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दुर्गा देवी ध्यानम् || Durga Devi Dhyanam || Durga Dhyanam

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श्री दुर्गादेवी ध्यानम् || Shri Durga Devi Dhyanam

श्री दुर्गादेवी ध्यानम् माँ दुर्गा देवी को समर्पित हैं ! जो भी व्यक्ति नियमित रूप से दुर्गादेवी ध्यानम् का पाठ करता है उसे धन-लाभ, सम्पूर्ण कामनाओं की सिद्धि, सम्पूर्ण कामनाओं में विजय की प्राप्ति, मनुष्य जहाँ-जहाँ भी जाता यानी यात्रा करता है उसे सब ओर से सुरक्षित रहता है, जातक जो भी अभीष्ट वस्तु का चिन्तन करता है उसे निश्चय ही प्राप्ति होती हैं ! जो भी व्यक्ति नियमित रूप से दिन में 3 बार सुबह, दोपहर और शाम को करता है उसे विशेष रूप से जल्दी फ़ायदा होता हैं !! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !! यदि आप अपनी कुंडली दिखा कर परामर्श लेना चाहते हो तो या किसी समस्या से निजात पाना चाहते हो तो कॉल करके या नीचे दिए लाइव चैट ( Live Chat ) से चैट करे साथ ही साथ यदि आप जन्मकुंडली, वर्षफल, या लाल किताब कुंडली भी बनवाने हेतु भी सम्पर्क करें : 9667189678 Shri Durga Devi Dhyanam By Online Specialist Astrologer Sri Hanuman Bhakt Acharya Pandit Lalit Trivedi.

श्री दुर्गादेवी ध्यानम् || Shri Durga Devi Dhyanam

ओं जटाजूटसमायुक्तामर्द्धेन्दुकृतशेखराम् ।

लोचनत्रयसंयुक्तां पूर्णेन्दुसदृशाननाम् ॥ १ ॥

अतसीपुष्पवर्णाभां सुप्रतिष्ठां सुलोचनाम् ।

नवयौवनसंपन्नां सर्वाभरणभूषिताम् ॥ २ ॥

सुचारुदशनां तद्वत्पीनोन्नतपयोधराम् ।

त्रिभङ्गस्थानसंस्थानां महिषासुरमर्दिनीम् ॥ ३ ॥

मृणालायतसंस्पर्शदशबाहुसमन्विताम् ।

त्रिशूलं दक्षिणे ध्येयं खड्गं चक्रं क्रमादधः ॥ ४ ॥

तीक्ष्णबाणं तथा शक्तिं दक्षिणेन विचिन्तयेत् ।

खेटकं पूर्णचापं च पाशमङ्कुशमेव च ॥ ५ ॥

घण्टां वा परशुं वापि वामतः सन्निवेशयेत् ।

अधस्तान्महिषं तद्वद्विशिरस्कं प्रदर्शयेत् ॥ ६ ॥

शिरच्छेदोद्भवं तद्वद्दानवं खड्गपाणिनम् ।

हृदि शूलेन निर्भिन्नं निर्यदान्त्रविभूषितम् ॥ ७ ॥

रक्तारक्तीकृताङ्गञ्च रक्तविस्फुरितेक्षणम् ।

वेष्टितं नागपाशेन भ्रुकुटीभीषणाननम् ॥ ८ ॥

सपाशवामहस्तेन धृतकेशञ्च दुर्गया ।

वमद्रुधिरवक्त्रं च देव्याः सिंहं प्रदर्शयेत् ॥ ९ ॥

देव्यास्तु दक्षिणं पादं समं सिंहोपरिस्थितम् ।

किञ्चिदूर्ध्वं तथा वाममङ्गुष्ठं महिषोपरि ॥ १० ॥

प्रसन्नवदनां देवीं सर्वकामफलप्रदाम् ।

शत्रुक्षयकरीं देवीं दैत्यदानवदर्पहाम्] ॥ ११ ॥

स्तूयमानञ्च तद्रूपममरैः सन्निवेशयेत्  ॥ १२ ॥

उग्रचण्डा प्रचण्डा च चण्डोग्रा चण्डनायिका ।

चण्डा चण्डवती चैव चण्डरूपातिचण्डिका ॥ १३ ॥

आभिः शक्तिभिरष्टाभिः सततं परिवेष्टिताम् ।

चिन्तयेज्जगतां धात्रीं धर्मकामार्थमोक्षदाम् ॥ १४ ॥

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