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देवी अथर्वशीर्ष || Devi Atharvashirsha || Sri Devi Atharvashirsha

Devi Atharvashirsha Ke Fayde | Devi Atharvashirsha Ke Labh | Devi Atharvashirsha Benefits | Devi Atharvashirsha Pdf | Devi Atharvashirsha Mp3 Download | Devi Atharvashirsha Lyrics | देवी अथर्वशीर्ष || Devi Atharvashirsha || Sri Devi Atharvashirsha : श्री देव्यथर्वशीर्ष को अथर्ववेद से लिया गया है अथर्ववेद में इसकी बड़ी भारी महिमा बतायी गयी है इसके जाप से देवी की कृपा इतनी शीघ्र प्राप्त होती है कि साधक आश्चर्यचकित हो उठता है। इस Devi Atharvashirsha के जाप से पांचों अथर्वशीर्ष के जाप का फल मिलता है असल में वेदों में हिन्दुओं के पांच प्रमुख देवता माने गये हैं गणेश, दुर्गा, शिव, सुर्य व विष्णु अतः इन पांचों देवताओं के अलग अलग अथर्वशीर्ष बताये गये हैं

परन्तु देवी के अथर्वशीर्ष के जाप से इन पांचों का फल प्राप्त होता है। Devi Atharvashirsha के बारे में बताने जा रहे हैं !! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !! यदि आप अपनी कुंडली दिखा कर परामर्श लेना चाहते हो तो या किसी समस्या से निजात पाना चाहते हो तो कॉल करके या नीचे दिए लाइव चैट ( Live Chat ) से चैट करे साथ ही साथ यदि आप जन्मकुंडली, वर्षफल, या लाल किताब कुंडली भी बनवाने हेतु भी सम्पर्क करें : 9667189678 Devi Atharvashirsha By Online Specialist Astrologer Acharya Pandit Lalit Trivedi.

देवी अथर्वशीर्ष के प्रयोग || Devi Atharvashirsha Ke Prayog

श्री देव्या अथर्व शीर्ष सिद्धि विधान और प्रयोग अमृतसिद्धि योग ( अश्विनी नक्षत्र युक्त मंगलवार ) के योग में देव्या अथर्व शीर्ष का पाठ करना है / इस दिन और इस योग काल में साधक स्नान करके मुहूर्त के समय देवी की प्रतिमा के सामने शुद्ध घी का दीपक जलाकर, जल का लोटा रखकर आसन पर बैठ जाये / अष्टोत्तरशत गायत्री मंत्र का जाप करे / तदुपरांत Devi Atharvashirsha के १०८ पाठ का संकल्प ले और पाठ शुरू करे / 108 पाठ से यह स्तोत्र सिद्ध हो जाता है / सिद्धि के बाद महामृत्युंजय जाप की तरह इसका भी प्रयोग विभिन्न प्रकार से किया जाता है!

देवी अथर्वशीर्ष || Devi Atharvashirsha || Sri Devi Atharvashirsha 

श्रीदेव्यथर्वशीर्षम्

ऊँ सर्वे वै देवा देवीमुपतस्थुः कासि त्वं महादेवीति ॥१॥

साब्रवीत्- अहं ब्रह्मस्वरूपिणी । मत्तः प्रकृतिपुरुषात्मकं जगत् । शून्यं चाशून्यम् च ॥२॥

अहमानन्दानानन्दौ । अहं विज्ञानाविज्ञाने । अहं ब्रह्माब्रह्मणी वेदितव्ये । अहं पञ्चभूतान्यपञ्चभूतानि । अहमखिलं जगत् ॥३॥

वेदोऽहमवेदोऽहम्। विद्याहमविद्याहम्। अजाहमनजाहम् । अधश्चोर्ध्वं च तिर्यक्चाहम् ॥४॥

अहं रुद्रेभिर्वसुभिश्चरामि । अहमादित्यैरुत विश्वदेवैः ।

अहं मित्रावरुणावुभौ बिभर्मि । अहमिन्द्राग्नी अहमश्विनावुभौ ॥५॥

अहं सोमं त्वष्टारं पूषणं भगं दधामि। अहं विष्णुमुरुक्रमं ब्रह्माणमुत प्रजापतिं दधामि ॥६॥

