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शालिग्राम स्तोत्र || Shaligram Stotram || Shaligram Stotra

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श्री शालिग्राम स्तोत्र || Shri Shaligram Stotram || Shaligram Stotra

शालिग्राम स्तोत्र का उल्लेख आपको भविष्य पुराण में देखने को मिल जायेंगा ! Shri Shaligram Stotram श्री कृष्ण जी ने राज़ा युधिष्ठिर को बताया था ! जो भी व्यक्ति शालिग्राम जी का पूजन करता है अपने घर में रखता है और स्नान करवाए जल को पीता हो या सर पर डालता है तो वह जातक सब पापों से मुक्त हो जाता हैं ! पूजन के समय Shri Shaligram Stotram का भी पाठ करना चाहिए ! श्री शालिग्राम स्तोत्र के अनुसार जो जातक रोज़ाना शालिग्राम का स्नान कराकर उसे पीता है तो ब्राह्मण हत्या जैसे पापों से छुटकारा पा सकता हैं ! यदि आप तुलसी के पत्ते रोज़ के साथ शालिग्राम की पूजा करते है तो दस लाख यज्ञ का वरदान भी मिलता है ! Shri Shaligram Stotram आदि के बारे में बताने जा रहे हैं !! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !! यदि आप अपनी कुंडली दिखा कर परामर्श लेना चाहते हो तो या किसी समस्या से निजात पाना चाहते हो तो कॉल करके या नीचे दिए लाइव चैट ( Live Chat ) से चैट करे साथ ही साथ यदि आप जन्मकुंडली, वर्षफल, या लाल किताब कुंडली भी बनवाने हेतु भी सम्पर्क करें : 9667189678 Shri Shaligram Stotram By Online Specialist Astrologer Sri Hanuman Bhakt Acharya Pandit Lalit Trivedi.

