अध्याय में वनस्पति शास्त्र में भी शमी वृक्ष अर्थात खिजड़े का उल्लेख मिलता है ! सुप्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य वराहमिहिर के अनुसार जिस साल शमी का वृक्ष ज्यादा फूलता-फलता है उस साल सूखे की स्थिति का निर्माण होता है ! विजयादशमी के दिन इसकी पूजा करने का एक तात्पर्य यह भी है कि यह वृक्ष आने वाली कृषि समस्या का पहले से संकेत मिल जाता हैं ! जिससे किसान पहले से भी ज्यादा पुरुषार्थ करके आने वाली मुश्किल से मुक्ति पा सकता है ।
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शमी वृक्ष के लाभ || Shami Vriksh Ke Labh
भारत में खासकर गुजरात में कई किसान अपने खेतों में शमी वृक्ष बोते हैं जिसे उन्हें कई सारे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लाभ भी हुए है। यह वृक्ष पानखर जैसा काँटेदार वृक्ष है जिसके पत्ते सूख जाने के बाद उसमें छोटेःछोटे पीले फूल आते हैं। उसकी जड़ जमीन में बहुत गहराई तक जाती है जिससे उपज के सूखने का भय नहीं रहता ।
यह वृक्ष हर साल कई प्राणियों के लिए चारे का काम करता है। गर्मियों के दिनों में वह बहुत ही फूलता-फलता है और उसमें ढ़ेर सारे पत्ते आते हैं। खेत की मेढ़ पर उसे बोने से फसल पर पड़ने वाले वायु के अधिक दबाव को भी वह कम कर देता है। जिससे खेतों की फसलों को तूफान से होने वाले नुकसान नहीं होते ।
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इस वृक्ष की लकड़ियों से आज भी कई गाँवों में घर के चूल्हे जलते हैं। विदेशों के कृषि विशेषज्ञों ने भी यह बात मान ली है कि जिस खेत में शमी वृक्ष बोया जाता है उस खेत के किसान को देर-सबेर कई सारे फायदे होते हैं।
शायद इसलिए ही हिंदू धर्म में बरगद, पीपल, तुलसी और बिल्व पत्र जैसे पवित्र वृक्षों की तरह ही इस शमी वृक्ष ( खीजड़ा ) को भी पूजनीय माना जाता है ।
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