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धन्वन्तरि नवकम || Dhanwantari Navakam || Dhanwantri Navakam

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धन्वन्तरि नवकम || Dhanwantari Navakam

धन्वन्तरि को हिन्दू धर्म में देवताओं के वैद्य माना जाता है। वे महान चिकित्सक थे जिन्हें देव पद प्राप्त हुआ । हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ये भगवान विष्णु के अवतार समझे जाते हैं । इनका पृथ्वी लोक में अवतरण समुद्र मंथन के समय हुआ था । शरद पूर्णिमा को चंद्रमा, कार्तिक द्वादशी को कामधेनु गाय, त्रयोदशी को धन्वंतरी, चतुर्दशी को काली माता और अमावस्या को भगवती लक्ष्मी जी का सागर से प्रादुर्भाव हुआ था । इसीलिये दीपावली के दो दिन पूर्व धनतेरस को भगवान धन्वंतरी का जन्म धनतेरस के रूप में मनाया जाता है !! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !! यदि आप अपनी कुंडली दिखा कर परामर्श लेना चाहते हो तो या किसी समस्या से निजात पाना चाहते हो तो कॉल करके या नीचे दिए लाइव चैट ( Live Chat ) से चैट करे साथ ही साथ यदि आप जन्मकुंडली, वर्षफल, या लाल किताब कुंडली भी बनवाने हेतु भी सम्पर्क करें : 9667189678 Shri Dhanwantari Navakam By Online Specialist Astrologer Sri Hanuman Bhakt Acharya Pandit Lalit Trivedi. 

धन्वन्तरि नवकम || Dhanwantari Navakam

 

धन्वन्तरि नवकम || Dhanwantari Navakam || Dhanwantri Navakam

 

दैवासुरैर्भावगणैरजस्रं प्रमथ्यमाने जनजीविताब्धौ।

समुद्गतं नूतनकालकूटं प्रतारकं मोहनबाह्यरूपम्॥१॥

लोकस्तदासेवननष्टबोधः प्रपद्यते हन्त महाविपत्तिम्।

त्रातुं न चेष्टे बत नीलकण्ठः स्वयं कृतानर्थकदर्थितं तम्॥२॥

धन्वन्तरे श्रीभगवन् प्रसन्न- स्स्वयं सन्निधेहि द्रुतमार्तबन्धो।

पश्यात्र लोकान् विषवेगतप्तान् नितान्तरुग्णान् करणत्रयेऽपि॥३॥

केचिन्महामोहवशं प्रयाताः संशेरते देव! परेतकल्पाः।

उन्मत्तचित्ताः परितो भ्रमन्ति जगद्द्रुहश्चासुरशक्तयोऽन्ये ॥४॥

मन्दस्मिते सुन्दरशातकुम्भ- कुम्भे तथा लोलविलोचनान्ते।

नवामृतं, किञ्च करे जळूकां समाददानो भगवन्नुपेहि॥५॥

विभो समाश्वासय तावदुद्य- न्मृदुस्मितार्द्रैर्मधुरावलोकैः।

विषोग्रवेगोत्थरुजासहस्रै- र्निपीडितं विश्वमिदं कृपात्मन्॥६॥

करस्थया दिव्यजळूकयाशु लोकस्य दूरीकरु दुष्टरक्तम्।

हरे, सिराः पूरय हेमकुम्भ- निर्यत्सुधास्वादजशुद्धरक्तैः॥७॥

उल्लाघतालाभसुहृष्टचित्तो लोकः समुत्तिष्ठतु शुद्धसत्त्वः।

देवी च सम्पद्विजयं प्रयातु मानुष्यके त्वत्करुणाकटाक्षैः॥८॥

भिषग्वरैर्नित्यमुपास्यमान- पादाब्ज, धन्वन्तरिरूप, विष्णो! ।

नारायणारोग्यसुखप्रदायि- न्नपूर्ववैद्यायनमोऽस्तु तुभ्यम् ॥९॥

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