श्री रामचंद्र अष्टकम | Sri Ramachandra Ashtakam | Ramachandra Ashtakam Ke Fayde | Ramachandra Ashtakam Ke Labh | Ramachandra Ashtakam Benefits | Ramachandra Ashtakam Pdf | Ramachandra Ashtakam Mp3 Download | Ramachandra Ashtakam Lyrics | रामचंद्र अष्टकम || Ramachandra Ashtakam || Ram Chandra Ashtakam : श्री रामचंद्र अष्टकम भगवान श्री राम जी को समर्पित हैं ! Ramachandra Ashtakam श्री अमरदासकवि द्वारा रचियत हैं ! इसमें श्री अमरदासकवि जी ने भगवान श्री राम का बहुत ही सुन्दर वर्णन किया हैं !! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !! यदि आप अपनी कुंडली दिखा कर परामर्श लेना चाहते हो तो या किसी समस्या से निजात पाना चाहते हो तो कॉल करके या नीचे दिए लाइव चैट ( Live Chat ) से चैट करे साथ ही साथ यदि आप जन्मकुंडली, वर्षफल, या लाल किताब कुंडली भी बनवाने हेतु भी सम्पर्क करें : 9667189678 Sri Ramachandra Ashtakam By Online Specialist Astrologer Sri Hanuman Bhakt Acharya Pandit Lalit Trivedi.
श्री रामचंद्र अष्टकम || Sri Ramachandra Ashtakam
चिदाकारो धाता परमसुखदः पावनतनु,
र्मुनीन्द्रैर्योगीन्द्रैर्यतिपतिसुरेन्द्रैर्हनुमता ।
सदा सेव्यः पूर्णो जनकतनयाङ्गः सुरगुरुः,
रमानाथो रामो रमतु मम चित्ते तु सततम् ॥ १ ॥
मुकुन्दो गोविन्दो जनकतनयालालितपदः,
पदं प्राप्ता यस्याधमकुलभवा चापि शबरी ।
गिरातीतोऽगम्यो विमलधिषणैर्वेदवचसा,
रमानाथो रामो रमतु मम चित्ते तु सततम् ॥ २ ॥
धराधीशोऽधीशः सुरनरवराणां रघुपतिः,
किरीटी केयूरी कनककपिशः शोभितवपुः ।
समासीनः पीठे रविशतनिभे शान्तमनसो,
रमानाथो रामो रमतु मम चित्ते तु सततम् ॥ ३ ॥
वरेण्यः शारण्यः कपिपतिसखश्चान्तविधुरो,
ललाटे काश्मीरो रुचिरगतिभङ्गः शशिमुखः ।
नराकारो रामो यतिपतिनुतः संसृतिहरो,
रमानाथो रामो रमतु मम चित्ते तु सततम् ॥ ४ ॥
विरूपाक्षः काश्यामुपदिशति यन्नाम शिवदं,
सहस्रं यन्नाम्नां पठति गिरिजा प्रत्युषसि वै ।
स्वलोकेगायान्तीश्वरविधिमुखा यस्य चरितं,
रमानाथो रामो रमतु मम चित्ते तु सततम् ॥ ५ ॥
परो धीरोऽधीरोऽसुरकुलभवश्चासुरहरः,
परात्मा सर्वज्ञो नरसुरगणैर्गीतसुयशाः ।
अहल्याशापघ्नः शरकर ऋजुः कौशिकसखो,
रमानाथो रामो रमतु मम चित्ते तु सततम् ॥ ६ ॥
हृषीकेशः शौरिर्धरणिधरशायी मधुरिपु,
रुपेन्द्रो वैकुण्ठो गजरिपुहरस्तुष्टमनसा ।
बलिध्वंसी वीरो दशरथसुतो नीतिनिपुणो,
रमानाथो रामो रमतु मम चित्ते तु सततम् ॥ ७ ॥
कविः सौमित्रीड्यः कपटमृगधावी वनचरो,
रणश्लाघी दान्तो धरणिभरहर्ता सुरनुतः ।
अमानी मानज्ञो निखिलजनपूज्यो हृदिशयो,
रमानाथो रामो रमतु मम चित्ते तु सततम् ॥ ८ ॥
इदं रामस्तोत्रं वरममरदासेन रचित,
मुषःकाले भक्त्या यदि पठति यो भावसहितम् ।
मनुष्यः स क्षिप्रं जनिमृतिभयं तापजनकं,
परित्यज्य श्रेष्ठं रघुपतिपदं याति विशदम् ॥ ९ ॥
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