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धन्वन्तरि अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् || Dhanvantari Ashtottara Shatanama Stotram

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धन्वन्तरि अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् || Dhanvantari Ashtottara Shatanama Stotram

धन्वन्तरि को हिन्दू धर्म में देवताओं के वैद्य माना जाता है। वे महान चिकित्सक थे जिन्हें देव पद प्राप्त हुआ । हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ये भगवान विष्णु के अवतार समझे जाते हैं । इनका पृथ्वी लोक में अवतरण समुद्र मंथन के समय हुआ था । शरद पूर्णिमा को चंद्रमा, कार्तिक द्वादशी को कामधेनु गाय, त्रयोदशी को धन्वंतरी, चतुर्दशी को काली माता और अमावस्या को भगवती लक्ष्मी जी का सागर से प्रादुर्भाव हुआ था । इसीलिये दीपावली के दो दिन पूर्व धनतेरस को भगवान धन्वंतरी का जन्म धनतेरस के रूप में मनाया जाता है !! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !! यदि आप अपनी कुंडली दिखा कर परामर्श लेना चाहते हो तो या किसी समस्या से निजात पाना चाहते हो तो कॉल करके या नीचे दिए लाइव चैट ( Live Chat ) से चैट करे साथ ही साथ यदि आप जन्मकुंडली, वर्षफल, या लाल किताब कुंडली भी बनवाने हेतु भी सम्पर्क करें : 9667189678 Dhanvantari Ashtottara Shatanama Stotram By Online Specialist Astrologer Sri Hanuman Bhakt Acharya Pandit Lalit Trivedi. 

धन्वन्तरि अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् || Dhanvantari Ashtottara Shatanama Stotram

 

धन्वन्तरि अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् || Dhanvantari Ashtottara Shatanama Stotram

 

