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श्री लक्ष्मी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् || Shri Lakshmi Ashtottara Shatanamavali Stotram
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श्री लक्ष्मी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् || Shri Lakshmi Ashtottara Shatanamavali Stotram
श्रीगणेशाय नमः ।
देव्युवाच देवदेव महादेव त्रिकालज्ञ महेश्वर ।
करुणाकर देवेश भक्तानुग्रहकारक ॥ १॥
अष्टोत्तरशतं लक्ष्म्याः श्रोतुमिच्छामि तत्त्वतः ।
ईश्वर उवाच
देवि साधु महाभागे महाभाग्यप्रदायकम् ।
सर्वैश्वर्यकरं पुण्यं सर्वपापप्रणाशनम् ॥ २॥
सर्वदारिद्र्यशमनं श्रवणाद्भुक्तिमुक्तिदम् ।
राजवश्यकरं दिव्यं गुह्याद्गुह्यतमं परम् ॥ ३॥
दुर्लभं सर्वदेवानां चतुःषष्टिकलास्पदम् ।
पद्मादीनां वरान्तानां विधीनां नित्यदायकम् ॥ ४॥
समस्तदेवसंसेव्यमणिमाद्यष्टसिद्धिदम् ।
किमत्र बहुनोक्तेन देवी प्रत्यक्षदायकम् ॥ ५॥
तव प्रीत्याद्य वक्ष्यामि समाहितमनाः शृणुं ।
अष्टोत्तरशतस्यास्य महालक्ष्मीस्तु देवता ॥ ६॥
क्लींबीजपदमित्युक्तं शक्तिस्तु भुवनेश्वरी ।
अङ्गन्यासः करन्यास स इत्यादिः प्रकीर्तितः ॥ ७॥
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ध्यानम् वन्दे पद्मकरां प्रसन्नवदनां सौभाग्यदां
भाग्यदां हस्ताभ्यामभयप्रदां मणिगणैर्नानाविधैर्भूषिताम् ।
भक्ताभीष्टफलप्रदां हरिहरब्रह्मादिभिः सेवितां
पार्श्वे पङ्कजशङ्खपद्मनिधिभिर्युक्तां सदा शक्तिभिः ॥ ८॥
सरसिजनयने सरोजहस्ते धवलतरांशुकगन्धमाल्यशोभे ।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥ ९॥
प्रकृतिं विकृतिं विद्यां सर्वभूतहितप्रदाम् ।
श्रद्धां विभूतिं सुरभिं नमामि परमात्मिकाम् ॥ १०॥
वाचं पद्मालयां पद्मां शुचिं स्वाहां स्वधां सुधाम् ।
धन्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं नित्यपुष्टां विभावरीम् ॥ ११॥
अदितिं च दितिं दीप्तां वसुधां वसुधारिणीम् ।
नमामि कमलां कान्तां कामाक्षीं क्रोधसम्भवाम् ॥ १२॥
कामा क्षीरोदसम्भवाम् अनुग्रहपदां बुद्धिमनघां हरिवल्लभाम् ।
अशोकाममृतां दीप्तां लोकशोकविनाशिनीम् ॥ १३॥
नमामि धर्मनिलयां करुणां लोकमातरम् ।
पद्मप्रियां पद्महस्तां पद्माक्षीं पद्मसुन्दरीम् ॥ १४॥
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पद्मोद्भवां पद्ममुखीं पद्मनाभप्रियां रमाम् ।
पद्ममालाधरां देवीं पद्मिनीं पद्मगन्धिनीम् ॥ १५॥
पुण्यगन्धां सुप्रसन्नां प्रसादाभिमुखीं प्रभाम् ।
नमामि चन्द्रवदनां चन्द्रां चन्द्रसहोदरीम् ॥ १६॥
चतुर्भुजां चन्द्ररूपामिन्दिरामिन्दुशीतलाम् ।
आह्लादजननीं पुष्टिं शिवां शिवकरीं सतीम् ॥ १७॥
विमलां विश्वजननीं तुष्टिं दारिद्र्यनाशिनीम् ।
प्रीतिपुष्करिणीं शान्तां शुक्लमाल्याम्बरां श्रियम् ॥ १८॥
भास्करीं बिल्वनिलयां वरारोहां यशस्विनीम् ।
वसुन्धरामुदाराङ्गीं हरिणीं हेममालिनीम् ॥ १९॥
धनधान्यकरीं सिद्धिं सदा सौम्यां शुभप्रदाम् ।
नृपवेश्मगतानन्दां वरलक्ष्मीं वसुप्रदाम् ॥ २०॥
शुभां हिरण्यप्राकारां समुद्रतनयां जयाम् ।
नमामि मङ्गलां देवीं विष्णुवक्षःस्थलस्थिताम् ॥ २१॥
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विष्णुपत्नीं प्रसन्नाक्षीं नारायणसमाश्रिताम् ।
दारिद्र्यध्वंसिनीं देवीं सर्वोपद्रवहारिणीम् ॥ २२॥
नवदुर्गां महाकालीं ब्रह्मविष्णुशिवात्मिकाम् ।
त्रिकालज्ञानसम्पन्नां नमामि भुवनेश्वरीम् ॥ २३॥
लक्ष्मीं क्षीरसमुद्रराजतनयां श्रीरङ्गधामेश्वरीं,
दासीभूतसमस्तदेववनितां लोकैकदीपाङ्कुराम् ।
श्रीमन्मन्दकटाक्षलब्धविभवब्रह्मेन्द्रगङ्गाधरां त्वां,
त्रैलोक्यकुटुम्बिनीं सरसिजां वन्दे मुकुन्दप्रियाम् ॥ २४॥
मातर्नमामि कमले कमलायताक्षि श्रीविष्णुहृत्कमलवासिनि विश्वमातः ।
क्षीरोदजे कमलकोमलगर्भगौरि लक्ष्मि प्रसीद सततं नमतां शरण्ये ॥ २५॥
त्रिकालं यो जपेद्विद्वान् षण्मासं विजितेन्द्रियः ।
दारिद्र्यध्वंसनं कृत्वा सर्वमाप्नोत्ययत्नतः ॥ २६॥
देवीनामसहस्रेषु पुण्यमष्टोत्तरं शतम् ।
येन श्रियमवाप्नोति कोटिजन्मदरिद्रतः ॥ २७॥
भृगुवारे शतं धीमान् पठेद्वत्सरमात्रकम् ।
अष्टैश्वर्यमवाप्नोति कुबेर इव भूतले ॥ २८॥
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दारिद्र्यमोचनं नाम स्तोत्रमम्बापरं शतम् ।
येन श्रियमवाप्नोति कोटिजन्मदरिद्रितः ॥ २९॥
भुक्त्वा तु विपुलान् भोगानस्याः सायुज्यमाप्नुयात् ।
प्रातःकाले पठेन्नित्यं सर्वदुःखोपशान्तये ।
पठंस्तु चिन्तयेद्देवीं सर्वाभरणभूषिताम् ॥ ३०॥
॥ इति श्रीलक्ष्म्यष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
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