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देवी मूर्ति रहस्यम् || Devi Murti Rahasya || Murti Rahasyam

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देवी मूर्ति रहस्यम् || Devi Murti Rahasya || Murti Rahasyam

देवी मूर्ति रहस्यम् दुर्गा सप्तशती में लिया गया हैं ! Devi Murti Rahasya में श्री दुर्गा माँ के मूर्ति रहस्य के बारे में बताया होगा ! देवी मूर्ति रहस्यम् के बारे में बताने जा रहे हैं !! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !! यदि आप अपनी कुंडली दिखा कर परामर्श लेना चाहते हो तो या किसी समस्या से निजात पाना चाहते हो तो कॉल करके या नीचे दिए लाइव चैट ( Live Chat ) से चैट करे साथ ही साथ यदि आप जन्मकुंडली, वर्षफल, या लाल किताब कुंडली भी बनवाने हेतु भी सम्पर्क करें : 9667189678 Devi Murti Rahasya By Online Specialist Astrologer Sri Hanuman Bhakt Acharya Pandit Lalit Trivedi.

देवी मूर्ति रहस्यम् || Devi Murti Rahasya || Murti Rahasyam

देवी मूर्ति रहस्यम् || Devi Murti Rahasya || Murti Rahasyam

 अथ मूर्तिरहस्यम्

ऋषिरुवाच

ॐ नन्दा भगवती नाम या भविष्यति नन्दजा।

स्तुता सा पूजिता भक्त्या वशीकुर्याज्जगत्त्रयम्॥१॥

कनकोत्तमकान्तिः सा सुकान्तिकनकाम्बरा।

देवी कनकवर्णाभा कनकोत्तमभूषणा॥२॥

कमलाङ्कुशपाशाब्जैरलंकृत चतुर्भुजा।

इन्दिरा कमला लक्ष्मीः सा श्री रुक्माम्बुजासना॥३॥

या रक्तदन्तिका नाम देवी प्रोक्ता मयानघ।

तस्याः स्वरुपं वक्ष्यामि श्रृणु सर्वभयापहम्॥४॥

रक्ताम्बरा रक्तवर्णा रक्तसर्वाङ्गभूषणा।

रक्तायुधा रक्तनेत्रा रक्त्केशातिभीषणा॥५॥

रक्ततीक्ष्णनखा रक्तदशना रक्तदन्तिका।

पतिं नारीवानुरक्ता देवी भक्तं भजेज्जनम्॥६॥

वसुधेव विशाला सा सुमेरुयुगलस्तनी।

दिर्घौ लम्बावतिस्थूलौ तावतीव मनोहरै॥७॥

कर्कशावतिकान्तौ तौ सर्वनन्दपयोनिधी।

भक्तान् सम्पाययेद्देवी सर्वकामधौ स्तनौ॥८॥

खड्‌गं पात्रं च मुसलं लाङ्गलं च बिभर्ति सा।

आख्याता रक्तचामुण्डा देवी योगेश्‍वरीति च॥९॥

अनया व्याप्तमखिलं जगत्स्थावरजङ्गमम्।

इमां यः पूजयेद्भक्त्या स व्याप्नोति चराचरम्॥१०॥

(भुक्त्वा भोगान् यथाकामं देवीसायुज्यमाप्नुयात्।)

अधीते य इमं नित्यं रक्तदन्त्या वपुःस्तवम्।

तं सा परिचरेद्देवी पतिं प्रियमिवाड्‍गंना॥११॥

शाकम्भरी नीलवर्णा नीलोत्पलविलोचना।

गम्भीरनाभिस्त्रिवलीविभूषिततनूदरी॥१२॥

सुकर्कशसमोत्तुङ्गवृत्तपीनघनस्तनी।

मुष्टिं शिलीमुखापूर्णं कमलं कमलालया॥१३॥

पुष्पल्लवमूलादिफलाढ्यं शाकसच्चयम्।

काम्यानन्तरसैर्युक्तं क्षुत्तृण्मृत्युभयापहम्॥१४॥

कार्मुकं च स्फुरत्कान्ति बिभ्रती परमेश्‍वरी।

शाकम्भरी शताक्षी सा सैव दुर्गा प्रकीर्तिता॥१५॥

विशोका दुष्टदमनी शमनी दुरितापदाम्।

उमा गौरी सती चण्डी कालिका सा च पार्वती॥१६॥

शाकम्भरीं स्तुवन् ध्यायज्जपन् सम्पूजयन्नमन्।

अक्षय्यमश्‍नुते शीघ्रमन्नपानामृतं फलम्॥१७॥

भीमापि नीलवर्णा सा दंष्ट्रादशनभासुरा।

विशाललोचना नारी वृत्तपीनपयोधरा॥१८॥

चन्द्रहासं च डमरुं शिरः पात्रं च बिभ्रती।

एकवीरा कालरात्रिः सैवोक्ता कामदा स्तुता॥१९॥

तेजोमण्डलदुर्धर्षा भ्रामरी चित्रकान्तिभृत्।

चित्रानुलेपना देवी चित्राभरणभूषिता॥२०॥

चित्रभ्रमरपाणिः सा महामारीति गीयते।

इत्येता मूर्तयो देव्या याः ख्याता वसुधाधिप॥२१॥

जगन्मातुश्‍चण्डिकायाः कीर्तिताः कामधेनवः।

इदं रहस्यं परमं न वाच्यं कस्यचित्त्वया॥२२॥

व्याख्यानं दिव्यमूर्तीनामभीष्टफलदायकम्।

तस्मात् सर वप्रयत्नेन देवीं जप निरन्तरम्॥२३॥

सप्तजन्मार्जितैर्घोरैर्ब्रह्महत्यासमैरपि।

पाठमात्रेण मन्त्राणां मुच्यते सर्वकिल्बिषैः॥२४॥

देव्या ध्यानं मया ख्यातं गुह्याद् गुह्यतरं महत्।

तस्मात् सर्वप्रयत्नेन सर्वकामफलप्रदम्॥२५॥

(एतस्यास्त्वं प्रसादेन सर्वमान्यो भविष्यसि।

सर्वरुपमयी देवी सर्वं देवीमयं जगत्।

अतोऽहं विश्र्वरुपां तां नमामि परमेश्र्वरीम्।)

॥ इति मूर्तिरहस्यं सम्पूर्णम् ॥

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