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शिव कृतं दुर्गा स्तोत्र || Shiv Krit Durga Stotra || Sri Durga Stotram

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शिव कृतं दुर्गा स्तोत्र || Shiv Krit Durga Stotra || Sri Durga Stotram

शिव कृतं दुर्गा स्तोत्र ब्रह्मवैवर्त पुराण के श्रीकृष्ण जन्म खण्ड के अंतगर्त से लिया गया है ! शिव कृतं दुर्गा स्तोत्र का नियमित पाठ करने से अज्ञान को नाश और सभी मनोकामना पूर्ण होती हैं ! इस स्तोत्र को भगवान शिव जी ने भगवती दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए रचना की हैं !! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !! यदि आप अपनी कुंडली दिखा कर परामर्श लेना चाहते हो तो या किसी समस्या से निजात पाना चाहते हो तो कॉल करके या नीचे दिए लाइव चैट ( Live Chat ) से चैट करे साथ ही साथ यदि आप जन्मकुंडली, वर्षफल, या लाल किताब कुंडली भी बनवाने हेतु भी सम्पर्क करें : 9667189678 Shiv Krit Durga Stotra By Online Specialist Astrologer Sri Hanuman Bhakt Acharya Pandit Lalit Trivedi.

शिव कृतं दुर्गा स्तोत्र || Shiv Krit Durga Stotra || Sri Durga Stotram

श्रीमहादेव उवाच

रक्ष रक्ष महादेवि दुर्गे दुर्गतिनाशिनि। मां भक्त मनुरक्तं च शत्रुग्रस्तं कृपामयि॥

विष्णुमाये महाभागे नारायणि सनातनि। ब्रह्मस्वरूपे परमे नित्यानन्दस्वरूपिणी॥

त्वं च ब्रह्मादिदेवानामम्बिके जगदम्बिके। त्वं साकारे च गुणतो निराकारे च निर्गुणात्॥

मायया पुरुषस्त्वं च मायया प्रकृति: स्वयम्। तयो: परं ब्रह्म परं त्वं बिभर्षि सनातनि॥

वेदानां जननी त्वं च सावित्री च परात्परा। वैकुण्ठे च महालक्ष्मी: सर्वसम्पत्स्वरूपिणी॥

म‌र्त्यलक्ष्मीश्च क्षीरोदे कामिनी शेषशायिन:। स्वर्गेषु स्वर्गलक्ष्मीस्त्वं राजलक्ष्मीश्च भूतले॥

नागादिलक्ष्मी: पाताले गृहेषु गृहदेवता। सर्वशस्यस्वरूपा त्वं सर्वैश्वर्यविधायिनी॥

रागाधिष्ठातृदेवी त्वं ब्रह्मणश्च सरस्वती। प्राणानामधिदेवी त्वं कृष्णस्य परमात्मन:॥

गोलोके च स्वयं राधा श्रीकृष्णस्यैव वक्षसि। गोलोकाधिष्ठिता देवी वृन्दावनवने वने॥

श्रीरासमण्डले रम्या वृन्दावनविनोदिनी। शतश्रृङ्गाधिदेवी त्वं नामन चित्रावलीति च॥

दक्षकन्या कुत्र कल्पे कुत्र कल्पे च शैलजा।

देवमातादितिस्त्वं च सर्वाधारा वसुन्धरा॥

त्वमेव गङ्गा तुलसी त्वं च स्वाहा स्वधा सती।

त्वदंशांशांशकलया सर्वदेवादियोषित:॥

स्त्रीरूपं चापिपुरुषं देवि त्वं च नपुंसकम्।

वृक्षाणां वृक्षरूपा त्वं सृष्टा चाङ्कुररूपिणी॥

वह्नौ च दाहिकाशक्ति र्जले शैत्यस्वरूपिणी।

सूर्ये तेज:स्वरूपा च प्रभारूपा च संततम्॥

गन्धरूपा च भूमौ च आकाशे शब्दरूपिणी।

शोभास्वरूपा चन्द्रे च पद्मसङ्घे च निश्चितम्॥

सृष्टौ सृष्टिस्वरूपा च पालने परिपालिका।

महामारी च संहारे जले च जलरूपिणी॥

क्षुत्त्‍‌वं दया त्वं निद्रा त्वं तृष्णा त्वं बुद्धिरूपिणी। तुष्टिस्त्वं चापि पुष्टिस्त्वं श्रद्धा त्वं च क्षमा स्वयम्॥

शान्तिस्त्वं च स्वयं भ्रान्ति: कान्तिस्त्वं कीर्तिरेव च। लज्जा त्वं च तथा माया भुक्ति मुक्ति स्वरूपिणी॥

सर्वशक्ति स्वरूपा त्वं सर्वसम्पत्प्रदायिनी। वेदेऽनिर्वचनीया त्वं त्वां न जानाति कश्चन॥

सहस्त्रवक्त्रस्त्वां स्तोतुं न च शक्त : सुरेश्वरि। वेदा न शक्त : को विद्वान् न च शक्त ा सरस्वती॥

स्वयं विधाता शक्तो न न च विष्णु: सनातन:। किं स्तौमि पञ्चवक्त्रेण रणत्रस्तो महेश्वरि॥

कृपां कुरु महामाये मम शत्रुक्षयं कुरु।

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