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श्री राधिका अष्टकम || Sri Radhika Ashtakam || Radhikastakam
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श्री राधिका अष्टकम || Sri Radhika Ashtakam || Radhikastakam
रस-वलित-मृगाक्षी मौलिमाणिक्यलक्ष्मीः,
प्रमुदितमुरवैरिप्रेमवापीमराली ।
व्रजवरवृषभानोः पुण्यगीर्वाणवल्ली,
स्नपयतु निजदास्ये राधिका मां कदा नु ॥ १॥
स्फुरदरुणदुकूलद्योतितोद्यन्नितम्ब-,
स्थलमभिवरकाञ्चीलास्यमुल्लासयन्ती ।
कुचकलशविलासस्फीतमुक्तासरःश्रीः,
स्नपयतु निजदास्ये राधिका मां कदा नु ॥ २॥
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सरसिजवरगर्भाखर्वकान्तः समुद्यत्-,
तरुणिमघनसाराश्लिष्टकैशोरसीधुः ।
दरविकसितहास्यस्यन्दबिम्बाधराग्रा,
स्नपयतु निजदास्ये राधिका मां कदा नु ॥ ३॥
अतिचटुलतरं तं काननान्तर्मिलन्तं,
व्रजनृपतिकुमारं वीक्ष्य शङ्काकुलाक्षी ।
मधुरमधुवचोभिः संस्तुता नेत्रभङ्गया,
स्नपयतु निजदास्ये राधिका मां कदा नु ॥ ४॥
व्रजकुलमहिलानां प्राणभूताऽखिलानां,
पशुपपतिगृहिण्याः कृष्णवत्प्रेमपात्रम् ।
सुललितललितान्तः स्नेहफुल्लान्तरात्मा,
स्नपयतु निजदास्ये राधिका मां कदा नु ॥ ५॥
निरवधि सविशाखा शाखियूथप्रसूनैः,
स्रजमिह रजयन्ती वैजयन्तीं वनान्ते ।
अघविजयवरोरः प्रेयसी श्रेयसी सा,
स्नपयतु निजदास्ये राधिका मां कदा नु ॥ ६॥
प्रकटितस्वनिवासं स्निग्धवेणुप्रणादैः,
द्रुतगतिहरिमारात्प्राप्य कुञ्जे स्मिताक्षी ।
श्रवणकुहरकण्डूं तन्वती नम्रवक्त्रा,
स्नपयतु निजदास्ये राधिका मां कदा नु ॥ ७॥
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अमलकमलराजिस्पर्शवातप्रशीते,
निजसरसि निदाघे सायमुल्लासिनीयम् ।
परिजनगणयुक्ता क्रीडयन्ती बकारिं,
स्नपयतु निजदास्ये राधिका मां कदा नु ॥ ८॥
पठति विमलचेताः मिष्टराधाष्टकं यः,
परिहृतनिखिलाशासन्ततिः कातरः सन् ।
पशुपपतिकुमारः कम्रमामोदितस्तं,
निजजनगणमध्ये राधिकायास्तनोति ॥ ९॥
इति श्रीराधिकाष्टकं सम्पूर्णम् ।
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