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शंकर जी की आरती || Shankar Ji Ki Aarti || Shankar Ki Aarti

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श्री शंकर जी की आरती || Shri Shankar Ji Ki Aarti || Shankar Ji Ki Aarti

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श्री शंकर जी की आरती || Shri Shankar Ji Ki Aarti || Shankar Ji Ki Aarti

धन धन भोले नाथ तुम्हारे कौड़ी नहीं खजाने में,

तीन लोक बस्ती में बसाये आप बसे वीराने में |

जटा जूट के मुकुट शीश पर गले में मुंडन की माला,

माथे पर छोटा  चन्द्रमा कपाल में करके व्याला |

जिसे देखकर भय ब्यापे सो गले बीच  लपटे काला,

और तीसरे नेत्र में तेरे महा प्रलय की है ज्वाला |

पीने  को हर भंग रंग है आक धतुरा खाने का,

तीन लोक बस्ती में बसाये आप बसे  वीराने में |

नाम तुम्हारा है अनेक पर सबसे उत्तत है गंगा,

वाही  ते शोभा पाई है विरासत सिर पर गंगा |

भूत बोतल संग में सोहे यह  लश्कर है अति चंगा,

तीन लोक के दाता बनकर आप बने क्यों भिखमंगा |

अलख  मुझे बतलाओ क्या मिलता है अलख जगाने में,

ये तो सगुण स्वरूप है निर्गुन  में निर्गुन हो जाये |

पल में प्रलय करो रचना क्षण में नहीं कुछ  पुण्य आपाये,

चमड़ा शेर का वस्त्र पुराने बूढ़ा बैल सवारी को |

जिस  पर तुम्हारी सेवा करती, धन धन शैल कुमारी को,

क्या जान क्या देखा इसने  नाथ तेरी सरदारी को |

सुन तुम्हारी ब्याह की लीला भिखमंगे के गाने में |

तीन  लोक बस्ती में बसाये……………..

किसी का सुमिरन ध्यान नहीं  तुम अपने ही करते हो जाप,

अपने बीच में आप समाये आप ही आप रहे हो व्याप |

हुआ  मेरा मन मग्न ओ बिगड़ी ऐसे नाथ बचाने में,

तीन लोक बस्ती में  बसाये……………..

कुबेर को धन दिया आपने, दिया इन्द्र को  इन्द्रासन,

अपने तन पर ख़ाक रमाये पहने नागों का भूषण |

मुक्ति के  दाता होकर मुक्ति तुम्हारे गाहे चरण,

“देवीसिंह ये नाथ तुम्हारे हित से  नित से करो भजन |

तीन लोक बस्ती में बसाये……………..

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