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शनि देव कथा || Shani Dev Katha || Shani Jayanti Katha ( प्रथम कथा )
भगवान सूर्य का ब्याह दक्ष कन्या देवी संध्या के साथ हुआ । देवी संध्या भगवान सूर्य का अत्याधिक तेज सह नहीं पाती थी। उन्हें लगा की मुझे तपस्या करके अपने तेज को बढ़ाना होगा । कुछ समय पश्चात देवी संध्या के गर्भ से तीन संतानों का जन्म हुआ । जिनकें नाम है, मनु,यमराज और यमुना । देवी संध्या बच्चों से बहुत प्यार करती थी । मगर भगवान सूर्य की अत्याधिक तेज के कारण बहुत परेशान रहती थी | एक दिन देवी संध्या ने सोचा कि भगवान सूर्य से अलग होकर मै अपने मायके जाकर घोर तपस्या करूंगी। जिससे की भगवान सूर्य के अत्याधिक तेज को सहन कर सकुँ । और यदि विरोध हुआ तो कही दूर एकान्त में जाकर तप करुगी ! देवी संध्या ने अपने ही जैसी दिखने वाली देवी छाया को प्रकट किया। और देवी संध्या को अपने बच्चोँ की जिम्मेदारी सौंपते हुए कहा। Shani Dev Katha
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आज से तुम मेरे स्थान पर पत्नि धर्म निभाओगी और बच्चों कि परवरिश भी करोगी। अगर कोई विपत्ति आ जाये तो मुझे बुला लेना मै दौडी- दौडी चली आऊँगी। मगर एक बात याद रखना कि तुम “छाया” हो ” संध्या” नहीं यह भेद कभी किसी को पता नहीं चलना चाहिए। देवी संध्या ,देवी छाया को अपनी जिम्मेदारी सौपकर अपने मायके चली गयी। घर पहुँचकर,देवी संध्या ने पिता को बताया।
मै भगवान सूर्य का तेज सहन नहीं कर पा रही हुँ,इसलिए अपने पति से बिना कुछ कहे मै मायके आ गयी हूँ,ताकी तपस्या कर सकुँ। यह सुनकर पिता ने देवी संध्या को बहुत डाटा – फटकारा और कहा की बिना बुलाये पुत्री यदि मायके में आए तो पिता की बदनामी होती है। अत: हे,पुत्री तुम जल्द अपने ससुराल लौट जाओ। तब देवी संध्या सोचने लगी कि यदि मै वापस लौटकर गई तो देवी छाया को जो मैंने कार्यभार सौंपा है। Shani Dev Katha
उसका क्या होगा ? देवी छाया कहाँ जायेगी ? सोचकर देवी संध्या ने भीषण घनघोर जंगल में शरण ले लिया। देवी संध्या ने घोडी का रूप ले लिया। जिससे कि कोई उसे पहचान न सके और तप करने लगी। ईधर भगवान सूर्य, देवी छाया से संतुष्ट थे।
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भगवान सूर्य को कभी यह संदेह नहीं हुआ की यह देवी संध्या नही है। कुछ समय पश्चात देवी छाया के गर्भ से तीन संतानों का जन्म हुआ ।जिनकें नाम है,मनु,शनि और पुत्री भद्रा ( तपती ) । इस तरह से देवी छाया के गर्भ से भगवान शनि का जन्म हुआ । Shani Dev Katha
शनि देव कथा || Shani Dev Katha || Shani Jayanti Katha ( द्वितीय कथा )
जब शनिदेव देवी छाया के गर्भ में थे तब देवी छाया भगवान शिव की तपस्या कर रही थी । देवी छाया ने भूखे प्यासे धुप-गर्मी में कठोर तपस्या किया । देवी छाया ने अपने आप को इतना तपाया की गर्भ के बच्चे पर भी तप की अग्नि का प्रभाव हुआ। भूखे प्यासे धुप-गर्मी में तप करने से तप के प्रभाव से,गर्भ में ही भगवान शनि का रंग काला हो गया। जब भगवान शनि का जन्म हुआ तो सूर्यदेव को भगवान शनि को काले रंग का देखकर हैरानी हुई। उन्हें देवी छाया पर शक हुआ | उन्होंने देवी छाया का अपमान कर डाला और कहा कि ‘यह मेरा पुत्र नहीं है।’ Shani Dev Katha
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भगवान शनि के अन्दर जन्म से माँ की तपस्या का बल था। उन्होंने देखा कि मेरे पिता,माता का अपमान कर रहे है। उन्होने क्रूर दृष्टी से अपने पिता को देखा तो पिता का पूरा देह का रंग काला हो गया । और घोडों की चाल रुक गयी रथ आगे नहीं चल सका।
भगवान सूर्य परेशान होकर भगवान शिव को पुकारने लगे | भगवान शिव ने सूर्यदेव को बताया की आपके द्वारा माता व पुत्र दोनों की बेज्जती हुई है। इसलिए यह दोष लगा है । सूर्यदेव ने अपनी गलती की देवी छाया से क्षमा मांगी । और पुन: सुन्दर रूप एवं घोडों की गति प्राप्त किया।Shani Dev Katha
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