मृत्युंजय मानसिक पूजा स्तोत्र || Mrityunjaya Manasa Pooja Stotram || Maha Mrityunjaya Manasa Puja Stotram

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श्री मृत्युंजय मानसिक पूजा स्तोत्र || Sri Mrityunjaya Manasa Pooja Stotram || Sri Maha Mrityunjaya Manasa Puja Stotram

श्री मृत्युंजय मानसिक पूजा स्तोत्र को नियमित पाठ करने से शारीरिक एवं मानसिक कष्टों का नाश करता है ! जो भी साधक शिवलिंग की पूजा करके श्री मृत्युंजय मानसिक पूजा स्तोत्र का पाठ करके बहुत लाभदायक होता हैं ! Sri Mrityunjaya Manasa Pooja Stotram आदि के बारे में बताने जा रहे हैं !! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !! यदि आप अपनी कुंडली दिखा कर परामर्श लेना चाहते हो तो या किसी समस्या से निजात पाना चाहते हो तो कॉल करके या नीचे दिए लाइव चैट ( Live Chat ) से चैट करे साथ ही साथ यदि आप जन्मकुंडली, वर्षफल, या लाल किताब कुंडली भी बनवाने हेतु भी सम्पर्क करें : 9667189678 Sri Mrityunjaya Manasa Pooja Stotram By Online Specialist Astrologer Sri Hanuman Bhakt Acharya Pandit Lalit Trivedi.

श्री मृत्युंजय मानसिक पूजा स्तोत्र || Sri Mrityunjaya Manasa Pooja Stotram || Sri Maha Mrityunjaya Manasa Puja Stotram

कैलासे कमनीयरत्नखचिते कल्पद्रुमूलेस्थितं,

कर्पूरस्फटिकेन्दुसुन्दरतनुं कात्यायनीसेवितम्।

गंगातुंगतरंगरंजितजटाभारं कृपासागरं,

कण्ठालंकृतशेषभूषणममुं मृत्युंजयं भावये ॥१॥

आगत्य मृत्युंजय चन्द्रमौले व्याघ्राजिनालंकृत शूलपाणे ।

स्वभक्तसंरक्षणकामधेनो प्रसीद विश्वेश्वर पार्वतीश ॥२॥

भास्वन्मौक्तिकतोरणे मरकतस्तंभायुतालंकृते,

सौधे धूपसुवासिते मणिमये माणिक्यदीपाञ्चिते ।

ब्रह्मेन्द्रामरयोगिपुंगवगणैर्युक्ते च कल्पद्रुमैः,

श्रीमृत्युंजय सुस्थिरो भव विभो माणिक्यसिंहासने ॥३॥

मन्दारमल्लीकरवीरमाधवी पुंनागनीलोत्पलचम्पकान्वितैः।

कर्पूरपाटीरसुवासितैर्जलै-राधत्स्व मृत्युंजय पाद्यमुत्तमम्॥४॥

सुगंधपुष्पप्रकरैः सुवासितै-र्वियन्नदीशीतलवारिभिः शुभैः।

त्रिलोकनाथार्तिहरार्घ्यमारा-द्गृहाण मृत्युंजयसर्ववन्दित ॥५॥

हिमांबुवासितैस्तोयैः शीतलैरतिपावनैः।

मृत्युंजय महादेव शुद्धाचमनमाचर ॥६॥

गुडदधिसहितं मधुप्रकीर्णं सुघृतसमन्वितधेनुदुग्धयुक्तं।

शुभकर मधुपर्कमाहर त्वं, त्रिनयन मृत्युहर त्रिलोकवन्द्य ॥७॥

पञ्चास्त्र शान्त पञ्चास्य पञ्चपातकसंहर ।

पञ्चामृतस्नानमिदं कुरु मृत्युंजय प्रभो ॥८॥

जगत्त्र्यीख्यात  समस्ततीर्थ-समाहृतैः कल्मषहारिभिश्च।

स्नानं सुतोयैः समुदाचर त्वं मृत्युंजयानन्तगुणाभिराम ॥९॥

आनीतेनातिशुभ्रेण कौशेयेनामरद्रुमात्।

मार्जयामि जटाभारं शिव मृत्युंजय प्रभो ॥१०॥

नानाहोमविचित्राणि चीरचीनांबराणि च।

विविधानि च दिव्यानि मृत्युंजय सुधारय ॥११॥

विशुद्धमुक्ताफलजालरम्यं मनोहरं काञ्चनहेमसूत्रम् ।

यज्ञोपवीतं परमं पवित्र-माधत्स्व मृत्युंजय भक्तिगम्य ॥१२॥

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श्रीगन्धं घनसारकुंकुमयुतं कस्तूरिकापूरितं,

