त्रिपुर भैरवी हृदय स्तोत्र || Tripura Bhairavi Hridaya Stotra || Tripura Bhairavi Hrudayam Stotram

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त्रिपुर भैरवी हृदय स्तोत्र || Tripura Bhairavi Hridaya Stotra || Tripura Bhairavi Hrudayam Stotram

यह तो आप सब जानते है की त्रिपुर भैरवी महाविद्या दस महाविद्याओं में छठी स्थान की साधना मानी जाती हैं ! Tripura Bhairavi Hridaya Stotra पढ़ने से साधक को धन, धान्य और यश आदि की प्राप्ति होती है । Tripura Bhairavi Hridaya Stotra पढ़ने से साधक के जीवन से दरिद्रता पूर्ण रूप से समाप्त हो जाती है !! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !! जय श्री मेरे पूज्यनीय माता – पिता जी !! यदि आप अपनी कुंडली दिखा कर परामर्श लेना चाहते हो तो या किसी समस्या से निजात पाना चाहते हो तो कॉल करके या नीचे दिए लाइव चैट ( Live Chat ) से चैट करे साथ ही साथ यदि आप जन्मकुंडली, वर्षफल, या लाल किताब कुंडली भी बनवाने हेतु भी सम्पर्क करें Mobile & Whats app Number : 9667189678 Tripura Bhairavi Hridaya Stotra By Online Specialist Astrologer Sri Hanuman Bhakt Acharya Pandit Lalit Trivedi.

त्रिपुर भैरवी हृदय स्तोत्र || Tripura Bhairavi Hridaya Stotra || Tripura Bhairavi Hrudayam Stotram

मेरौ गिरिवरेगौरी शिवध्यानपरायणा ।

पार्वती परिपप्रच्छ परानुग्रहवाञ्छया ॥ १ ॥

श्रीपार्वत्युवाच-

भगवंस्त्वन्मुखाम्भोजाच्छ्रुता धर्मा अनेकशः ।

पुनश्श्रोतुं समिच्छामि भैरवीस्तोत्रमुत्तमम् ॥ २ ॥

श्रीशङ्कर उवाच-

शृणु देवि प्रवक्ष्यामि भैरवी हृदयाह्वयं ।

स्तोत्रं तु परमं पुण्यं सर्वकल्य़ाणकारकम् ॥ ३ ॥

यस्य श्रवणमात्रेण सर्वाभीष्टं भवेद्ध्रुवं ।

विना ध्यानादिना वाऽपि भैरवी परितुष्यति ॥ ४ ॥

ओं अस्य श्रीभैरवीहृदयमन्त्रस्य दक्षिणामूर्तिः ऋषिः पंङ्क्तिश्छन्दः – भयविध्वंसिनी भैरवीदेवता – हकारो बीजं – रीं शक्तिः – रैः कीलकं सर्वभयविध्वंसनार्थे जपे विनियोगः ॥

