श्री पूर्णमङ्गलेश सुप्रभातम् || Sri Purnamangalesha Suprabhatam

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श्री पूर्णमङ्गलेश सुप्रभातम् || Sri Purnamangalesha Suprabhatam

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श्री पूर्णमङ्गलेश सुप्रभातम् || Sri Purnamangalesha Suprabhatam

नमः शिवाय पूर्णाय पूर्णमङ्गलवासिने ।

जागृहि त्वं महादेव, सुप्रभातमुपस्थितम्॥१॥

उत्तिष्ठोत्तिष्ठ भगवन् विश्वमङ्गलसिद्धये।

आकेकराक्षिकलया दासाननुगृहाण नः ॥२॥

नमस्ते चन्द्रचूडाय नमस्ते शूलपाणये।

नमस्ते नीलकण्ठाय नमस्ते विश्वमूर्तये ॥३॥

शंभो सदाशिव, जगत्त्रयमङ्गलात्मन्, गङ्गाधर, प्रणतभक्तजनार्तिहारिन्।

योगीन्द्रवन्दितविशुद्धपदारविन्द, श्रीपूर्णमङ्गलपते तव सुप्रभातम् ॥४॥

पश्याभ्युपैति भगवन्,  विमला विभात-लक्ष्मीरियं विदधति स्तुतिगीतकानि।

पूजासुमानि विकचानि सुसज्जयन्ती श्रीपूर्णमङ्गलपते, तव सुप्रभातम् ॥५॥

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प्राचीप्रसादसुमुखी भव, शुक्रदीप- हस्ता हि तिष्ठति भवत्पदसेवनोत्का।

मन्दं च वीजयति वायुरयं भवन्तं श्रीपूर्णमङ्गलपते, तव सुप्रभातम् ॥६॥

शैलास्तुषारविमलाम्बुकृताभिषेका विद्योतमानतरुगुल्मजटाकलापाः।

त्वद्ध्याननिश्चलतमाः परितः स्फुरन्ति श्रीपूर्णमङ्गलपते, तव सुप्रभातम् ॥७॥

एनं जगत्प्रकृतिपूजितपादपद्मं त्वं देवदेव, शितिकण्ठमकुण्ठशक्तिम्।

सेवामहे निखिलकामितसिद्धिहेतोः श्रीपूर्णमङ्गलपते, तव सुप्रभातम् ॥८॥

हे विश्वनाथ, धनदस्तवपादसाद-स्त्वं स्वीकरोषि भगवन्निव भिक्षुचर्याम्।

निस्स्वार्थजीवितमुदाहरसि त्वमित्थं श्रीपूर्णमङ्गलपते, तव सुप्रभातम् ॥९॥

भिक्षुस्त्वमत्रपरमाद्भुतकारिभिक्षा-दात्रीं प्रहृष्टहृदयः किलविप्रनारिम्।

प्रादर्शयः स्वमतिसुन्दरदिव्यरूपं श्रीपूर्णमङ्गलपते, तव सुप्रभातम् ॥१०॥

तत्स्थानमद्य विदितं किल तण्डुलाद्रि सान्निध्यमत्र भगवंस्तव संविभाव्य।

क्षेत्रं तवाथ निरमायि च विप्रवर्यैः श्रीपूर्णमङ्गलपते, तव सुप्रभातम् ॥११॥

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शास्ताऽम्बिकागणपतिश्च महाविभूम्नि त्वद्धाम्नि यत्र सततं कृतसन्निधानाः।

अन्वर्थनामकमिदं जयताद्विशुद्धं श्रीपूर्णमङ्गलपते, तव सुप्रभातम् ॥१२॥

शैलात्मजाललितलास्यकलानुविद्धं स्वं ताण्डवं प्रकटयन् विबुधैर्नुतस्त्वम्।

आनन्दरूप, नटराज, विधेहि शं नः श्रीपूर्णमङ्गलपते, तव सुप्रभातम् ॥१३॥

गङ्गाकलापशशिशेखर, तुल्यदृष्टे सर्वज्ञ, सर्वनुत, दीनजनैकबन्धो।

त्वामेकमद्भुतचरित्रमुपाश्रयामः श्रीपूर्णमङ्गलपते, तव सुप्रभातम् ॥१४॥

त्रय्यात्मक, त्रिनयन, त्रिपुरान्तक; श्री-गौरीपते, त्रिभुवनैकशरण्य, शंभो।

त्रायस्व नस्त्रिविधतापदवाग्निपातात् श्रीपूर्णमङ्गलपते, तव सुप्रभातम् ॥१५॥

यदीयताण्डवच्युतं यदङ्गसङ्गपावितं विभूतिलेशमाप्य हा!, महर्षयः प्रहर्षिताः।

हृदन्तशान्तिमाधुरीमनन्तसौख्यदायिनीं ददातु नो नटेश्वरः स पूर्णमङ्गलेश्वरः ॥१६॥

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दरिद्रभावदुःखितप्रमोददानदीक्षितो मदान्धदैत्यसञ्चयप्रणाशकारिवैभवः।

स्मरारिरन्तकान्तको विषाशनो दयानिधिः ददातु शं महेश्वरः स पूर्णमङ्गलेश्वरः ॥१७॥

गिरीन्द्रनन्दिनीप्रियं गिरीन्द्रमिन्दुशेखरं गिरामगोचरं शिवं निरीहनित्यपूजितम्।

भवाब्धितारकं भवं भजामहे भजामहे ददातु शं महेश्वरः स पूर्णमङ्गलेश्वरः ॥१८॥

नमोऽस्तु मुक्तिदायिने, मुनीन्द्रचित्तवासिने नमोऽस्तु शूलधारिणे, विपद्विमोक्षकारिणे।

नमोऽस्तु पापहारिणे, महाकपर्दधारिणे नमोऽस्तु पूर्णमङ्गलप्रकाशिने, नमो नमः॥१९॥

सुप्रभातस्तोत्रमिदं ये शृण्वन्ति पठन्ति वा तेभ्यो ददातु भगवान् भक्तिं सर्वार्थदायिनीम्॥२०॥

शक्त्या संसेव्यमानस्य पूर्णमङ्गलवासिनः।

महेश्वरस्य कारुण्यात् ग्रामोऽयं वृद्धिमाप्नुयात् ॥२१॥

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