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वराह स्तोत्र || Varaha Stotram || Varaha Stotra
वराह स्तोत्रम् भगवान श्री विष्णु जी को समर्पित हैं ! भगवान श्री विष्णु जी का ही वराह अवतार हैं ! भगवान श्री विष्णु जी ने वराह अवतार लेकर पृथ्वी की रक्षा की थी ! यह Varaha Stotram श्रीमद्भागवतम् ( ३.१३.३४–४५ ) के अंतर्गत से लिया गया हैं !! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !! यदि आप अपनी कुंडली दिखा कर परामर्श लेना चाहते हो तो या किसी समस्या से निजात पाना चाहते हो तो कॉल करके या नीचे दिए लाइव चैट ( Live Chat ) से चैट करे साथ ही साथ यदि आप जन्मकुंडली, वर्षफल, या लाल किताब कुंडली भी बनवाने हेतु भी सम्पर्क करें : 9667189678 Varaha Stotram By Online Specialist Astrologer Acharya Pandit Lalit Trivedi.
वराह स्तोत्र || Varaha Stotram
ऋषयः ऊचुः
जितं जितं तेऽजित यज्ञभावन त्रयीं तनुं स्वां परिधुन्वते नमः ।
यद्रोमरन्ध्रेषु निलिल्युरध्वरा- स्तस्मै नमः कारणसूकराय ते ॥१॥
रूपं तवैतन्ननु दुष्कृतात्मनां दुर्दर्शनं देव यदध्वरात्मकम्।
छन्दांसि यस्य त्वचि बर्हिरोम- स्वाज्यं दृशित्वंघ्रिषु चातुर्होत्रम् ॥२॥
स्रुक्तुण्ड आसीत्स्रुव ईश नासयो- रिडोदरे चमसाः कर्णरन्ध्रे
प्राशित्रमास्ये ग्रसने ग्रहास्तु ते यच्चर्वणं ते भगवन्नग्निहोत्रम् ॥३॥
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दीक्षानुजन्मोपसदः शिरोधरं त्वं प्रायणीयोदयनीयदंष्ट्रः।
जिह्वा प्रवर्ग्यस्तव शीर्षकं क्रतोः सभ्यावसथ्यं चितयोऽसवो हि ते ॥४॥
सोमस्तु रेतः सवनान्यवस्थितिः संस्थाविभेदास्तव देव धातवः।
सत्राणि सर्वाणि शरीरसन्धि- स्त्वं सर्वयज्ञक्रतुरिष्टिबन्धनः ॥५॥
नमो नम्स्तेऽखिलमन्त्रदेवता- द्रव्याय सर्वक्रतवे क्रियात्मने
वैराग्यभक्त्यात्मजयानुभावित- ज्ञानाय विद्यागुरवे नमोनमः ॥६॥
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दंष्ट्राग्रकोट्या भगवंस्त्वया धृता विराजते भूधर भूः सभूधरा।
यथा वनान्निःसरतो दता धृता मतङ्गजेन्द्रस्य सपत्रपद्मिनी ॥७॥
त्रयीमयं रूपमिदं च सौकरं भूमण्डलेनाथ दता धृतेन ते।
चकास्ति शृङ्गोढघनेनभूयसा कुलाचलेन्द्रस्य यथैव विभ्रमः ॥८॥
संस्थापयैनां जगतां सतस्थुषां लोकाय पत्नीमसि मातरं पिता।
विधेम चास्यै नमसा सह त्वया यस्यां स्वतेजोऽग्निमिवारणावधाः ॥९॥
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कः श्रद्दधीतान्यतमस्तव प्रभो रसां गताया भुव उद्विबर्हणम्।
न विस्मयोऽसौ त्वयि विश्वविस्मये यो माययेदं ससृजेऽतिविस्मयम् ॥१०॥
विधुन्वता वेदमयं निजं वपु- र्जनस्तपस्सत्यनिवासिनो वयम्।
सटाशिखोद्धूतशिवांबुबिन्दुभि- र्विमृज्यमाना भृशमीश पाविताः ॥११॥
स वै बत भ्रष्टमतिस्तवैष ते यः कर्मणां पारमपारकर्मणः।
यद्योगमायागुणयोगमोहितं विश्वं समस्तं भगवन् विधेहि शम् ॥१२॥
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