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श्री शारदा कुसुमाञ्जलि || Sri Sharada Kusumanjali

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श्री शारदा कुसुमाञ्जलि || Sri Sharada Kusumanjali

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श्री शारदा कुसुमाञ्जलि || Sri Sharada Kusumanjali

श्रीरामकृष्णगुरुदेवनिबद्धभावा श्रीरामकृष्णपरिपूजितपादपद्मा।

श्रीदक्षिणेश्वरगता भवतारिणी सा श्रीशारदा विजयते जगदेकमाता॥१॥

श्वेताम्बरावृतविशुद्धमनोज्ञगात्रीं शान्तप्रसन्नवदनां करुणार्द्रनेत्राम्।

ध्यायामि तां हृदयपद्मसुखासनस्थां श्रीशारदां परमहंसमहाविभूतिम् ॥२॥

अम्ब प्रसीद भुवनेश्वरि मातृदेवि, त्वामप्रमेयमहिमार्जितविश्वपूजाम्।

क्षान्त्याधरीकृतधरां सरलान्तरङ्गां निश्शेषदुःखशमनीं शरणं प्रपद्ये ॥३॥

विद्याविवादजटिलत्वविहीनभावा स्वात्मानुभूतिमधुरा सततं प्रसन्ना।

आनन्दरूपिणि पदाब्जसमाश्रितानां शान्तिप्रदा विजयसे ललिताम्बिके त्वम्॥४॥

योगेश्वरेश्वरमहागुरुधर्मपत्नि, सर्वार्थदे सकलशक्त्यवताररूपे।

आर्तप्रपन्नपरिपालनबद्धदीक्षे श्रीशारदाम्ब जगदम्ब नमो नमस्ते ॥५॥

दिव्यानुभूतिमुदितौ पितरौ विधाय त्वं लब्धवत्यसि विशिष्टनवावतारम्।

येन प्रसिद्धिमभजत्किल धर्मवाटी वङ्गेषु मङ्गलतमा जयरामवाटी॥६॥

ध्यानं जपं च परिपूजनमम्ब, बाल- लीलासु तत्परतयैव चकर्थ नित्यम्।

अध्यात्मजीवितमनन्तरभावि मन्ये धन्या विशुद्धहृदया समसूचयस्त्वम्॥७॥

बाला वधूस्त्वमयि केवलपञ्चवर्षा प्रौढो युवा ननु वरः स तु रामकृष्णः।

हंहो विरक्तहृदयश्च भवद्विवाहो जातस्तथापि च परस्परभावबद्धः ॥८॥

श्रीशारदापरमहंसविशुद्धदिव्य- दाम्पत्यमद्भुततमप्रणयप्रभावम्।

विश्वोपदेशजननं जयतात् गुरुभ्या- माभ्यां नमोऽस्तु सततं जगतः पितृभ्याम् ॥९॥

काले गते च युवती भवती जगाम श्रीदक्षिणेश्वरमनुप्रियवासभूमिम्।

आध्यात्मभौतिकसमन्वयशिक्षणेन रेमे च तद्गुरुदयाशिशिरान्तरङ्गा ॥१०॥

श्रीशारदाम्ब निगमादृत भर्तृसेवा लब्धावकाशमुदिता विजहौ विषादम्।

अध्यात्मभौतिकसमन्वयशिक्षणेन रेमे च तद्गुरुदयाशिशिरान्तरङ्गा ॥११॥

त्वं तत्र पुण्यचरिता निगृहीतचित्ता श्रीरामकृष्णचरणार्पितसर्वभावा ।

आनन्दिता विविधसेवनमाचरन्ती पूर्णामवापिथ कृतार्थतमामवस्थाम् ॥१२॥

नानाविधेषु कठिनेषु परीक्षणेषु हे देवि लब्धविजया विनयावनम्रा।

सम्मनिता गुरुवरेण समस्तभक्त- वृन्देन पूजितपदा सुतरां चकासे ॥१३॥

त्वं षोडशीमहितपूजनमात्मनाथ- योगेश्वरेण विहितं परिगृह्य शान्ता।

