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परमार्थ स्तुतिः || Paramartha Stuti || Paramartha Stuthi

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श्री परमार्थ स्तुतिः || Sri Paramartha Stuti || Paramartha Stuthi

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श्री परमार्थ स्तुतिः || Sri Paramartha Stuti || Paramartha Stuthi

श्रीमान् वेङ्कटनाथार्यः कवितार्किककेसरी।

वेदान्ताचार्यवर्यो मे सन्निधत्तां सदा हृदि॥

श्रीमद्गृध्रसरस्तीरपारिजातमुपास्महे।

यत्र तुङ्गैरतुङ्गैश्च प्रणतैर्गृह्यते फलम् ॥१॥

गुरुभिस्त्वनन्यसर्वभावैः गुणसिन्धौ कृतसंप्लवस्त्वदीये।

रणपुङ्गव वन्दि भावमिच्छन् अहमस्म्येकमनुग्रहास्पदं ते ॥२॥

भुवनाश्रय भूषणास्त्रवर्गं मनसि त्वन्मयतां ममातनोतु।

वपुराहवपुङ्ग त्वदीयं महिषीणामनिमेषदर्शनीयम् ॥३॥

अभिरक्षितुमग्रतः स्थितं त्वाम् प्रणवे पार्थ रथे च भावयन्तः।

अहितप्रशमैरयत्नलभ्यैः कथयन्त्याहवपुङ्गवं गुणज्ञाः॥४॥

कमला निरपाय धर्मपत्नी करुणाद्याः स्वयमृत्विजो गुणास्ते।

अवनं श्रयतामहीनमाद्यं स च धर्मस्त्वदनन्य सेवनीयः ॥५॥

कृपणाः सुधियः कृपा सहायं शरणं त्वां रणपुङ्गव प्रपन्नाः।

अपवर्ग नयादनन्यभावाः वरिवस्या रसमेकमाद्रियन्ते ॥६॥

अवधीर्य चतुर्विधं पुमर्थं भवदर्थे विनियुक्त जीवितः सन्।

लभते भवतः फलानि जन्तुः निखिलान्यत्र निदर्शनं जटायुः ॥७॥

शरणागतरक्षणव्रती मां न विहातुं रणपुङ्गवार्हसि त्वम्।

विदितं भुवने विभीषणो वा यदि वा रावण इत्युदीरितं ते॥८॥

भुजगेन्द्रगरुत्मदादि लभ्यैः त्वदनुज्ञानुभव प्रवाह भेदैः।

स्वपदे रणपुङ्गव स्वयं मे परिचर्या विभवैः परिष्क्रियेथाः॥९॥

विमलाशयवेङ्कटेश जन्मा रमणीया रणपुङ्गवप्रसादात्।

अनसूयुभिरादरेण भाव्या परमार्थस्तुतिरन्वहं प्रपन्नैः॥१०॥

इति श्रीपरमार्थस्तुतिःसमाप्ता कवितार्किकसिंहाय कल्याणगुणशालिने।

श्रीमते वेङ्कटेशाय वेदान्त गुरवे नमः ॥

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