धूमावती हृदय स्तोत्र || Dhumavati Hrudayam Stotram || Dhumavati Hrudayam Stotra

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धूमावती हृदय स्तोत्र || Dhumavati Hrudayam Stotram

यह तो आप सब जानते है की धूमावती महाविद्या दस महाविद्याओं में सातंवी स्थान की साधना मानी जाती हैं ! Dhumavati Hrudayam Stotram पढ़ने से साधक के समस्त शत्रु के स्तम्भन और नाश हो जाते हैं ! Dhumavati Hrudayam Stotram के पढ़ने से साधक के शत्रु जड़ से नष्ट हो जाते है ! साधक का जीवन भय रहित होता हैं !! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !! जय श्री मेरे पूज्यनीय माता – पिता जी !! यदि आप अपनी कुंडली दिखा कर परामर्श लेना चाहते हो तो या किसी समस्या से निजात पाना चाहते हो तो कॉल करके या नीचे दिए लाइव चैट ( Live Chat ) से चैट करे साथ ही साथ यदि आप जन्मकुंडली, वर्षफल, या लाल किताब कुंडली भी बनवाने हेतु भी सम्पर्क करें Mobile & Whats app Number : 9667189678 Dhumavati Hrudayam Stotram By Online Specialist Astrologer Sri Hanuman Bhakt Acharya Pandit Lalit Trivedi.

धूमावती हृदय स्तोत्र || Dhumavati Hrudayam Stotram

ओं अस्य श्री धूमावतीहृदयस्तोत्र महामन्त्रस्य-पिप्पलादऋषिः- अनुष्टुप्छन्दः- श्री धूमावती देवता- धूं बीजं- ह्रीं शक्तिः- क्लीं कीलकं -सर्वशत्रु संहारार्थे जपे विनियोगः

करन्यासः –

ओं धां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः ।

ओं धीं तर्जनीभ्यां नमः ।

ओं धूं मध्यमाभ्य़ां नमः ।

ओं धैं अनामिकाभ्यां नमः ।

ओं धौं कनिष्ठकाभ्य़ां नमः ।

ओं धः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।

अङ्गन्यासः –

ओं धां हृदयाय नमः ।

ओं धीं शिरसे स्वाहा ।

ओं धूं शिखायै वषट् ।

ओं धैं कवचाय हुं ।

ओं धौं नेत्रत्रयाय वौषट् ।

ओं धः अस्त्राय फट् ।

ध्यानम् ।

धूम्राभां धूम्रवस्त्रां प्रकटितदशनां मुक्तबालाम्बराढ्यां ।

काकाङ्कस्यन्दनस्थां धवलकरयुगां शूर्पहस्तातिरूक्षाम् ।

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कङ्काङ्क्षुत्क्षान्त देहं मुहुरति कुटिलां वारिदाभां विचित्रां ।

ध्यायेद्धूमावतीं कुटिलितनयनां भीतिदां भीषणास्याम् ॥ १ ॥

कल्पादौ या कालिकाद्याऽचीकलन्मधुकैटभौ ।

कल्पान्ते त्रिजगत्सर्वं भजे धूमावतीमहम् ॥ २ ॥

गुणागारा गम्यगुणा या गुणागुणवर्धिनी ।

गीतावेदार्थतत्त्वज्ञैः भजे धूमावतीमहम् ॥ ३ ॥

खट्वाङ्गधारिणी खर्वखण्डिनी खलरक्षसां ।

धारिणी खेटकस्यापि भजे धूमावतीमहम् ॥ ४ ॥

घूर्ण घूर्णकराघोरा घूर्णिताक्षी घनस्वना ।

घातिनी घातकानां या भजे धूमावतीमहम् ॥ ५ ॥

चर्वन्तीमस्तिखण्डानां चण्डमुण्डविदारिणीं ।

चण्डाट्टहासिनीं देवीं भजे धूमावतीमहम् ॥ ६ ॥

छिन्नग्रीवां क्षताञ्छन्नां छिन्नमस्तास्वरूपिणीं ।

छेदिनीं दुष्टसङ्घानां भजे धूमावतीमहम् ॥ ७ ॥

जाताया याचितादेवैरसुराणां विघातिनीं ।

जल्पन्तीं बहुगर्जन्तीं भजेतां धूम्ररूपिणीम् ॥ ८ ॥

झङ्कारकारिणीं झुञ्झा झञ्झमाझमवादिनीं ।

झटित्याकर्षिणीं देवीं भजे धूमावतीमहम् ॥ ९ ॥

हेतिपटङ्कारसम्युक्तान् धनुष्टङ्कारकारिणीं ।

घोराघनघटाटोपां वन्दे धूमावतीमहम् ॥ १० ॥

ठण्ठण्ठण्ठं मनुप्रीतां ठःठःमन्त्रस्वरूपिणीं ।

ठमकाह्वगतिप्रीतां भजे धूमावतीमहम् ॥ ११ ॥

डमरू डिण्डिमारावां डाकिनीगणमण्डितां ।

डाकिनीभोगसन्तुष्टां भजे धूमावतीमहम् ॥ १२ ॥

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ढक्कानादेनसन्तुष्टां ढक्कावादनसिद्धिदां ।