अथ करन्यासः ।

ओं ह्रीं अङ्गुष्ठाभ्यां नमः ।

ओं श्रीं तर्जनीभ्यां नमः ।

ओं ऐं मध्यमाभ्यां नमः ।

ओं ह्रीं अनामिकाभ्यां नमः ।

ओं श्रीं कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।

ओं ऐं करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ॥

अथाङ्गन्यासः ।

ओं ह्रीं हृदयाय नमः ।

ओं श्रीं शिरसे स्वाहा ।

ओं ऐं शिखायै वषट् ।

ओं ह्रीं कवचाय हुं ।

ओं श्रीं नेत्रत्रयाय वौषट् ।

ओं ऐं अस्त्राय फट् ।

ध्यानम् ।

देवैर्ध्येयां त्रिनेत्रामसुरभटघनारण्यघोराग्नि रूपां

रौद्रीं रक्ताम्बराढ्यां रति घटघटितो रोजयुग्मोग्ररूपाम् ।

चन्द्रार्धभ्राजि भव्याभरण करलसद्बालबिम्बां भवानीं

सिन्दूरापूरिताङ्गीं त्रिभुवनजननीं भैरवीं भावयामि ॥ १ ॥

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पञ्चचामरवृत्तम् –

भवभ्रमत्समस्तभूत वेदमार्गदायिनीं

दुरन्तदुःखदारिणीं सुरद्रुहाम्भ वप्रदां भवान्धकारभेदन प्रभाकरां |

मितप्रभां भवच्छिदां भजामि भैरवीं सदा ॥ २ ॥

उरः प्रलम्बिताहिमाल्यचन्द्रबालभूषणां नवाम्बुदप्रभां सरोजचारुलोचनत्रयां |

सुपर्वबृन्दवन्दितां सुरापदन्तकारकां भवानुभावभाविनीं भजामि भैरवीं सदा ॥ ३ ॥

अखण्डभूमि मण्डलैक भारधीरधारिणीं सुभक्तिभावितात्मनां विभूतिभव्यदायिनीं |

भवप्रपञ्चकारिणीं विहारिणीं भवाम्बुधौ भवस्यहृदयभाविनीं भजामि बैरवीं सदा ॥ ४ ॥

शरच्चमत्कृतार्ध चन्द्रचन्द्रिकाविरोधिक प्रभावती मुखाब्ज मञ्जुमाधुरी मिलद्गिरां |

भुजङ्गमालया नृमुण्डमालया च मण्डितां सुभक्तिमुक्तिभूतिदां भजामि भैरवीं सदा ॥ ५ ॥

सुधाम्शुसूर्यवह्नि लोचनत्रयान्विताननां नरान्तकान्तक प्रभूति सर्वदत्तदक्षिणां |

समुण्डचण्डखण्डन प्रचण्डचन्द्रहासिनीं तमोमतिप्रकाशिनीं भजामि भैरवीं सदा ॥ ६ ॥

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त्रिशूलिनीं त्रिपुण्ड्रिनीं त्रिखण्डिनीं त्रिदण्डिनीं गुणत्रयातिरिक्तमप्यचिन्त्यचित्स्वरूपिणीं |

सवासवाऽदितेयवैरि बृन्दवम्शभेदिनीं भवप्रभावभाविनीं भजामि भैरवीं सदा ॥ ७ ॥

सुदीप्तकोटिबालभानुमण्डलप्रभाङ्गभां दिगन्तदारितान्धकार भूरिपुञ्जपद्धतिं |

द्विजन्मनित्यधर्मनीतिवृद्धिलग्नमानसां सरोजरोचिराननां भजामि भैरवीं सदा ॥ ८ ॥

चलत्सुवर्णकुण्डल प्रभोल्लसत्कपोलरुक् समाकुलाननाम्बुजस्थशुभ्रकीर नासिकां |

सचन्द्रभालभैरवास्य दर्शन स्पृहच्चकोर-नीलकञ्जदर्शनां भजामि भैरवीं सदा ॥ ९ ॥

इदंहृदाख्यसङ्गतस्तवं पठन्तियेऽनिशं पठन्ति ते कदापिनान्धकूपरूपवद्भवे |

भवन्ति च प्रभूतभक्ति मुक्तिरूप उज्ज्वलाः स्तुता प्रसीदति प्रमोदमानसा च भैरवी ॥ १० ॥

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यशोजगत्यजस्रमुज्ज्वलञ्जयत्यलंसमो न तस्य जायते पराजयोऽञ्जसा जगत्त्रये |

सदा स्तुतिं शुभामिमां पठत्यनन्यमानसो भवन्ति तस्य सम्पदोऽपि सन्ततं सुखप्रदाः ॥ ११ ॥

जपपूजादिकास्सर्वाः स्तोत्रपाठादिकाश्च याः | 

भैरवीहृदयस्यास्य कलान्नार्हन्ति षोडशीम् ॥ १२ ॥

किमत्र बहिनोक्तेन शृणु देवि महेश्वरि |

नातः परतरं किञ्चित् पुण्यमस्ति जगत्त्रये ॥ १३ ॥

इति श्रीभैरवकुलसर्वस्वे श्रीभैरवीहृदयस्तोत्रम् ॥

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