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Mahalakshmi Kavacham : Mahalakshmi Kavach: महालक्ष्मी कवचम्

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महालक्ष्मी कवचम् || Shri Mahalakshmi Kavacham || Mahalakshmi Kavach

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महालक्ष्मी कवचम् || Mahalakshmi Kavacham || Mahalakshmi Kavach

महालक्ष्याः प्रवक्ष्यामि कवचं सर्वकामदम्।

सर्वपापप्रशमनं  सर्वव्याधि निवारणम्॥१॥

दुष्टमृत्युप्रशमनं दुष्टदारिद्र्यनाशनम्।

ग्रहपीडा प्रशमनं अरिष्ट प्रविभञ्जनम्॥२॥

पुत्रपौत्रादिजनकं विवाहप्रदमिष्टदम्।

चोरारिहारि जगतां अखिलेप्सित कल्पकम्॥३॥

सावधानमना भूत्वा शृणु त्वं शुकसत्तम।

अनेकजन्मसंसिद्धि लभ्यं मुक्तिफलप्रदम्॥४॥

धनधान्य महाराज्य सर्वसौभाग्यदायकम्।

सकृत्पठनमात्रेण महालक्ष्मीः प्रसीदति॥५॥

क्षीराब्धिमध्ये पद्मानां कानने मणिमण्टपे।

रत्नसिंहासने दिव्ये तन्मध्ये मणिपङ्कजे।६॥

तन्मध्ये सुस्थितां देवीं मरीचिजनसेविताम्।

सुस्नातां पुष्पसुरभिं कुटिलालकबन्धनाम् ॥७॥

पूर्णेन्दुबिम्बवदनां अर्धचन्द्रललाटिकाम्।

इन्दीवरेक्षणां कामां सर्वाण्डभुवनेश्वरीम् ॥८॥

तिलप्रसवसुस्निग्धनासिकालङ्कृतां श्रियम्।

कुन्दावदातरदनां बन्धूकाधरपल्लवाम् ॥९॥

दर्पणाकारविमलकपोलद्वितयोज्ज्वलाम्।

माङ्गल्याभरणोपेतां कर्णद्वितयसुन्दराम् ॥१०॥

कमलेशसुभद्राढ्ये अभयं दधतीं परम्।

रोमराजिलता चारु मग्ननाभि तलोदरीम् ॥११॥

पट्टवस्त्रसमुद्भासि सुनितम्बादिलक्षणाम्।

काञ्चनस्थंभविभ्राजद्वरजानूरु शोभिताम् ॥१२॥

स्मरकाहलिकागर्वहारिजङ्घां हरिप्रियाम्।

कमठीपृष्ठसदृशपादाब्जां चन्द्रवन्नखाम् ॥१३॥

पङ्कजोदर लावण्यां सुतलांघ्रितलाश्रयाम्।

सर्वाभरणसंयुक्तां सर्वलक्षणलक्षिताम् ॥१४॥

पितामहमहाप्रीतां नित्यतृप्तां हरिप्रियां।

नित्यकारुण्यललितां कस्तूरीलेपिताङ्गिकाम्॥१५॥

सर्वमन्त्रमयीं लक्ष्मीं श्रुतिशास्त्रस्वरूपिणीम्।

परब्रह्ममयीं देवीं पद्मनाभकुटुम्बिनीम् ॥१६॥

एवं ध्यायेत् महालक्ष्मीं यः पठेत् कवचं परम् ॥१७॥

महलक्ष्मीः शिरः पातु ललाटं मम पङ्कजा।

कर्णद्वन्द्वं रमा पातु नयने नलिनालया॥१८॥

नासिकामवतादम्बा वाचं वाग्रूपिणी मम।

दन्तानवतु जिह्वां श्रीः अधरोष्ठं हरिप्रिया ॥१९॥

चिबुकं पातु वरदा कण्ठं गन्धर्वसेविता।

वक्षः कुक्षिकरौ पायुं पृष्ठमव्यात् रमा स्वयम्॥२०॥

कट्यूरुद्वयकं जानु जङ्घे पादद्वयं शिवा।

सर्वाङ्गमिन्द्रियं प्राणान् पायादायासहारिणी॥२१॥

सप्तधातून् स्वयञ्जाता रक्तं शुक्लं मनोऽस्थि च।

ज्ञानं भुक्तिर्मनोत्साहान् सर्वं मे पातु पद्मजा ॥२२॥

मया कृतन्तु यत् तद्वै तत्सर्वं पातु मङ्गला।

ममायुरङ्गकान् लक्ष्मीः भार्यापुत्रांश्च पुत्रिकाः॥२३॥

मित्राणि पातु सततं अखिलं मे वरप्रदा।

ममारिनाशनार्थाय माया मृत्युञ्जया बलम्॥२४॥

सर्वाभीष्टन्तु मे दद्यात् पातु मां कमलालया।

सहजां सोदरञ्चैव शत्रुसंहारिणी वधूः॥२५॥

बन्धुवर्गं पराशक्तिः पातु मां सर्वमङ्गला॥

          फलश्रुतिः

य इदं कवचं दिव्यं रमायाः प्रयतः पठेत्।

सर्वसिद्धिमवाप्नोति सर्वरक्षां च शाश्वतीम्॥१॥

दीर्घायुष्मान्भवेन्नित्यं सर्वसौभाग्यशोभितम्।

सर्वज्ञः सर्वदर्शी च सुखितश्च सुखोज्ज्वलः॥२॥

सुपुत्रो गोपतिः श्रीमान् भविष्यति न संशयः ।

तद्गृहे न भवेद्ब्रह्मन् दारिद्र्यदुरितादिकम्॥३॥

नाग्निना दह्यते गेहं न चोराद्यैश्च पीड्यते।

भुतप्रेतपिशाचाद्याः त्रस्ता धावन्ति दूरतः ॥४॥

लिखित्वा स्थापितं यन्त्रं तत्र वृद्धिर्भवेत् ध्रुवम् ।

नापमृत्युमवाप्नोति देहान्ते मुक्तिमान् भवेत् ॥५॥

सायं प्रातः पठेद्यस्तु महाधनपतिर्भवेत् ।

आयुष्यं पौष्टिकं मेध्यं पापं दुस्स्वप्ननाशनम् ॥६॥

प्रज्ञाकरं पवित्रञ्च दुर्भिक्षाग्निविनाशनम् ।

चित्तप्रसादजनकं महामृत्युप्रशान्तिदम् ॥७॥

महारोगज्वरहरं ब्रह्महत्यादि शोधकम्।

महासुखप्रदञ्चैव पठितव्यं सुखार्थिभिः ॥८॥

धनार्थी धनमाप्नोति विवाहार्थी लभेत् वधूः।

विद्यार्थी लभते विद्यां पुत्रार्थी गुणवत्सुतान्॥९॥

राज्यार्थी लभते राज्यं सत्यमुक्तं मया शुक।

महालक्ष्म्याः मन्त्रसिद्धिः जपात् सद्यः प्रजायते॥१०॥

एवं देव्याः प्रसादेन शुकः कवचमाप्तवान्।

कवचानुग्रहेणैव सर्वान् कामानवाप्नुयात्॥११॥

सर्वलक्षणसंपन्नां लक्ष्मीं सर्वेश्वरेश्वरीम् ।

प्रपद्ये शरणं देवीं पद्मपत्राक्षवल्लभाम्॥१२॥

॥ श्री महालक्ष्मी कवचं संपूर्णम् ॥

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