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श्री दुर्गा अष्टकम् || Shri Durga Ashtakam
श्री दुर्गा अष्टकम् श्री शान्तानन्द सरस्वती शिष्य स्वामि श्री मदनन्तानन्द सरस्वति द्वारा रचियत हैं ! श्री दुर्गा अष्टकम् माँ श्री दुर्गा जी को समर्पित हैं !! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !! यदि आप अपनी कुंडली दिखा कर परामर्श लेना चाहते हो तो या किसी समस्या से निजात पाना चाहते हो तो कॉल करके या नीचे दिए लाइव चैट ( Live Chat ) से चैट करे साथ ही साथ यदि आप जन्मकुंडली, वर्षफल, या लाल किताब कुंडली भी बनवाने हेतु भी सम्पर्क करें : 9667189678 Shri Durga Ashtakam By Online Specialist Astrologer Sri Hanuman Bhakt Acharya Pandit Lalit Trivedi.
श्री दुर्गा अष्टकम् || Shri Durga Ashtakam
॥ दुर्गाष्टकम् ॥
दुर्गे परेशि शुभदेशि परात्परेशि,
वन्द्ये महेशदयिते करूणार्णवेशि ।
स्तुत्ये स्वधे सकलतापहरे सुरेशि,
कृष्णस्तुते कुरु कृपां ललितेऽखिलेशि ॥ १॥
दिव्ये नुते श्रुतिशतैर्विमले भवेशि,
कन्दर्पदाराशतसुन्दरि माधवेशि ।
मेधे गिरीशतनये नियते शिवेशि,
कृष्णस्तुते कुरु कृपां ललितेऽखिलेशि ॥ २॥
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रासेश्वरि प्रणततापहरे कुलेशि,
धर्मप्रिये भयहरे वरदाग्रगेशि ।
वाग्देवते विधिनुते कमलासनेशि,
कृष्णस्तुतेकुरु कृपां ललितेऽखिलेशि ॥ ३॥
पूज्ये महावृषभवाहिनि मंगलेशि,
पद्मे दिगम्बरि महेश्वरि काननेशि ।
रम्येधरे सकलदेवनुते गयेशि,
कृष्णस्तुते कुरु कृपां ललितेऽखिलेशि ॥ ४॥
श्रद्धे सुराऽसुरनुते सकले जलेशि,
गंगे गिरीशदयिते गणनायकेशि ।
दक्षे स्मशाननिलये सुरनायकेशि,
कृष्णस्तुते कुरु कृपां ललितेऽखिलेशि ॥ ५॥
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तारे कृपार्द्रनयने मधुकैटभेशि,
विद्येश्वरेश्वरि यमे निखलाक्षरेशि ।
ऊर्जे चतुःस्तनि सनातनि मुक्तकेशि,
कृष्णस्तुते कुरु कृपां ललितऽखिलेशि ॥ ६॥
मोक्षेऽस्थिरे त्रिपुरसुन्दरिपाटलेशि,
माहेश्वरि त्रिनयने प्रबले मखेशि ।
तृष्णे तरंगिणि बले गतिदे ध्रुवेशि,
कृष्णस्तुते कुरु कृपां ललितेऽखिलेशि ॥ ७॥
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विश्वम्भरे सकलदे विदिते जयेशि,
विन्ध्यस्थिते शशिमुखि क्षणदे दयेशि ।
मातः सरोजनयने रसिके स्मरेशि,
कृष्णस्तुते कुरु कृपां ललितेऽखिलेशि ॥ ८॥
दुर्गाष्टकं पठति यः प्रयतः प्रभाते,
सर्वार्थदं हरिहरादिनुतां वरेण्यां ।
दुर्गां सुपूज्य महितां विविधोपचारैः,
प्राप्नोति वांछितफलं न चिरान्मनुष्यः ॥ ९॥
॥ इति श्री मत्परमहंसपरिव्राजकाचार्य श्रीमदुत्तरांनायज्योतिष्पीठाधीश्वरजगद्गुरू-शंकराचार्य-स्वामि- श्रीशान्तानन्द सरस्वती शिष्य-स्वामि श्री मदनन्तानन्द-सरस्वति विरचितं श्री दुर्गाष्टकं सम्पूर्णम्॥
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