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बैकुंठ चतुर्दशी व्रत कब हैं ? 2022 || Vaikuntha Chaturdashi 2022 Date
बैकुंठ चतुर्दशी को नवम्बर महीने की 07 तारीख़, वार सोमवार के दिन बनाई जायेगीं।
बैकुंठ चतुर्दशी व्रत कथा || Vaikuntha Chaturdashi Vrat Katha || Vaikuntha Chaturdashi Katha
बैकुंठ चतुर्दशी व्रत कथा || Vaikuntha Chaturdashi Vrat Katha – प्रथम कथा
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने कार्तिक मास की चतुर्दशी के दिन काशी के मणिकर्णिका घाट पर स्नान किया और भगवान शिव को एक हजार कमल के पुष्प अर्पित करने का संकल्प किया। फिर भगवान विष्णु ने भगवान शिव का अभिषेक करके पूजन आरम्भ किया। Vaikuntha Chaturdashi Vrat Katha
भगवान शिव ने भगवान विष्णु की परीक्षा लेने के लिये एक हजार कमल में से एक कमल का फूल अदृश्य कर दिया। एक के बाद एक करके जब भगवान विष्णु ने सभी कमल के पुष्प शिव जी पर चढ़ाये तो उन्हे एक पुष्प कम मिला। अपना संकल्प अधूरा रहता देख भगवान विष्णु को विचार आया कि मुझे कमलनयन के नाम से पुकारा जाता है अर्थात मेरे नयन कमल के समान हैं। यही विचार करके उन्होने अपना एक नेत्र भगवान शिव को चढ़ा दिया।
भगवान विष्णु की भक्ति देखकर भगवान शिव अतिप्रसन्न हुये और तभी भगवान शिव ने प्रकट होकर विष्णु जी को सुदर्शन चक्र भेंट किया और कहा, “आपके समान कोई दूसरा नही हो सकता। आप मुझे अतिप्रिय हो। आज के दिन जो भी कोई आपकी और मेरी पूजा करेगा उसके सभी पापों का नाश हो जायेगा।“ Vaikuntha Chaturdashi Vrat Katha
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बैकुंठ चतुर्दशी व्रत कथा || Vaikuntha Chaturdashi Vrat Katha – द्वितीय कथा
एक धार्मिक कथा के अनुसार नारद जी धरती के लोगो के दुख और संताप को देखकर बहुत दुखी हुये और धरतीवासियों के दुखों के निवारण के लिये भगवान विष्णु के पास गये। Vaikuntha Chaturdashi Vrat Katha
नारद जी को देखकर भगवान ने उन्हे आदर से पूछा , “हे देव ऋषि! आज आपका यहाँ आना कैसे हुआ?” तब नारद जी ने कहा, “प्रभु आप तो अंतर्यामी हो। आप अपने इस भक्त के मन का हाल भी जानते हो। धरती पर रहने वाले प्राणी अलग-अलग योनियों में जन्म लेकर नाना प्रकार के दुख झेल रहे हैं। उनको उन दुखों से मुक्त करने और मोक्ष प्राप्ति के लिये कोई आसान सा उपाय बताइये।“
तब भगवान विष्णु ने नारदजी से कहा, “हे नारद! तुमने पृथ्वी पर रहने प्राणियों के हित के लिये बहुत अच्छा प्रश्न किया हैं। जो भी कोई मनुष्य कार्तिक मास की शुक्लपक्ष की चतुर्दशी के दिन पूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ मेरा व्रत एवं पूजन करेगा, उसके सभी कष्टों का निवारण हो जायेगा और मरणोपरांत सीधे वैकुण्ठ धाम को प्राप्त करेगा। साथ ही कार्तिक मास की शुक्लपक्ष की चतुर्दशी के दिन जो भी कोई मृत्यु को प्राप्त होगा, उसे भी वैकुण्ठ की प्राप्ति होगी।“ Vaikuntha Chaturdashi Vrat Katha
भगवान विष्णु ने अपने द्वारपाल जय और विजय को बुलाकर आदेश दिया कि कार्तिक मास की शुक्लपक्ष की चतुर्दशी के दिन वैकुण्ठ के द्वार खुले रहेंगे। इस दिन प्राण त्यागने वाले को भी वैकुण्ठ धाम प्राप्त होगा। तभी से कार्तिक मास की शुक्लपक्ष की चतुर्दशी को वैकुण्ठ चतुर्दशी के नाम से पुकारा जाने लगा।
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बैकुंठ चतुर्दशी व्रत कथा || Vaikuntha Chaturdashi Vrat Katha – तृतीय कथा
प्राचीन समय में एक गॉव में एक ब्राह्मण रहता था। उसका नाम धनेश्वर था। जन्म से तो वो ब्राह्मण था किन्तु कर्म के बहुत ही पापी था। उसने जीवन में अनेक पापकर्म किये।
सन्योगवश एक बार धनेश्वर वैकुंठ चतुर्दशी के दिन गोदावरी नदी में स्नान के लिए गया। वहाँ बहुत से भक्त भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना कर रहे थे। भक्तों की उस भीड़ में और ऐसे धार्मिक वातावरण में धनेश्वर भी उनके साथ पूजा करने लगा। भक्तों की संगत से उसे भी पुण्य प्राप्त हुआ। Vaikuntha Chaturdashi Vrat Katha
इससे उसके समस्त पापों का नाश हो गया और मृत्यु के उपरांत वो वैकुंठ धाम को चला गया।
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बैकुंठ चतुर्दशी व्रत कथा || Vaikuntha Chaturdashi Vrat Katha – चतुर्थ कथा
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार महाभारत के युद्ध के बाद गंगापुत्र भीष्म जब बाणों की शैया पर थे तब उन्होने सूर्य के उत्तरायण पर प्राण त्यागने का निश्चय किया। वो कार्तिक मास का समय था जब सभी पाण्ड़व श्रीकृष्ण के साथ भीष्म के पास राजधर्म का ज्ञान पाने के लिये जाते थे।
भीष्म ने उन्हे राज, धर्म, निति, अर्थशास्त्र, मोक्ष आदि सभी विषयों पर उपदेश दिये। उनके द्वारा दिये गये उपदेशों को सुनकर भगवान श्रीकृष्ण बहुत प्रभावित हुये और उन्होने भीष्म से कहा, “ आपने अपने अनुभव और ज्ञान से सभी का मार्ग प्रशस्त किया हैं। आपके जैसा धर्मात्मा और ज्ञानी अब कदाचित ही इस धरती पर पुन:जन्म लेगा। कार्तिक मास की एकादशी से लेकर कार्तिक मास की पूर्णिमा तक पाँच दिनो को मैं आपकी स्मृति में भीष्म पंचक का नाम देता हूँ। जो भी भीष्म पंचम का व्रत करेगा उसके सभी पाप नष्ट हो जायेगें। वो संसार के समस्त सुखों का उपभोग करके मरणोपरान्त मोक्ष को प्राप्त होगा।“ Vaikuntha Chaturdashi Vrat Katha
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