सुव्यक्तशक्तिभरितामलचित्तपद्मा धन्या बभूविथ जगद्गुरुधर्मपत्नी ॥१४॥

शुश्रूषया परमहंसगुरोस्तदीय- दिव्योपदेशमननेन च पूर्णबोधा ।

भक्तावलीपरिनिषेवितपादपद्मा त्वं शोभसे स्म जनपावनि मातृदेवि॥१५॥

वन्ये च तस्करपतेः पथि सौम्यभाव- मापाद्य वन्द्यपितृभावमुपादधाने।

स्नेहात्मिके सकलमानसहंसि देवि तुभ्यं नमः पतितपावनि हे भवानि॥१६॥

हे मातृदेवि गुरुदेवमहासमाधे- रर्वागनन्यहृदया तमनुस्मरन्ती।

तद्दिव्यदर्शननिरस्तसमस्तशङ्का संप्रापिथ प्रथितनित्यसुमङ्गलीत्वम् ॥१७॥

तीर्थाटनेन सुसमाहितचित्तवृत्ति- रातन्वती हृदयनाथनिदेशमात्रम्।

स्त्रीधर्मसुस्थिरधिया पतिगेहमेत्य क्लेशेन वस्तुमुपचक्रमिषे त्वमेका ॥१८॥

दारिद्र्यमुत्कटमसज्जनदुर्विमर्श- मन्यच्च पीडनमहो भवती विषेहे।

श्रीरामकृष्णभजने जपपूजनादौ निष्ठान्ववर्धत दिनंप्रति निर्विशङ्कम् ॥१९॥

धीरा जिगाय परुषाग्निपरीक्षणेऽस्मि- न्नात्मेश्वरार्पितविशुद्धदृढान्तरङ्गा।

क्षीणापि दिव्यतनुकान्तिरशेषपूज्या संरेजिषे प्रतिपदीव शशाङ्कलेखा ॥२०॥

ज्ञात्वैतदम्ब, सहसा गुरुदेवशिष्यै- रत्यन्तभक्तिविनयावनतान्तरङ्गैः।

संपूजिता सुविहिताखिलकार्यजाता सस्मर्थ हन्त गुरुदेवदयामनन्ताम्॥२१॥

अम्ब प्रसूतिकठिनव्यथया विनैव लब्ध्वा विनीतहृदयांस्तनयाननेकान्।

प्रेमप्रकर्षलहरीतरलान्तरङ्गा त्वं देवि सस्मरिथ भर्तृगिरं सहर्षम्॥२२॥

मातस्तदाप्रभृति विश्रुतकालिघट्टं त्वं पावनीमपि मुदा जयरामवाटीम्।

श्रीरामकृष्णचरणस्मरणे निमग्ना सद्भक्तपूजितपदा चिरमध्यवात्सीः ॥२३॥

योगत्रयेश्वरि विशुद्धविबोधरूपे मन्त्रोपदेशमखिलं गुरुदेवदत्तम्।

कारुण्यपूर्णहृदया ददिथ प्रपन्न- लोकाय हे पतितपावनि मातृदेवि॥२४॥

आध्यात्मिकोन्नततले विहरन्त्यथापि गृह्यं च बन्धमधृथा ननु चित्रमेतत्।

यद्वा तवैतदुचितं खलु रामकृष्ण- देवस्य धर्मगृहिणी भवती विशुद्धा ॥२५॥

श्रीशारदाम्ब भवती निजजीवितेन वैचित्र्यबन्धुरतमेन विशुद्धिभाजा।

पूर्णप्रभावमखिलेश्वरि भारतीय- स्त्रीत्वस्य दर्शितवती महिते नमस्ते ॥२६॥

ध्यायामि त्वां दधानां जगदतिसुभगं स्थूलरूपं विचित्रं चैतन्यं चापि सूक्ष्मं वपुरखिलपदार्थेषु नित्यं निगूढम्।

चिल्लीलानित्यतृप्तां प्रणतजनमनोदर्पणोद्भासिरूपां देवीं श्रीशारदाम्बां जय जननि नमस्ते नमस्ते नमस्ते॥२७॥

समर्पणम् श्री शारदाम्ब महिते तव सन्निधाने ’तारावलीय’मयि देवि समर्प्यमाणा।

हे विश्वरूपिणि तवास्तु विनीतशुद्ध नीराजनं च ललितं शिवदे नमस्ते ॥ 

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