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श्री हयग्रीव शतनामावली स्तोत्रम || Shri Hayagreeva Ashtottara Shatanamavali Stotram || Hayagreeva Ashtottara Shatanama Stotram
हायाग्रिवा में हया का मतलब है घोड़े और ग्रिवा का अर्थ है गर्दन ! यंहा घोड़े को भगवान श्री विष्णु जी के रूप का सामना करना पड़ता हैं ! राक्षस मधु और काइताभा ने ब्रह्मा से वेदों को चुरा लिया था उसे वापस लाने के लिए भगवान श्री विष्णु जी को हयग्रीव का अवतार लेना पडा ! Shri Hayagreeva Ashtottara Shatanamavali Stotram के बारे में बताने जा रहे हैं !! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !! यदि आप अपनी कुंडली दिखा कर परामर्श लेना चाहते हो तो या किसी समस्या से निजात पाना चाहते हो तो कॉल करके या नीचे दिए लाइव चैट ( Live Chat ) से चैट करे साथ ही साथ यदि आप जन्मकुंडली, वर्षफल, या लाल किताब कुंडली भी बनवाने हेतु भी सम्पर्क करें : 9667189678 Shri Hayagreeva Ashtottara Shatanamavali Stotram By Online Specialist Astrologer Acharya Pandit Lalit Trivedi.
श्री हयग्रीव शतनामावली स्तोत्रम || Shri Hayagreeva Ashtottara Shatanamavali Stotram || Hayagreeva Ashtottara Shatanama Stotram
अथ विनियोगः –
ॐ अस्य श्रीहयग्रीवस्तोत्रमन्त्रस्य सङ्कर्षण ऋषिः,
अनुष्टुप्छन्दः, श्रीहयग्रीवो देवता ऋं बीजं
नमः शक्तिः विद्यार्थे जपे विनियोगः ॥
अथ ध्यानम् –
वन्दे पूरितचन्द्रमण्डलगतं श्वेतारविन्दासनं
मन्दाकिन्यमृताब्धिकुन्दकुमुदक्षीरेन्दुहासं हरिम् ।
मुद्रापुस्तकशङ्खचक्रविलसच्छ्रीमद्भुजामण्डितम् नित्यं
निर्मलभारतीपरिमलं विश्वेशमश्वाननम् ॥
अथ मन्त्रः –
ॐ ऋग्यजुःसामरूपाय वेदाहरणकर्मणे ।
प्रणवोद्गीथवचसे महाश्वशिरसे नमः ॥
श्रीहयग्रीवाय नमः ।
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अथ स्तोत्रम् –
ज्ञानानन्दमयं देवं निर्मलं स्फटिकाकृतिम् ।
आधारं सर्वविद्यानां हयग्रीवमुपास्महे ॥ १॥
हयग्रीवो महाविष्णुः केशवो मधुसूदनः ।
गोविन्दः पुण्डरीकाक्षो विष्णुर्विश्वम्भरो हरिः ॥ २॥
आदीशः सर्ववागीशः सर्वाधारः सनातनः ।
निराधारो निराकारो निरीशो निरुपद्रवः ॥ ३॥
निरञ्जनो निष्कलङ्को नित्यतृप्तो निरामयः ।
चिदानन्दमयः साक्षी शरण्यः सर्वदायकः ॥ ४॥
शुभदायकः श्रीमान् लोकत्रयाधीशः शिवः सारस्वतप्रदः ।
वेदोद्धर्त्तावेदनिधिर्वेदवेद्यः पुरातनः ॥ ५॥
पूर्णः पूरयिता पुण्यः पुण्यकीर्तिः परात्परः ।
परमात्मा परञ्ज्योतिः परेशः पारगः परः ॥ ६॥
सकलोपनिषद्वेद्यो निष्कलः सर्वशास्त्रकृत् ।
अक्षमालाज्ञानमुद्रायुक्तहस्तो वरप्रदः ॥ ७॥
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पुराणपुरुषः श्रेष्ठः शरण्यः परमेश्वरः ।
शान्तो दान्तो जितक्रोधो जितामित्रो जगन्मयः ॥ ८॥
जरामृत्युहरो जीवो जयदो जाड्यनाशनः ।
गरुडासनः जपप्रियो जपस्तुत्यो जपकृत्प्रियकृद्विभुः ॥ ९॥
जयश्रियोर्जितस्तुल्यो जापकप्रियकृद्विभुः विमलो विश्वरूपश्च विश्वगोप्ता विधिस्तुतः ।
विराट् स्वराट् विधिविष्णुशिवस्तुत्यः शान्तिदः क्षान्तिकारकः ॥ १०॥
श्रेयःप्रदः श्रुतिमयः श्रेयसां पतिरीश्वरः ।
अच्युतोऽनन्तरूपश्च प्राणदः पृथिवीपतिः ॥ ११॥
अव्यक्तो व्यक्तरूपश्च सर्वसाक्षी तमोहरः ।
अज्ञाननाशको ज्ञानी पूर्णचन्द्रसमप्रभः ॥ १२॥
ज्ञानदो वाक्पतिर्योगी योगीशः सर्वकामदः ।
योगारूढो महापुण्यः पुण्यकीर्तिरमित्रहा ॥ १३॥
विश्वसाक्षी चिदाकारः परमानन्दकारकः ।
महायोगी महामौनी मुनीशः श्रेयसां निधिः ॥ १४॥
हंसः परमहंसश्च विश्वगोप्ता विरट् स्वराट् ।
शुद्धस्फटिकसङ्काशः जटामण्डलसंयुतः ॥ १५॥
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आदिमध्यान्तरहितः सर्ववागीश्वरेश्वरः ।
प्रणवोद्गीथरूपश्च वेदाहरणकर्मकृत् ॥ १६॥
नाम्नामष्टोत्तरशतं हयग्रीवस्य यः पठेत् ।
स सर्ववेदवेदाङ्गशास्त्राणां पारगः कविः ॥ १७॥
इदमष्टोत्तरशतं नित्यं मूढोऽपि यः पठेत् ।
वाचस्पतिसमो बुद्ध्या सर्वविद्याविशारदः ॥ १८॥
महदैश्वर्यमाप्नोति कलत्राणि च पुत्रकान् ।
नश्यन्ति सकलान् रोगान् अन्ते हरिपुरं व्रजेत् ॥ १९॥
॥ इति श्रीब्रह्माण्डपुराणे श्रीहयग्रीवाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
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