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श्री मातंगी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् || Shri Matangi Ashtottara Shatanama Stotram
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श्री मातंगी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् || Shri Matangi Ashtottara Shatanama Stotram
श्रीभैरव्युवाच –
भगवञ्छ्रोतुमिच्छामि मातङ्ग्याः शतनामकम् ।
यद्गुह्यं सर्वतन्त्रेषु केनापि न प्रकाशितम् ॥ १॥
भैरव उवाच –
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि रहस्यातिरहस्यकम् ।
नाख्येयं यत्र कुत्रापि पठनीयं परात्परम् ॥ २॥
यस्यैकवारपठनात्सर्वे विघ्ना उपद्रवाः ।
नश्यन्ति तत्क्षणाद्देवि वह्निना तूलराशिवत् ॥ ३॥
प्रसन्ना जायते देवी मातङ्गी चास्य पाठतः ।
सहस्रनामपठने यत्फलं परिकीर्तितम् ।
तत्कोटिगुणितं देवीनामाष्टशतकं शुभम् ॥ ४॥
अस्य श्रीमातङ्गीशतनामस्तोत्रस्य भगवान्मतङ्ग ऋषिः
अनुष्टुप् छन्दः मातङ्गी देवता मातङ्गीप्रीतये जपे विनियोगः ।
महामत्तमातङ्गिनी सिद्धिरूपा तथा योगिनी भद्रकाली रमा च ।
भवानी भवप्रीतिदा भूतियुक्ता भवाराधिता भूतिसम्पत्करी च ॥ १॥
धनाधीशमाता धनागारदृष्टिर्धनेशार्चिता धीरवापीवराङ्गी ।
प्रकृष्टप्रभारूपिणी कामरूपप्रहृष्टा महाकीर्तिदा कर्णनाली ॥ २॥
कराली भगा घोररूपा भगाङ्गी भगाह्वा भगप्रीतिदा भीमरूपा ।
भवानी महाकौशिकी कोशपूर्णा किशोरीकिशोरप्रियानन्द ईहा ॥ ३॥
महाकारणाकारणा कर्मशीला कपालिप्रसिद्धा महासिद्खण्डा ।
मकारप्रिया मानरूपा महेशी महोल्लासिनीलास्यलीलालयाङ्गी ॥ ४॥
क्षमाक्षेमशीला क्षपाकारिणी चाक्षयप्रीतिदा भूतियुक्ता भवानी ।
भवाराधिता भूतिसत्यात्मिका च प्रभोद्भासिता भानुभास्वत्करा च ॥ ५॥
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धराधीशमाता धरागारदृष्टिर्धरेशार्चिता धीवराधीवराङ्गी ।
प्रकृष्टप्रभारूपिणी प्राणरूपप्रकृष्टस्वरूपा स्वरूपप्रिया च ॥ ६॥
चलत्कुण्डला कामिनी कान्तयुक्ता कपालाचला कालकोद्धारिणी च ।
कदम्बप्रिया कोटरीकोटदेहा क्रमा कीर्तिदा कर्णरूपा च काक्ष्मीः ॥ ७॥
क्षमाङ्गी क्षयप्रेमरूपा क्षपा च क्षयाक्षा क्षयाह्वा क्षयप्रान्तरा च ।
क्षवत्कामिनी क्षारिणी क्षीरपूर्णा शिवाङ्गी च शाकम्भरी शाकदेहा ॥ ८॥
महाशाकयज्ञा फलप्राशका च शकाह्वा शकाह्वाशकाख्या शका च ।
शकाक्षान्तरोषा सुरोषा सुरेखा महाशेषयज्ञोपवीतप्रिया च ॥ ९॥
जयन्ती जया जाग्रतीयोग्यरूपा जयाङ्गा जपध्यानसन्तुष्टसंज्ञा ।
जयप्राणरूपा जयस्वर्णदेहा जयज्वालिनी यामिनी याम्यरूपा ॥ १०॥
जगन्मातृरूपा जगद्रक्षणा च स्वधावौषडन्ता विलम्बाविलम्बा ।
षडङ्गा महालम्बरूपासिहस्ता पदाहारिणीहारिणी हारिणी च ॥ ११॥
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महामङ्गला मङ्गलप्रेमकीर्तिर्निशुम्भच्छिदा शुम्भदर्पत्वहा च ।
तथाऽऽनन्दबीजादिमुक्तस्वरूपा तथा चण्डमुण्डापदामुख्यचण्डा ॥ १२॥
प्रचण्डाप्रचण्डा महाचण्डवेगा चलच्चामरा चामराचन्द्रकीर्तिः ।
सुचामीकराचित्रभूषोज्ज्वलाङ्गी सुसङ्गीतगीता च पायादपायात् ॥ १३॥
इति ते कथितं देवि नाम्नामष्टोत्तरं शतम् ।
गोप्यञ्च सर्वतन्त्रेषु गोपनीयञ्च सर्वदा ॥ १४॥
एतस्य सतताभ्यासात्साक्षाद्देवो महेश्वरः ।
त्रिसन्ध्यञ्च महाभक्त्या पठनीयं सुखोदयम् ॥ १५॥
न तस्य दुष्करं किञ्चिज्जायते स्पर्शतः क्षणात् ।
स्वकृतं यत्तदेवाप्तं तस्मादावर्तयेत्सदा ॥ १६॥
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सदैव सन्निधौ तस्य देवी वसति सादरम् ।
अयोगा ये तवैवाग्रे सुयोगाश्च भवन्ति वै ॥ १७॥
त एवमित्रभूताश्च भवन्ति तत्प्रसादतः ।
विषाणि नोपसर्पन्ति व्याधयो न स्पृशन्ति तान् ॥ १८॥
लूताविस्फोटकास्सर्वे शमं यान्ति च तत्क्षणात् ।
जरापलितनिर्मुक्तः कल्पजीवी भवेन्नरः ॥ १९॥
अपि किं बहुनोक्तेन सान्निध्यं फलमाप्नुयात् ।
यावन्मया पुरा प्रोक्तं फलं साहस्रनामकम् ।
तत्सर्वं लभते मर्त्यो महामायाप्रसादतः ॥ २०॥
इति श्रीरुद्रयामले मातङ्गीशतनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
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