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श्री गायत्री स्तोत्रम् || Sri Gayatri Stotram
गायत्री स्तोत्र देवी माँ गायत्री जी को समर्पित हैं ! Sri Gayatri Stotram पढ़ने के बहुत फ़ायदे हैं ! गायत्री स्तोत्र को नियमित पाठ करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाए पूर्ण होती है इसके साथ साथ गायत्री स्तोत्र पढ़ने से साधना में सफ़लता, अपने शरीर की रक्षा कवच का कार्य करता हैं ! Sri Gayatri Stotram आदि के बारे में बताने जा रहे हैं !! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !! यदि आप अपनी कुंडली दिखा कर परामर्श लेना चाहते हो तो या किसी समस्या से निजात पाना चाहते हो तो कॉल करके या नीचे दिए लाइव चैट ( Live Chat ) से चैट करे साथ ही साथ यदि आप जन्मकुंडली, वर्षफल, या लाल किताब कुंडली भी बनवाने हेतु भी सम्पर्क करें : 9667189678 Sri Gayatri Stotram By Online Specialist Astrologer Sri Hanuman Bhakt Acharya Pandit Lalit Trivedi.
श्री गायत्री स्तोत्रम् || Sri Gayatri Stotram
आदिशक्ते जगन्मातः भक्तानुग्रहकारिणि।
सर्वत्र व्यापिकेऽनन्ते श्रीसन्ध्ये ते नमोऽम्बिके॥१॥
त्वमेव सन्ध्ये गायत्रि सावित्री च सरस्वती।
ब्रह्माणी वैष्णवी रौद्री रक्तश्वेता सितेतरा ॥२॥
प्रातर्बाला च मध्याह्ने यौवनस्था भवेत् पुनः।
वृद्धा सायं भगवती चिन्त्यते मुनिभिः सदा ॥३॥
हंसस्था गरुडारूढा तथा वृषभवाहिनी।
ऋग्वेदाद्ध्यायिनी भूमौ दृश्यते या तपस्विभिः ॥४॥
यजुर्वेदं पठन्ती च अन्तरिक्षे विराजते।
या सामगाऽपि सर्वेषु भ्राम्यमाणा तथा भुवि ॥५॥
रुद्रलोकं गता त्वं हि विष्णुलोकनिवासिनी।
त्वमेव ब्रह्मणो लोकेऽमर्त्यानुग्रहकारिणी ॥६॥
सप्तर्षिप्रीतिजननी माया बहुवरप्रदा।
शिवयोः करनेत्रोत्था ह्यश्रुस्वेदसमुद्भवा ॥७॥
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आनन्दजननी दुर्गा दशधा परिपठ्यते ।
वरेण्या वरदा चैव वरिष्ठा वरवर्णिनी ॥८॥
गरिष्ठा च वराही च वरारोहा च सप्तमी।
नीलगंगा तथा सन्ध्या सर्वदा भोगमोक्षदा॥९॥
भागीरथी मर्त्यलोके पाताले भोगवत्यपि।
त्रैलोक्यवाहिनी देवी स्थानत्रयनिवासिनी॥१०॥
भूर्लोकस्था त्वमेवासि धरित्री लोकधारिणी।
भुवर्लोके वायुशक्तिः स्वर्लोके तेजसां निधिः ॥११॥
महर्लोके महासिद्धिः जनलोकेऽजनेत्यपि।
तपस्विनी तपोलोके सत्यलोके तु सत्यवाक्॥१२॥
कमला विष्णुलोके च गायत्री ब्रह्मलोकगा।
रुद्रलोके स्थिता गौरी हरार्धांगनिवासिनी ॥१३॥
अहमो महतश्चैव प्रकृतिस्त्वं हि गीयसे।
साम्यावस्थात्मिका त्वं हि शबलब्रह्मरूपिणी ॥१४॥
ततः परा पराशक्तिः परमा त्वं हि गीयसे।
इच्छाशक्तिः क्रियाशक्तिः ज्ञानशक्तिस्त्रिशक्तिदा ॥१५॥
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गंगा च यमुना चैव विपाशा च सरस्वती।
सरयू रेविका सिन्धुः नर्मदैरावती तथा ॥१६॥
गोदावरी शतद्रुश्च कावेरी देवलोकगा।
कौशिकी चन्द्रमा चैव वितस्ता च सरस्वती ॥१७॥
गण्डकी तापिनी तोया गोमती वेत्रवत्यपि।
इडा च पिङ्गला चैव सुषुम्ना च तृतीयका॥१८॥
गान्धारी हस्तजिह्वा च पूषाऽपूषा तथैव च ।
अलंबुषा कुहूश्चैव शंखिनी प्राणवाहिनी ॥१९॥
नाडी च त्वं शरीरस्था गीयसे प्राक्तनैर्बुधैः।
हृद्पद्मस्था प्राणशक्तिः कण्ठस्था स्वप्ननायिका ॥२०।।
तालुस्था त्वं सदाधारा बिन्दुस्था बिन्दुमालिनी।
मूले तु कुण्डलीशक्तिः व्यापिनी केशमूलगा ॥२१॥
शिखामध्यासना त्वं हि शिखाग्रे तु मनोन्मनी।
किमन्यत् बहुनोक्तेन यत् किञ्चित् जगती त्रये ॥२२॥
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तत्सर्वं त्वं महादेवि श्रिये सन्ध्ये नमोऽस्तु ते।
इतीदं कीर्तितं स्तोत्रं सन्ध्यायां बहुपुण्यदम् ॥२३॥
महापापप्रशमनं महासिद्धिविधायकम्।
य इदं कीर्तयेत् स्तोत्रं सन्ध्याकाले समाहितः ॥२४॥
अपुत्रः प्राप्नुयात् पुत्रं धनार्थी धनमाप्नुयात्।
सर्वतीर्थतपोदानयज्ञयोगफलं लभेत् ॥२५॥
भोगान् भुक्त्वा चिरं कालमन्ते मोक्षमवाप्नुयात्।
तपस्विभिः कृतं स्तोत्रं स्नानकाले तु यः पठेत्॥२६॥
यत्र कुत्र जले मग्नः सन्ध्यामज्जनजं फलम्।
लभते नात्र संदेहः सत्यं सत्यं तु नारद ॥२७॥
शृणुयाद्योपि तद्भक्त्या स तु पापात् प्रमुच्यते ।
पीयूषसदृशं वाक्यं सन्ध्योक्तं नारदेरितम् ॥२८॥
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