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परापूजा स्तोत्र || Para Puja Stotram || Para Puja Stotra
परापूजा स्तोत्र श्री मच्छंकर भगवत्पाद द्वारा रचियत हैं ! परापूजा स्तोत्र का पाठ नियमित रूप से करने वाली पूजा अर्चना में किया जाता हैं ! परापूजा स्तोत्र आदि के बारे में बताने जा रहे हैं !! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !! यदि आप अपनी कुंडली दिखा कर परामर्श लेना चाहते हो तो या किसी समस्या से निजात पाना चाहते हो तो कॉल करके या नीचे दिए लाइव चैट ( Live Chat ) से चैट करे साथ ही साथ यदि आप जन्मकुंडली, वर्षफल, या लाल किताब कुंडली भी बनवाने हेतु भी सम्पर्क करें : 9667189678 Para Puja Stotram By Online Specialist Astrologer Acharya Pandit Lalit Trivedi.
परापूजा स्तोत्र || Para Puja Stotram || Para Puja Stotra
अखण्डे सच्चिदानन्दे निर्विकल्पैकरूपिणि ।
स्थितेऽद्वितीयभावेऽस्मिन् कथं पूजा विधीयते ॥१॥
पूर्णस्यावाहनं कुत्र सर्वाधारस्य चासनम् ।
स्वच्छस्य पाद्यमर्घ्यं च शुद्धस्याचमनं कुतः॥२॥
निर्मलस्य कुतः स्नानं वस्त्रं विश्वोदरस्य च ।
अगोत्रस्य त्ववर्णस्य कुतस्तस्योपवीतकम् ॥३॥
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निर्लेपस्य कुतो गन्धः पुष्पं निर्वासनस्य च ।
निर्विशेषस्य का भूषा कोऽलंकारो निराकृतेः ॥४॥
निरञ्जनस्य किं धूपैर्दीपैर्वा सर्वसाक्षिणः।
निजानन्दैकतृप्तस्य नैवेद्यं किं भवेदिह ॥५॥
विश्वानन्दपितुस्तस्य किं तांबूलं प्रकल्प्यते।
स्वयंप्रकाशचिद्रूपो योऽसावर्कादिभासकः ॥६॥
प्रदक्षिणा ह्यनन्तस्य ह्यद्वयस्य कुतो नतिः
वेदवाक्यैरवेद्यस्य कुतः स्तोत्रं विधीयते ॥७॥
स्वयंप्रकाशमानस्य कुतो नीराजनं विभोः।
अन्तर्बहिश्च पूर्णस्य कथमुद्वासनं भवेत्॥८॥
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एवमेव परापूजा सर्वावस्थासु सर्वदा,
एकबुद्ध्या तु देवेशे विधेया ब्रह्मवित्तमैः ॥९॥
आत्मा त्वं गिरिजा मतिः सहचराः प्राणाः शरीरं गृहं,
पूजा ते विषयोपभोगरचना निद्रा समाधिस्थितिः।
सञ्चार: पदयो: प्रदक्षिणविधिः स्तोत्राणि सर्वा गिरो,
यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं शंभो तवाराधनम् ॥१०॥
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