वाराही निग्रह अष्टकम || Varahi Nigraha Ashtakam || Varahi Nigrahashtakam

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वाराही निग्रह अष्टकम || Varahi Nigraha Ashtakam || Varahi Nigrahashtakam

वाराही सप्त मथ्रुका (सात माताओं) में से एक है जिन्होंने शुभा, निशुंभ और उनकी सेनाओं के खिलाफ अपनी लड़ाई में देवी की सहायता की । उसे मानव शरीर को आठ हथियारों, सूअर के सिर और तीन आंखों के साथ वर्णित किया गया है । वाराही निग्रह अष्टकम आदि के बारे में बताने जा रहे हैं !! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !! यदि आप अपनी कुंडली दिखा कर परामर्श लेना चाहते हो तो या किसी समस्या से निजात पाना चाहते हो तो कॉल करके या नीचे दिए लाइव चैट ( Live Chat ) से चैट करे साथ ही साथ यदि आप जन्मकुंडली, वर्षफल, या लाल किताब कुंडली भी बनवाने हेतु भी सम्पर्क करें : 9667189678 Varahi Nigraha Ashtakam By Online Specialist Astrologer Acharya Pandit Lalit Trivedi.

वाराही निग्रह अष्टकम || Varahi Nigraha Ashtakam || Varahi Nigrahashtakam

॥ वाराहीनिग्रहाष्टकम् ॥ श्रीगणेशाय नमः ।

देवि क्रोडमुखि त्वदंघ्रिकमल-द्वन्द्वानुरक्तात्मने,

मह्यं द्रुह्यति यो महेशि मनसा कायेन वाचा नरः ।

तस्याशु त्वदयोग्रनिष्ठुरहला-घात-प्रभूत-व्यथा-,

पर्यस्यन्मनसो भवन्तु वपुषः प्राणाः प्रयाणोन्मुखाः ॥ १॥

देवि त्वत्पदपद्मभक्तिविभव-प्रक्षीणदुष्कर्मणि,

प्रादुर्भूतनृशंसभावमलिनां वृत्तिं विधत्ते मयि ।

यो देही भुवने तदीयहृदयान्निर्गत्वरैर्लोहितैः,

सद्यः पूरयसे कराअब्ज-चषकं वांछाफलैर्मामपि ॥ २॥

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चण्डोत्तुण्ड-विदीर्णदंष्ट्रहृदय-प्रोद्भिन्नरक्तच्छटा-,

हालापान-मदाट्टहास-निनदाटोप-प्रतापोत्कटम् ।

मातर्मत्परिपन्थिनामपहृतैः प्राणैस्त्वदंघ्रिद्वयं,

ध्यानोद्दामरवैर्भवोदयवशात्सन्तर्पयामि क्षणात् ॥ ३॥

श्यामां तामरसाननांघ्रिनयनां सोमार्धचूडां,

जगत्त्राण-व्यग्र-हलायुधाग्रमुसलां सन्त्रासमुद्रावतीम् ।

ये त्वां रक्तकपालिनीं हरवरारोहे वराहाननां,

भावैः सन्दधते कथं क्षणमपि प्राणन्ति तेषां द्विषः ॥ ४॥

विश्वाधीश्वरवल्लभे विजयसे या त्वं नियन्त्र्यात्मिका,

भूतान्ता पुरुषायुषावधिकरी पाकप्रदा कर्मणाम् ।

त्वां याचे भवतीं किमप्यवितथं यो मद्विरोधी,

जनस्तस्यायुर्मम वांछितावधि भवेन्मातस्तवैवाज्ञया ॥ ५॥

मातः सम्यगुपासितुं जडमतिस्त्वां नैव शक्नोम्यहं,

यद्यप्यन्वित-दैशिकांघ्रिकमलानुक्रोशपात्रस्य मे ।

जन्तुः कश्चन चिन्तयत्यकुशलं यस्तस्य तद्वैशसं,

भूयाद्देवि विरोधिनो मम च ते श्रेयः पदासङ्गिनः ॥ ६॥

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वाराहि व्यथमान-मानसगलत्सौख्यं तदाशाबलिं,

सीदन्तं यमपाकृताध्यवसितं प्राप्ताखिलोत्पादितम् ।

क्रन्दद्बन्धुजनैः कलङ्किततुलं कण्ठव्रणोद्यत्कृमि,

पश्यामि प्रतिपक्षमाशु पतितं भ्रान्तं लुठन्तं मुहुः ॥ ७॥

वाराहि त्वमशेषजन्तुषु पुनः प्राणात्मिका स्पन्दसे,

शक्ति व्याप्त-चराचरा खलु यतस्त्वामेतदभ्यर्थये ।

त्वत्पादाम्बुजसङ्गिनो मम सकृत्पापं चिकीर्षन्ति ये,

तेषां मा कुरु शङ्करप्रियतमे देहान्तरावस्थितिम् ॥ ८॥

॥ इति श्रीवाराहीनिग्रहाष्टकं सम्पूर्णम् ॥

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