कालेयेन हिमांबुना विरचितं मन्दारसंवासितम्।

दिव्यं देवमनोहरं मणिमये पात्रे समारोपितं,

सर्वांगेषु विलेपयामि सततं मृत्युंजय श्रीविभो ॥१३॥

अक्षतैर्धवलैर्दिव्यैः सम्यक्तिलसमन्वितैः।

मृत्युंजय महादेव पूजयामि वृषध्वज ॥१४॥

चंपकपंकजकुरवककुन्दैः करवीरमल्लिका कुसुमैः।

विस्तारय निजमकुटं मृत्युंजय पुण्डरीकनयनाप्त ॥१५॥

माणिक्यपादुकाद्वन्द्वे मौनिहृत्पद्ममन्दिरे ।

पादौ सद्पद्मसदृशौ मृत्युंजय निवेशय ॥१६॥

माणिक्यकेयूरकिरीटहारैः काञ्चीमणिस्थापित कुण्डलैश्च ।

मन्ञ्जीरमुख्याभरणैर्मनोज्ञै-रंगानि मृत्युंजय भूषयामि ॥१७॥

गजवदनस्कन्दधृते-नातिस्वच्छेन चामरयुगेन।

गलदलकाननपद्मं मृत्युंजय भावयामि हृत्पद्मे ॥१८॥

मुक्तातपत्रं शशिकोटिशुभ्रं शुभप्रदं काञ्चनदण्डयुक्तं।

माणिक्यसंस्थापितहेमकुंभं सुरेश मृत्युंजय तेऽर्पयामि ॥१९॥

मणिमुकुरे निष्पटले त्रिजगद्गाढांधकारसप्ताश्वे ।

कन्दर्पकोटिसदृशं मृत्युंजय पश्य वदनमात्मीयम् ॥२०॥

कर्पूरचूर्णं कपिलाज्यपूतं दास्यामि कालेयसमन्वितैश्च ।

समुद्भवं पावनगन्धधूपितं मृत्युंजयाङ्गं परिकल्पयामि ॥२१॥

वर्तित्रयोपेतमखण्डदीप्त्या तमोहरं बाह्यमथान्तरं च।

साज्यं समस्तामरवर्गहृद्यं सुरेश मृत्युंजय वंशदीपम् ॥२२॥

राजान्नं मधुरान्वितं च मृदुलं माणिक्यपात्रेस्थितं,

हिंगुजीरकसन्मरीचिमिलितैः शाकैरनेकैश्शुभैः ।

साकं सम्यगपूपसूपसहितं  सद्योघृतेनाप्लुतं,

श्रीमृत्युंजय पार्वतीप्रिय विभो सापोशनं भुज्यताम् ॥२३॥

कूष्माण्डवार्ताकपटोलिकानां फलानि रम्याणि च कारवल्या।

सुपाकयुक्तानि ससौरभाणि श्रीकण्ठ मृत्युंजय भक्षयेश ॥२४॥

शीतलं मधुरं स्वच्छं पावनं वासितं लघु ।

मध्ये स्वीकुरु पानीयं शिव मृत्युंजय प्रभो ॥२५॥

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शर्करामिलितं स्निग्धं दुग्धान्नं गोघृतान्वितम् ।