धन्वन्तरिः सुधापूर्णकलशढ्यकरो हरिः ।

जरामृतित्रस्तदेवप्रार्थनासाधकः प्रभुः ॥ १॥

निर्विकल्पो निस्समानो मन्दस्मितमुखाम्बुजः ।

आञ्जनेयप्रापिताद्रिः पार्श्वस्थविनतासुतः ॥ २॥

निमग्नमन्दरधरः कूर्मरूपी बृहत्तनुः ।

नीलकुञ्चितकेशान्तः परमाद्भुतरूपधृत् ॥ ३॥

कटाक्षवीक्षणाश्वस्तवासुकिः सिंहविक्रमः ।

स्मर्तृहृद्रोगहरणो महाविष्ण्वंशसम्भवः ॥ ४॥

प्रेक्षणीयोत्पलश्याम आयुर्वेदाधिदैवतम् ।

भेषजग्रहणानेहस्स्मरणीयपदाम्बुजः ॥ ५॥

नवयौवनसम्पन्नः किरीटान्वितमस्तकः ।

नक्रकुण्डलसंशोभिश्रवणद्वयशष्कुलिः ॥ ६॥

दीर्घपीवरदोर्दण्डः कम्बुग्रीवोऽम्बुजेक्षणः ।

चतुर्भुजः शङ्खधरश्चक्रहस्तो वरप्रदः ॥ ७॥

सुधापात्रोपरिलसदाम्रपत्रलसत्करः ।

शतपद्याढ्यहस्तश्च कस्तूरीतिलकाञ्चितः ॥ ८॥

सुकपोलस्सुनासश्च सुन्दरभ्रूलताञ्चितः ।

स्वङ्गुलीतलशोभाढ्यो गूढजत्रुर्महाहनुः ॥ ९॥

दिव्याङ्गदलसद्बाहुः केयूरपरिशोभितः ।

विचित्ररत्नखचितवलयद्वयशोभितः ॥ १०॥

समोल्लसत्सुजातांसश्चाङ्गुलीयविभूषितः ।

सुधाघन्धरसास्वादमिलद्भृङ्गमनोहरः ॥ ११॥

लक्ष्मीसमर्पितोत्फुल्लकञ्जमालालसद्गलः ।

लक्ष्मीशोभितवक्षस्को वनमालाविराजितः ॥ १२॥

नवरत्नमणीक्लृप्तहारशोभितकन्धरः ।

हीरनक्षत्रमालादिशोभारञ्जितदिङ्मुखः ॥ १३॥

विरजोऽम्बरसंवीतो विशालोराः पृथुश्रवाः ।

निम्ननाभिः सूक्ष्ममध्यः स्थूलजङ्घो निरञ्जनः ॥ १४॥

सुलक्षणपदाङ्गुष्ठः सर्वसामुद्रिकान्वितः ।

अलक्तकारक्तपादो मूर्तिमद्वाधिपूजितः ॥ १५॥

सुधार्थान्योन्यसंयुध्यद्देवदैतेयसान्त्वनः ।

कोटिमन्मथसङ्काशः सर्वावयवसुन्दरः ॥ १६॥

अमृतास्वादनोद्युक्तदेवसङ्घपरिष्टुतः ।

पुष्पवर्षणसंयुक्तगन्धर्वकुलसेवितः ॥ १७॥

शङ्खतूर्यमृदङ्गादिसुवादित्राप्सरोवृतः ।

विष्वक्सेनादियुक्पार्श्वः सनकादिमुनिस्तुतः ॥ १८॥

साश्चर्यसस्मितचतुर्मुखनेत्रसमीक्षितः ।

साशङ्कसम्भ्रमदितिदनुवंश्यसमीडितः ॥ १९॥

नमनोन्मुखदेवादिमौलीरत्नलसत्पदः ।

दिव्यतेजःपुञ्जरूपः सर्वदेवहितोत्सुकः ॥ २०॥

स्वनिर्गमक्षुब्धदुग्धवाराशिर्दुन्दुभिस्वनः ।

गन्धर्वगीतापदानश्रवणोत्कमहामनाः ॥ २१॥

निष्किञ्चनजनप्रीतो भवसम्प्राप्तरोगहृत् ।

अन्तर्हितसुधापात्रो महात्मा मायिकाग्रणीः ॥ २२॥

क्षणार्धमोहिनीरूपः सर्वस्त्रीशुभलक्षणः ।

मदमत्तेभगमनः सर्वलोकविमोहनः ॥ २३॥

स्रंसन्नीवीग्रन्थिबन्धासक्तदिव्यकराङ्गुलिः ।

रत्नदर्वीलसद्धस्तो देवदैत्यविभागकृत् ॥ २४॥

सङ्ख्यातदेवतान्यासो दैत्यदानववञ्चकः ।

देवामृतप्रदाता च परिवेषणहृष्टधीः ॥ २५॥

उन्मुखोन्मुखदैत्येन्द्रदन्तपङ्कितविभाजकः ।

पुष्पवत्सुविनिर्दिष्टराहुरक्षःशिरोहरः ॥ २६॥

राहुकेतुग्रहस्थानपश्चाद्गतिविधायकः ।

अमृतालाभनिर्विण्णयुध्यद्देवारिसूदनः ॥ २७॥

गरुत्मद्वाहनारूढः सर्वेशस्तोत्रसंयुतः ।

स्वस्वाधिकारसन्तुष्टशक्रवह्न्यादिपूजितः ॥ २८॥

मोहिनीदर्शनायातस्थाणुचित्तविमोहकः ।

शचीस्वाहादिदिक्पालपत्नीमण्डलसन्नुतः ॥ २९॥

वेदान्तवेद्यमहिमा सर्वलौकैकरक्षकः ।

राजराजप्रपूज्याङ्घ्रिः चिन्तितार्थप्रदायकः ॥ ३०॥

धन्वन्तरेर्भगवतो नाम्नामष्टोत्तरं शतम् ।

यः पठेत्सततं भक्त्या नीरोगस्सुखभाग्भवेत् ॥ ३१॥

इति बृहद्ब्रह्मानन्दोपनिषदान्तर्गतं श्रीधन्वन्तर्यष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।

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