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गंगा सप्तमी 2023 || Ganga Saptami 2023 || Ganga Saptami Puja & Date
गंगा सप्तमी वाले दिन को मां गंगा की उत्पत्ति मानी जाती है, मां गंगा जी को पापमोचनी मोक्ष दायनी माना जाता है, Ganga Saptami के एक माह बाद गंगा दशहरा का त्योहार भी मनाया जाता है। बैशाख मास के शुक्ल पक्ष की गंगा सप्तमी के दिन गंगा नदी में स्नान करने के बाद पित्तरों का तर्पण करने से उन्हें भी मुक्ति प्राप्ति होती है। हम यंहा आपको Ganga Saptami आदि की जानकारी देने जा रहे है !! Online Specialist Astrologer Acharya Pandit Lalit Trivedi द्वारा बताये जा रहे गंगा सप्तमी 2023 || Ganga Saptami 2023 || Ganga Saptami Puja & Date को जानकर आप भी गंगा सप्तमी पूजा विधि सही प्रकार से कर सकोंगे !! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !! जय श्री मेरे पूज्यनीय माता – पिता जी !! यदि आप अपनी कुंडली दिखा कर परामर्श लेना चाहते हो तो या किसी समस्या से निजात पाना चाहते हो तो कॉल करके या नीचे दिए लाइव चैट ( Live Chat ) से चैट करे साथ ही साथ यदि आप जन्मकुंडली, वर्षफल, या लाल किताब कुंडली भी बनवाने हेतु भी सम्पर्क करें Mobile & Whats app Number: 9667189678 Ganga Saptami By Online Specialist Astrologer Acharya Pandit Lalit Trivedi.
गंगा सप्तमी 2023 || Ganga Saptami 2023 || Ganga Saptami Puja & Date
गंगा सप्तमी कब मनाई जाती हैं ? 2023 || Ganga Saptami Kab Manai Jati Hai ? 2023
हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार बैशाख मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को Ganga Saptami मनाई जाती हैं। इस दिन गंगा स्वर्ग लोक से शिव शंकर की जटाओं में पहुंची थी इसलिए इस दिन को गंगा जयंती या गंगा सप्तमी के रूप में मनाया जाता है. Ganga Saptami के दिन माँ गंगा जी की उत्पत्ति हुई और जिस दिन गंगाजी पृथ्वी पर अवतरित हुई वह दिन ‘गंगा दशहरा’ (ज्येष्ठ शुक्ल दशमी) के नाम से जाना जाता है इस दिन मां गंगा का पूजन किया जाता है.
गंगा सप्तमी 2023 कब हैं ? || Ganga Saptami 2023 Kab Hai ?
इस साल 2023 में Ganga Saptami अप्रैल महीने की 27 तारीख, वार गुरुवार के दिन मनाई जाएगी।
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गंगा सप्तमी का महत्त्व || Ganga Saptami Ka Mahtav
पौराणिक शास्त्रों के अनुसार वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को माँ गंगा स्वर्ग लोक से शिवशंकर की जटाओं में पहुँची थी। इसलिए इस दिन को ‘Ganga Saptami‘ के रूप में मनाया जाता है। जिस दिन गंगा जी की उत्पत्ति हुई, वह दिन ‘गंगा जयंती’ (वैशाख शुक्ल सप्तमी) और जिस दिन गंगाजी पृथ्वी पर अवतरित हुईं, वह दिन ‘ गंगा दशहरा ‘ ( ज्येष्ठ शुक्ल दशमी ) के नाम से जाना जाता है। इस दिन माँ गंगा का पूजन किया जाता है। Ganga Saptami के अवसर पर्व पर माँ गंगा में डुबकी लगाने से मनुष्य के सभी पाप धुल जाते हैं और मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। वैसे तो गंगा में स्नान का अपना अलग ही महत्व है, लेकिन इस दिन स्नान करने से मनुष्य सभी दुखों से मुक्ति पा जाता है। इस पर्व के लिए गंगा मंदिरों सहित अन्य मंदिरों पर भी विशेष पूजा – अर्चना की जाती है। कहा जाता है कि गंगा नदी में स्नान करने से दस पापों का हरण होकर अंत में मुक्ति मिलती है। Ganga Saptami पर दिन दान- पुण्य का विशेष महत्व है। शास्त्रों में उल्लेख है कि जीवनदायिनी गंगा में स्नान, पुण्यसलिला नर्मदा के दर्शन और मोक्षदायिनी शिप्रा के स्मरण मात्र से मोक्ष मिल जाता है।
गंगा सप्तमी कथा || Ganga Saptami Katha
