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षटतिला एकादशी व्रत कथा || Shattila Ekadashi Vrat Katha || Shattila Ekadashi Vrat Kahani
षटतिला एकादशी माघ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि के दिन मनाई जाती हैं। हमारे हिन्दू धर्म में इस षट्तिला एकादशी व्रत को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता हैं। इस एकादशी का व्रत एवं पूजन करने से जातक को भगवान श्री विष्णु की कृपा प्राप्त होती हैं। षट्तिला एकादशी वाले दिन तिलों का प्रयोग करने का विशेष महत्व बताया गया हैं। षट्तिला एकादशी वाले दिन तिलों का छ: प्रकार से प्रयोग करना चाहियें।
- जातक को तिलों को पीसकर उसका उबटन लगाना चाहिये।
- स्नान वाले जल में तिल डालकर स्नान करना चाहिये।
- पीने वाले जल में तिल डालकर उसे पीना चाहिये।
- तिल से बने भोजन और मिष्ठान का भगवान को भोग लगानी चाहिए। तिल से बनी वस्तुओं का सेवन करना चाहिये।
- जातक को तिल और अन्नादि का दान करना चाहियें।
- आहुति सामग्री में तिल डालकर हवन में आहूति देनी चाहियें।
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षटतिला एकादशी व्रत कब हैं ? || Shattila Ekadashi Vrat Kab Hai 2022 :
Shattila Ekadashi Vrat को जनवरी महीने की 28 तारीख़, वार शुक्रवार के दिन बनाई जायेगीं !
षटतिला एकादशी व्रत कथा || Shattila Ekadashi Vrat Katha
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को माघ मास की कृष्णपक्ष की एकादशी जिसे षट्तिला एकादशी कहते है उसकी कथा सुनायी थी। भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को बताया सबसे पहले षट्तिला एकादशी व्रत की कथा भगवान विष्णु ने देवर्षि नारद जी को सुनायी थी। Shattila Ekadashi Vrat Katha
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पौराणिक कथा के अनुसार एक बार नारद जी भगवान विष्णु से मिलने वैकुण्ठ लोक में गये। वहाँ उन्होने भगवान विष्णु से षट्तिला एकादशी व्रत का महत्व सुनाने के लिये कहा। तब भगवान विष्णु ने उनको षट्तिला एकादशी की कथा सुनाते हुये बताया कि अति प्राचीन काल में एक नगर में एक धार्मिक विचारों की वृद्धा ब्राह्मणी रहा करती थी। वो विधवा थी और उसके कोई संतान भी नही थी। उसने अपना सम्पूर्ण जीवन प्रभु भक्ति में बिताने का निश्चय कर रखा था। इसलिए वो हमेशा प्रभु भक्ति में लीन रहती। भगवान विष्णु ने कहा वो मेरी अनन्य भक्त थी। वो पूरे विधि-विधान और श्रद्ध-भक्ति के साथ मेरी पूजा किया करती थी। उसने मुझे प्रसन्न करने के लिये पूरे एक माह तक व्रत रखा और मेरी आराधना मे लीन रही। इतने कठोर व्रत के प्रभाव से उसके सभी पापों का नाश हो गया और वो निर्मल हो गयी। Shattila Ekadashi Vrat Katha
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भगवान विष्णु ने नारद जी को बताया कि वो मेरी भक्ति तो पूरे मन से करती थी किंतु उसमें एक कमी थी, कि वो कभी किसी को भोजन सामग्री अन्नादि दान नही करती थी। एक बार मैं स्वयं उसके पास वेष बदलकर भिक्षा माँगने के लिये गया था। उसने मुझे भोजन या अन्न देने के स्थान पर मिट्टी का ढेला दे दिया। Shattila Ekadashi Vrat Katha
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धरती पर अपना जीवनपूर्ण करने के बाद अपने पुण्य कर्मों के प्रभाव से उसे स्वर्ग लोक में स्थान मिला। किंतु अन्नादि का दान ना करने के कारण उसे स्वर्ग में एक खाली कुटिया मिली जिसमें एक आम का वृक्ष था। यह देखकर उसे बहुत दुख हुआ और उसने मुझे याद करते हुये कहा, “हे प्रभु! मैंने जीवनभर आपकी उपासना की और उसके फलस्वरूप मुझे यह खाली कुटिया प्राप्त हुयी है। जिसमें सुख-सुविधायें तो दूर नित्य जरूरत का सामान भी नही हैं।“ तब मैंने उसे दर्शन देकर कहा कि तुमने पूरे जीवन मेरी उपासना की किंतु जरूरतमंद को भोजन आदि का दान नही किया। एक बार जब मैं स्वयं तुम्हारे द्वार आया तो तुमने मुझे मिट्टी का ढ़ेला दान में दिया। यह उसी का परिणाम हैं। अब मैं तुम्हे उपाय बताता हूँ जिससे तुम्हे यहाँ सभी सुख-सुविधायें प्राप्त हो सकें। Shattila Ekadashi Vrat Katha
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तब भगवान विष्णु ने उस ब्राह्मणी को बताया कि तुम्हारे पास देवकन्याएं आयेंगी। जब वो तुम्हारे पास आये तो तुम द्वार तब तक मत खोलना जब तक वो तुम्हे षटतिला एकादशी के व्रत की विधि ना बतायें। उनसे षटतिला एकादशी के व्रत का सारा विधान जानकर तुम पूरी श्रद्धा-भक्ति के साथ उसका पालन करना। उसके प्रभाव से तुम्हारी सभी मनोकामनायें पूर्ण हो जायेंगी। तुम्हारी कुटिया धन-धान्य से भर जायेगी। Shattila Ekadashi Vrat Katha
उस ब्राह्मणी ने वैसा ही किया और उस व्रत के प्रभाव से उसकी कुटिया धन-धान्य से भर गयी। वो सब जो वो वृद्धा प्राप्त करना चाहती थी उसे वो सब प्राप्त हुआ।
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