कदलीफलसंमिश्रं भुज्यतां मृत्युसंहर ॥२६॥

केवलमतिमाधुर्यं दुग्धैः स्निग्धैश्च शर्करामिलितैः ।

एलामरीचिमिलितं मृत्युंजय देव भुङ्क्ष्व परमान्नम् ॥२७॥

रंभाचूतकपित्थकण्टकफलैर्द्राक्षारसस्वादुमत्,

खर्जूरैर्मधुरेक्षुखण्डशकलैः सन्नारिकेलांबुभिः।

कर्पूरेणसुवासितैर्गुडजलैर्माधुर्ययुक्तैर्विभो,

श्रीमृत्युंजय पूरय त्रिभुवनाधारं विशालोदरम् ॥२८॥

मनोज्ञरंभाफलखण्डखण्डितान् रुचिप्रदान् सर्षपजीरकांश्च ।

ससौरभान् सैन्धवसेवितांश्च गृहाण  मृत्युंजय लोकवन्द्य ॥२९॥

हिंगुजीरकसहितं विमलामलकं कपित्थमतिमधुरं।

बिसखण्डांल्लवणयुतान् मृत्युंजय तेऽर्पयामि जगदीश ॥३०॥

एलाशुण्ठिसहितं दध्यन्नं चारुहेमपात्रस्थम्।

अमृतप्रतिनिधिमाढ्यं मृत्युंजय भुज्यतां त्रिलोकेश ॥३१॥

जंबीरनीराञ्चितशृंगबेरं मनोहरानम्लशलाटुखण्डान्।

मृदूपदंशान् सहसोपभुङ्क्ष्व मृत्युंजय श्रीकरुणासमुद्र ॥३२॥

नागररामायुक्तं सुललितजंबीरनीरसंपूर्णम्।

मथितं सैन्धवसहितं पिब हर मृत्युंजय क्रतुध्वंसिन् ॥३३॥

मन्दारहेमांबुजगन्धयुक्तै-र्मन्दाकिनीनिर्मलपुण्यतोयैः।

गृहाण मृत्युंजय पूर्णकाम श्रीमत्परापोशनमभ्रकेश ॥३४॥

गगनधुनीविमलजलै-र्मृत्युंजय पद्मरागपात्रगतैः।

मृगमदचन्दनपूर्णैः प्रक्षालय चारु हस्तपादयुग्मम् ॥३५॥

पुंनागमल्लिकाकुन्दवासितैर्जाह्नवीजलैः।

मृत्युंजय महादेव पुनराचमनं कुरु ॥३६॥

मौक्तिकचूर्णसमेतै-र्मृगमदघनसारवासितैः पूगैः।

पर्णैः स्वर्णसमानै-र्मृत्युंजयतेऽर्पयामि तांबूलम् ॥३७॥

नीराजनं निर्मलदीप्तिमद्भि-र्दीपाङ्कुरैरुज्ज्वलमुच्छ्रितैश्च ।

घण्डानिनादेन समर्पयामि मृत्युंजयाय त्रिपुरान्तकाय ॥३८॥

विरिञ्चिमुख्यामरबृन्दवन्दिते सरोजमत्स्यांकितचक्रचिह्निते।

ददामि मृत्युंजय पादपंकजे फणीन्द्रभूषे पुनरर्घ्यमीश्वर ॥३९॥

पुंनागनीलोत्पलकुन्दजाती मन्दारमल्लीकरवीरपंकजैः।

पुष्पाञ्जलिं बिल्वदलैस्तुलस्या मृत्युंजयांघ्रौ विनिवेशयामि ॥४०॥

पदे पदे सर्वतमोनिकृन्तनं पदे पदे सर्वशुभप्रदायकम्।

प्रदक्षिणं भक्तियुतेन चेतसा करोमि मृत्युंजय रक्ष रक्ष माम् ॥४१॥

नमो गौरीशाय स्फटिकधवलांगाय च नमो,

नमो लोकेशाय स्तुतविबुधलोकाय च नमः ।

नमः श्रीकण्ठाय क्षपितपुरदैत्याय च नमो,

नमः फालाक्षाय स्मरमदविनाशाय च नमः ॥४२॥

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संसारे जनितापरोगसहिते तापत्रयाक्रंदिते,

नित्यं पुत्रकलत्रवित्तविलसत्पाशैर्निबद्धं दृढं ।

गर्वान्धं बहुपापवर्गसहितं कारुण्यदृष्ट्या विभो,

श्रीमृत्युंजय पार्वतीप्रिय सदा मां पाहि सर्वेश्वर ॥४३॥

सौधे रत्नमये नवोत्पलदलाकीर्णे च तल्पान्तरे,

कौशेयेन मनोहरेण धवलेनाच्छादिते सर्वशः ।

कर्पूराञ्चितदीपदीप्तिमिलिते रम्योपधानद्वये,

पार्वत्या करपद्मलालितपदं मृत्युंजयं भावये ॥४४॥

चतुश्चत्वारिंशद्विलसदुपचारैरभिमतै,

र्मनःपद्मे भक्त्या बहिरपि च पूजां शुभकरीं।

करोति प्रत्यूषे निशि दिवसमध्येऽपि च पुमान्,

प्रयाति श्रीमृत्युंजयपदमनेकाद्भुतपदम् ॥४५॥

प्रातर्लिंगमुमापतेरहरहः संदर्शनात्स्वर्गदं,

मध्याह्ने हयमेधतुल्यफलदं सायंतने मोक्षदं।

भानोरस्तमये प्रदोषसमये पञ्चाक्षराराधनं,

तत्कालत्रयतुल्यमिष्टफलदं सद्योऽनवद्यं दृढं ॥४६॥

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