ऋगवेद में गंगा का वर्णन कहीं-कहीं ही मिलता है पर पुराणों में गंगा से संबंधित कहानियां अपने-आप आ गयी। कहा जाता है कि एक प्रफुल्लित सुंदरी युवती का जन्म ब्रह्मदेव के कमंडल से हुआ। इस खास जन्म के बारे में दो विचार हैं। एक की मान्यता है कि वामन रूप में राक्षस बलि से संसार को मुक्त कराने के बाद ब्रह्मदेव ने भगवान विष्णु का चरण धोया और इस जल को अपने कमंडल में भर लिया। दूसरे का संबंध भगवान शिव से है जिन्होंने संगीत के दुरूपयोग से पीड़ित राग-रागिनी का उद्धार किया। जब भगवान शिव ने नारद मुनि ब्रह्मदेव तथा भगवान विष्णु के समक्ष गाना गाया तो इस संगीत के प्रभाव से भगवान विष्णु का पसीना बहकर निकलने लगा जो ब्रह्मा ने उसे अपने कमंडल में भर लिया। इसी कमंडल के जल से गंगा का जन्म हुआ और वह ब्रह्मा के संरक्षण में स्वर्ग में रहने लगी।
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ऐसी किंबदन्ती है कि पृथ्वी पर गंगा का अवतरण राजा भागीरथ के कठिन तप से हुआ, जो सूर्यवंशी राजा तथा भगवान राम के पूर्वज थे। मंदिर के बगल में एक भागीरथ शिला (एक पत्थर का टुकड़ा) है जहां भागीरथ ने भगवान शिव की आराधना की थी। कहा जाता है कि जब राजा सगर ने अपना 100वां अश्वमेघ यज्ञ किया (जिसमें यज्ञ करने वाले राजा द्वारा एक घोड़ा निर्बाध वापस आ जाता है तो वह सारा क्षेत्र यज्ञ करने वाले का हो जाता है) तो इन्द्रदेव ने अपना राज्य छिन जाने के भय से भयभीत होकर उस घोड़े को कपिल मुनि के आश्रम के पास छिपा दिया। राजा सगर के 60,000 पुत्रों ने घोड़े की खोज करते हुए तप में लीन कपिल मुनि को परेशान एवं अपमानित किया। क्षुब्ध होकर कपिल मुनि ने आग्नेय दृष्टि से तत्क्षण सभी को जलाकर भस्म कर दिया। क्षमा याचना किये जाने पर मुनि ने बताया कि राजा सगर के पुत्रों की आत्मा को तभी मुक्ति मिलेगी जब गंगाजल उनका स्पर्श करेगा। सगर के कई वंशजों द्वारा आराधना करने पर भी गंगा ने अवतरित होना अस्वीकार कर दिया।
अंत में राजा सगर के वंशज राजा भागीरथ ने देवताओं को प्रसन्न करने के लिये 5500 वर्षों तक घोर तप किया। उनकी भक्ति से खुश होकर देवी गंगा ने पृथ्वी पर आकर उनके शापित पूर्वजों की आत्मा को मुक्ति देना स्वीकार कर लिया। देवी गंगा के पृथ्वी पर अवतरण के वेग से भारी विनाश की संभावना थी और इसलिये भगवान शिव को राजी किया गया कि वे गंगा को अपनी जटाओं में बांध लें। (गंगोत्री का अर्थ होता है गंगा उतरी अर्थात गंगा नीचे उतर आई इसलिये यह शहर का नाम गंगोत्री पड़ा।
भागीरथ ने तब गंगा को उस जगह जाने का रास्ता बताया जहां उनके पूर्वजों की राख पड़ी थी और इस प्रकार उनकी आत्मा को मुक्ति मिली। परंतु एक और दुर्घटना के बाद ही यह हुआ। गंगा ने जाह्नु मुनि के आश्रम को पानी में डुबा दिया। मुनि क्रोध में पूरी गंगा को ही पी गये पर भागीरथ के आग्रह पर उन्होंने अपने कान से गंगा को बाहर निकाल दिया। इसलिये ही गंगा को जाह्नवी भी कहा जाता है।
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बर्फीली नदी गंगोत्री के मुहाने पर, शिवलिंग चोटी के आधार स्थल पर गंगा पृथ्वी पर उतरी जहां से उसने 2,480 किलोमीटर गंगोत्री से बंगाल की खाड़ी तक की यात्रा शुरू की। इस विशाल नदी के उद्गम स्थल पर इसका नाम भागीरथी है जो उस महान तपस्वी भागीरथ के नाम पर है जिन के आग्रह पर गंगा स्वर्ग छोड़कर पृथ्वी पर आयी। देवप्रयाग में अलकनंदा से मिलने पर इसका नाम गंगा हो गया।
माना जाता है कि महाकाव्य महाभारत के नायक पांडवों ने कुरूक्षेत्र में अपने सगे संबंधियों की मृत्यु पर प्रायश्चित करने के लिये देव यज्ञ गंगोत्री में ही किया था।
गंगा सप्तमी पूजा विधि || Ganga Saptami Puja Vidhi
गंगा सप्तमी के दिन जातक को सूर्योंदय से पहले उठकर नियमित कर्मो से निवृत होकर गंगा नदी में स्नान या स्नान के जल में गंगाजल डालकर स्नान करना चाहिए। उसके बाद गंगाजल मिश्रित जल से सर्वप्रथम सूर्य देव को अर्घ्य दे। तत्पश्चात “ॐ श्री गंगे नमः” मंत्र का उच्चारण करते हुए माँ गंगा जी को अर्घ्य दे। उसके बाद आप माँ गंगा जी की आरती व गंगा चालीसा का पाठ करें। गंगा नदी में तिल का दान करे। गंगा घाट पर पूजन करे। पूजन सम्पन्न होने के पश्चात सामर्थ्य अनुसार ब्राह्मणो व जरुरतमंदो लोगों को दान करें। इस प्रकार Ganga Saptami की पूजा सम्पन हुई।
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