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काली अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् || Kali Ashtottara Shatanama Stotram || Kali Ashtottara Shatanama Stotra

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श्री काली अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् || Shri Kali Ashtottara Shatanama Stotram

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श्री काली अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् || Shri Kali Ashtottara Shatanama Stotram

श्रीदेव्युवाच ।

पुरा प्रतिश्रुतं देव क्रीडासक्तो यदा भवान् ।

नाम्नां शतं महाकाल्याः कथयस्व मयि प्रभो ॥ २३-१॥

श्रीभैरव उवाच ।

साधु पृष्टं महादेवि अकथ्यं कथयामि ते ।

न प्रकाश्यं वरारोहे स्वयोनिरिव सुन्दरि ॥ २३-२॥

प्राणाधिकप्रियतरा भवती मम मोहिनी ।

क्षणमात्रं न जीवामि त्वां बिना परमेश्वरि ॥ २३-३॥

यथादर्शेऽमले बिम्बं घृतं दध्यादिसंयुतम् ।

तथाहं जगतामाद्ये त्वयि सर्वत्र गोचरः ॥ २३-४॥

शृणु देवि प्रवक्ष्यामि जपात् सार्वज्ञदायकम् ।

सदाशिव ऋषिः प्रोक्तोऽनुष्टुप् छन्दश्च ईरितः ॥ २३-५॥

देवता भैरवो देवि पुरुषार्थचतुष्टये ।

विनियोगः प्रयोक्तव्यः सर्वकर्मफलप्रदः ॥ २३-६॥

महाकाली जगद्धात्री जगन्माता जगन्मयी ।

जगदम्बा गजत्सारा जगदानन्दकारिणी ॥ २३-७॥

जगद्विध्वंसिनी गौरी दुःखदारिद्र्यनाशिनी ।

भैरवभाविनी भावानन्ता सारस्वतप्रदा ॥ २३-८॥

चतुर्वर्गप्रदा साध्वी सर्वमङ्गलमङ्गला ।

भद्रकाली विशालाक्षी कामदात्री कलात्मिका ॥ २३-९॥

नीलवाणी महागौरसर्वाङ्गा सुन्दरी परा ।

सर्वसम्पत्प्रदा भीमनादिनी वरवर्णिनी ॥ २३-१०॥

वरारोहा शिवरुहा महिषासुरघातिनी ।

शिवपूज्या शिवप्रीता दानवेन्द्रप्रपूजिता ॥ २३-११॥

सर्वविद्यामयी शर्वसर्वाभीष्टफलप्रदा ।

कोमलाङ्गी विधात्री च विधातृवरदायिनी ॥ २३-१२॥

पूर्णेन्दुवदना नीलमेघवर्णा कपालिनी ।

कुरुकुल्ला विप्रचित्ता कान्तचित्ता मदोन्मदा ॥ २३-१३॥

मत्ताङ्गी मदनप्रीता मदाघूर्णितलोचना ।

मदोत्तीर्णा खर्परासिनरमुण्डविलासिनी ॥ २३-१४॥

नरमुण्डस्रजा देवी खड्गहस्ता भयानका ।

अट्टहासयुता पद्मा पद्मरागोपशोभिता ॥ २३-१५॥

वराभयप्रदा काली कालरात्रिस्वरूपिणी ।

स्वधा स्वाहा वषट्कारा शरदिन्दुसमप्रभा ॥ २३-१६॥

शरत्ज्योत्स्ना च संह्लादा विपरीतरतातुरा ।

मुक्तकेशी छिन्नजटा जटाजूटविलासिनी ॥ २३-१७॥

सर्पराजयुताभीमा सर्पराजोपरि स्थिता ।

श्मशानस्था महानन्दिस्तुता संदीप्तलोचना ॥ २३-१८॥

शवासनरता नन्दा सिद्धचारणसेविता ।

बलिदानप्रिया गर्भा भूर्भुवःस्वःस्वरूपिणी ॥ २३-१९॥

गायत्री चैव सावित्री महानीलसरस्वती ।

लक्ष्मीर्लक्षणसंयुक्ता सर्वलक्षणलक्षिता ॥ २३-२०॥

व्याघ्रचर्मावृता मेध्या त्रिवलीवलयाञ्चिता ।

गन्धर्वैः संस्तुता सा हि तथा चेन्दा महापरा ॥ २३-२१॥

पवित्रा परमा माया महामाया महोदया ।

इति ते कथितं दिव्यं शतं नाम्नां महेश्वरि ॥ २३-२२॥

यः पठेत् प्रातरुत्थाय स तु विद्यानिधिर्भवेत् ।

इह लोके सुखं भुक्त्वा देवीसायुज्यमाप्नुयात् ॥ २३-२३॥

तस्य वश्या भवन्त्येते सिद्धौघाः सचराचराः ।

खेचरा भूचराश्चैव तथा स्वर्गचराश्च ये ॥ २३-२४॥

ते सर्वे वशमायान्ति साधकस्य हि नान्यथा ।

नाम्नां वरं महेशानि परित्यज्य सहस्रकम् ॥ २३-२५॥

पठितव्यं शतं देवि चतुर्वर्गफलप्रदम् ।

अज्ञात्वा परमेशानि नाम्नां शतं महेश्वरि ॥ २३-२६॥

भजते यो महकालीं सिद्धिर्नास्ति कलौ युगे ।

प्रपठेत् प्रयतो भक्त्या तस्य पुण्यफलं शृणु ॥ २३-२७॥

लक्षवर्षसहस्रस्य कालीपूजाफलं भवेत् ।

बहुना किमिहोक्तेन वाञ्छितार्थी भविष्यति ॥ २३-२८॥

इति श्रीबृहन्नीलतन्त्रे भैरवपार्वतीसंवादे कालीशतनामनिरूपणं त्रयोविंशः पटलः ॥ २३॥

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