ढक्कावादचलच्चित्तां भजे धूमावतीमहम् ॥ १३ ॥

तत्ववार्ता प्रियप्राणां भवपाथोधितारिणीं ।

तारस्वरूपिणीं तारां भजे धूमावतीमहम् ॥ १४ ॥

थान्थीन्थून्थेमन्त्ररूपां थैन्थोथन्थःस्वरूपिणीं ।

थकारवर्णसर्वस्वां भजे धूमावतीमहम् ॥ १५ ॥

दुर्गास्वरूपिणीदेवीं दुष्टदानवदारिणीं ।

देवदैत्यकृतध्वंसां वन्दे धूमावतीमहम् ॥ १६ ॥

ध्वान्ताकारान्धकध्वंसां मुक्तधम्मिल्लधारिणीं ।

धूमधाराप्रभां धीरां भजे धूमावतीमहम् ॥ १७ ॥

नर्तकीनटनप्रीतां नाट्यकर्मविवर्धिनीं ।

नारसिंहीं नराराध्यां न्ॐइ धूमावतीमहम् ॥ १८ ॥

पार्वतीपतिसम्पूज्यां पर्वतोपरिवासिनीं ।

पद्मारूपां पद्मपूज्यां न्ॐइ धूमावतीमहम् ॥ १९ ॥

फूत्कारसहितश्वासां फट्‍मन्त्रफलदायिनीं ।

फेत्कारिगणसंसेव्यां सेवे धूमावतीमहम् ॥ २० ॥

बलिपूज्यां बलाराध्यां बगलारूपिणीं वरां ।

ब्रह्मादिवन्दितां विद्यां वन्दे धूमावतीमहम् ॥ २१ ॥

भव्यरूपां भवाराध्यां भुवनेशीस्वरूपिणीं ।

भक्तभव्यप्रदां देवीं भजे धूमावतीमहम् ॥ २२ ॥

मायां मधुमतीं मान्यां मकरध्वजमानितां ।

मत्स्यमांसमदास्वादां मन्ये धूमावतीमहम् ॥ २३ ॥

योगयज्ञप्रसन्नास्यां योगिनीपरिसेवितां ।

यशोदां यज्ञफलदां यजेद्धूमावतीमहम् ॥ २४ ॥

रामाराध्यपदद्वन्द्वां रावणध्वंसकारिणीं ।

रमेशरमणीपूज्यामहं धूमावतीं श्रये ॥ २५ ॥

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लक्षलीलाकलालक्ष्यां लोकवन्द्यपदाम्बुजां ।

लम्बितां बीजकोशाढ्यां वन्दे धूमावतीमहम् ॥ २६ ॥

बकपूज्यपदांभोजां बकध्यानपरायणां ।

बालान्तीकारिसन्ध्येयां वन्दे धूमावतीमहम् ॥ २७ ॥

शङ्करीं शङ्करप्राणां सङ्कटध्वंसकारिणीं ।

शत्रुसंहारिणीं शुद्धां श्रये धूमावतीमहम् ॥ २८ ॥

षडाननारिसंहन्त्रीं षोडशीरूपधारिणीं ।

षड्रसास्वादिनीं स्ॐयां नेवे धूमावतीमहम् ॥ २९ ॥

सुरसेवितपादाब्जां सुरसौख्यप्रदायिनीं ।

सुन्दरीगणसंसेव्यां सेवे धूमावतीमहम् ॥ ३० ॥

हेरम्बजननीं योग्यां हास्यलास्यविहारिणीं ।

हारिणीं शत्रुसङ्घानां सेवे धूमावतीमहम् ॥ ३१ ॥

क्षीरोदतीरसंवासां क्षीरपानप्रहर्षितां ।

क्षणदेशेज्यपादाब्जां सेवे धूमावतीमहम् ॥ ३२ ॥

चतुस्त्रिम्शद्वर्णकानां प्रतिवर्णादिनामभिः ।

कृतं तु हृदयस्तोत्रं धूमावत्यास्सुसिद्धिदम् ॥ ३३ ॥

य इदं पठति स्तोत्रं पवित्रं पापनाशनं ।

स प्राप्नोति परां सिद्धं धूमावत्याः प्रसादतः ॥ ३४ ॥

पठन्नेकाग्रचित्तोयो यद्यदिच्छति मानवः ।

तत्सर्वं समवाप्नोति सत्यं सत्यं वदाम्यहम् ॥ ३५ ॥

इति धूमावतीहृदयम् ।

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