श्री शालिग्राम स्तोत्र || Shri Shaligram Stotram || Shaligram Stotra

श्री गणेशाय नमः ।

अस्य श्रीशालिग्रामस्तोत्रमन्त्रस्य श्रीभगवान् ऋषिः।,

नारायणो देवता।, अनुष्टुप् छन्दः।,

श्रीशालिग्रामस्तोत्रमन्त्रजपे विनियोगः ॥

युधिष्ठिर उवाच ।

श्रीदेवदेव देवेश देवतार्चनमुत्तमम् ।

तत्सर्वं श्रोतुमिच्छामि ब्रूहि मे पुरुषोत्तम ॥१॥

श्रीभगवानुवाच ।

गण्डक्यां चोत्तरे तीरे गिरिराजस्य दक्षिणे ।

दशयोजनविस्तीर्णा महाक्षेत्रवसुन्धरा ॥२॥

शालिग्रामो भवेद्देवो देवी द्वारावती भवेत् ।

उभयोः सङ्गमो यत्र मुक्तिस्तत्र न संशयः ॥३॥

शालिग्रामशिला यत्र यत्र द्वारावती शिला ।

उभयोः सङ्गमो यत्र मुक्तिस्तत्र न संशयः ॥४॥

आजन्मकृतपापानां प्रायश्चित्तं य इच्छति ।

शालिग्रामशिलावारि पापहारि नमोऽस्तु ते ॥५॥

अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम् ।

विष्णोः पादोदकं पीत्वा शिरसा धारयाम्यहम् ॥६॥

शङ्खमध्ये स्थितं तोयं भ्रामितं केशवोपरि ।

अङ्गलग्नं मनुष्याणां ब्रह्महत्यादिकं दहेत् ॥७॥

स्नानोदकं पिवेन्नित्यं चक्राङ्कितशिलोद्भवम् ।

प्रक्षाल्य शुद्धं तत्तोयं ब्रह्महत्यां व्यपोहति ॥८॥

अग्निष्टोमसहस्राणि वाजपेयशतानि च ।

सम्यक् फलमवाप्नोति विष्णोर्नैवेद्यभक्षणात् ॥९॥

नैवेद्ययुक्तां तुलसीं च मिश्रितां विशेषतः पादजलेन विष्णोः ।

योऽश्नाति नित्यं पुरतो मुरारेः प्राप्नोति यज्ञायुतकोटिपुण्यम् ॥१०॥

खण्डिताः स्फुटिता भिन्ना वन्हिदग्धास्तथैव च ।

शालिग्रामशिला यत्र तत्र दोषो न विद्यते ॥११॥

न मन्त्रः पूजनं नैव न तीर्थं न च भावना ।

न स्तुतिर्नोपचारश्च शालिग्रामशिलार्चने ॥१२॥

ब्रह्महत्यादिकं पापं मनोवाक्कायसम्भवम् ।

शीघ्रं नश्यति तत्सर्वं शालिग्रामशिलार्चनात् ॥१३॥

नानावर्णमयं चैव नानाभोगेन वेष्टितम् ।

तथा वरप्रसादेन लक्ष्मीकान्तं वदाम्यहम् ॥१४॥

नारायणोद्भवो देवश्चक्रमध्ये च कर्मणा ।

तथा वरप्रसादेन लक्ष्मीकान्तं वदाम्यहम् ॥१५॥

कृष्णे शिलातले यत्र सूक्ष्मं चक्रं च दृश्यते ।

सौभाग्यं सन्ततिं धत्ते सर्व सौख्यं ददाति च ॥१६॥

वासुदेवस्य चिह्नानि दृष्ट्वा पापैः प्रमुच्यते ।

श्रीधरः सुकरे वामे हरिद्वर्णस्तु दृश्यते ॥१७॥

वराहरूपिणं देवं कूर्माङ्गैरपि चिह्नितम् ।

गोपदं तत्र दृश्येत वाराहं वामनं तथा ॥१८॥

पीतवर्णं तु देवानां रक्तवर्णं भयावहम् ।

नारसिंहो भवेद्देवो मोक्षदं च प्रकीर्तितम् ॥१९॥

शङ्खचक्रगदाकूर्माः शङ्खो यत्र प्रदृश्यते ।

शङ्खवर्णस्य देवानां वामे देवस्य लक्षणम् ॥२०॥

दामोदरं तथा स्थूलं मध्ये चक्रं प्रतिष्ठितम् ।

पूर्णद्वारेण सङ्कीर्णा पीतरेखा च दृश्यते ॥२१॥

छत्राकारे भवेद्राज्यं वर्तुले च महाश्रियः ।

चिपिटे च महादुःखं शूलाग्रे तु रणं ध्रुवम् ॥२२॥

ललाटे शेषभोगस्तु शिरोपरि सुकाञ्चनम् ।

चक्रकाञ्चनवर्णानां वामदेवस्य लक्षणम् ॥२३॥

वामपार्श्वे च वै चक्रे कृष्णवर्णस्तु पिङ्गलम् ।

लक्ष्मीनृसिंहदेवानां पृथग्वर्णस्तु दृश्यते ॥२४॥

लम्बोष्ठे च दरिद्रं स्यात्पिण्गले हानिरेव च ।

लग्नचक्रे भवेद्याधिर्विदारे मरणं ध्रुवम् ॥२५॥

पादोदकं च निर्माल्यं मस्तके धारयेत्सदा ।

विष्णोर्द्दष्टं भक्षितव्यं तुलसीदलमिश्रितम् ॥२६॥

कल्पकोटिसहस्राणि वैकुण्ठे वसते सदा ।

शालिग्रामशिलाबिन्दुर्हत्याकोटिविनाशनः ॥२७॥

तस्मात्सम्पूजयेद्ध्यात्वा पूजितं चापि सर्वदा ।

शालिग्रामशिलास्तोत्रं यः पठेच्च द्विजोत्तमः ॥२८॥

स गच्छेत्परमं स्थानं यत्र लोकेश्वरो हरिः ।

सर्वपापविनिर्मुक्तो विष्णुलोकं स गच्छति ॥२९॥

दशावतारो देवानां पृथग्वर्णस्तु दृश्यते ।

ईप्सितं लभते राज्यं विष्णुपूजामनुक्रमात् ॥३०॥

कोट्यो हि ब्रह्महत्यानामगम्यागम्यकोटयः ।

ताः सर्वा नाशमायान्ति विष्णुनैवेद्यभक्षणात् ॥३१॥

विष्णोः पादोदकं पीत्वा कोटिजन्माघनाशनम् ।

तस्मादष्टगुणं पापं भूमौ बिन्दुनिपातनात् ॥३२॥

। इति श्रीभविष्योत्तरपुराणे श्रीकृष्णयुधिष्ठिरसंवादे शालिग्रामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।

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