अहं दधामि द्रविणं हविष्मते सुप्राव्ये उ यजमानाय सुन्वते ।

अहं राष्ट्री सङ्गमनी वसूनां चिकितुषी प्रथमा यज्ञियानाम् ।

अहं सुवे पितरमस्य मूर्धन्मम योनिरप्स्वन्तः समुद्रे ।

य एवम् वेद। स देवीं सम्पदमाप्नोति ॥७॥

ते देवा अब्रुवन्-

नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः ।

नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम् ॥८॥

तामग्निवर्णां तपसा ज्वलन्तीं वैरोचनीं कर्मफलेषु जुष्टाम् ।

दुर्गां देवीं शरणं प्रपद्यामहेऽसुरान्नाशयित्र्यै ते नमः ॥९॥

देवीं वाचमजनयन्त देवास्तां विश्वरूपाः पशवो वदन्ति

सा नो मन्द्रेषमूर्जं दुहाना धेनुर्वागस्मानुप सुष्टुतैतु॥१०॥

कालरात्रीं ब्रह्मस्तुतां वैष्णवीं स्कन्दमातरम् ।

सरस्वतीमदितिं दक्षदुहितरं नमामः पावनां शिवाम् ॥११॥

महालक्ष्म्यै च विद्महे सर्वशक्त्यै च धीमहि ।

तन्नो देवी प्रचोदयात् ॥१२॥

अदितिर्ह्यजनिष्ट दक्ष या दुहिता तव

तां देवा अन्वजायन्त भद्रा अमृतबन्धवः ॥१३॥

कामो योनिः कमला वज्रपाणिर्गुहा हसा मातरिश्वाभ्रमिन्द्रः ।

पुनर्गुहा सकला मायया च पुरूच्यैषा विश्वमातादिविद्योम् ॥१४॥

एषात्मशक्तिः । एषा विश्वमोहिनी । पाशाङ्कुशधनुर्बाणधरा । एषा श्रीमहाविद्या ।

य एवं वेद स शोकं तरति ॥१५॥

नमस्ते अस्तु भगवति मातरस्मान् पाहि सर्वतः ॥१६॥

सैषाष्टौ वसवः। सैषैकादशरुद्राः । सैषा द्वादशादित्याः । सैषा विश्वेदेवाः सोमपा असोमपाश्च ।

सैषा यातुधाना असुरा रक्षांसि पिशाचा यक्षाः सिद्धाः ।

सैषा सत्त्वरजस्तमांसि । सैषा ब्रह्मविष्णुरुद्ररूपिणी। सैषा प्रजापतीन्द्रमनवः ।

सैषा ग्रहनक्षत्रज्योतींषि । कला काष्ठादिकालरूपिणी। तामहं प्रणौमि नित्यम् ।

पापहारिणीं देवीं भुक्तिमुक्तिप्रदायिनीम् ।

अनन्तां विजयां शुद्धां शरण्यां शिवदां शिवाम्॥१७॥

वियदीकारसंयुक्तं वीतिहोत्रसमन्वितम् ।

अर्धेन्दुलसितं देव्या बीजं सर्वार्थसाधकम् ॥१८॥

एवमेकाक्षरं ब्रह्म यतयः शुद्धचेतसः

ध्यायन्ति परमानन्दमया ज्ञानाम्बुराशयः ॥१९॥

वाङ्माया ब्रह्मसूस्तस्मात् षष्ठं वक्त्रसमन्वितम्

सुर्योऽवामश्रोत्रबिन्दुसंयुक्तष्टात्तृतीयकः ।

नारायणेन संमिश्रो वायुश्चाधरयुक् ततः

विच्चे नवार्णकोऽर्णः स्यान्महदानन्ददायकः ॥२०॥

हृत्पुण्डरीकमध्यस्थां प्रातः सूर्यसमप्रभां

पाशाङ्कुशधरां सौम्यां वरदाभयहस्तकाम् ।

त्रिनेत्रां रक्तवसनां भक्तकामदुघां भजे ॥२१॥

नमामि त्वां महादेवीं महाभयविनाशिनीम् ।

महादुर्गप्रशमनीं महाकारुण्यरूपिणीम् ॥२२॥

यस्याः स्वरूपं ब्रह्मादयो न जानन्ति तस्मादुच्यते अज्ञेया ।

यस्या अन्तो न लभ्यते तस्मादुच्यते अनन्ता । यस्या लक्ष्यं नोपलक्ष्यते तस्मादुच्यते अलक्ष्या ।

यस्या जननं नोपलभ्यते तस्मादुच्यते अजा । एकैव सर्वत्र वर्तते तस्मादुच्यते एका ।

एकैव विश्वरूपिणी तस्मादुच्यते नैका । अत एवोच्यते अज्ञेयानन्तालक्ष्याजैका नैकेति ॥२३॥

मन्त्राणां मातृका देवी शब्दानां ज्ञानरूपिणी ।

ज्ञानानां चिन्मयातीता शून्यानां शून्यसाक्षिणी ।

यस्याः परतरं नास्ति सैषा दुर्गा प्रकीर्तिता ॥२४॥

तां दुर्गां दुर्गमां देवीं दुराचारविघातिनीम् ।

नमामि भवभीतोऽहं संसारार्णवतारिणीम् ॥२५॥

इदमथर्वशीर्षं योऽधीते स पञ्चाथर्वशीर्षजपफलमाप्नोति ।

इदमथर्वशीर्षमज्ञात्वा योऽर्चां स्थापयति शतलक्षं प्रजप्त्वाऽपि सोऽर्चासिद्धिं न विन्दति ।

शतमष्टोत्तरं चास्य पुरश्चर्याविधिः स्मृतः ।

दशवारं पठेद्यस्तु सद्यः पापैः प्रमुच्यते ।

महादुर्गाणि तरति महादेव्याः प्रसादतः ॥२६॥

सायमधीयानो दिवसकृतं पापं नाशयति।प्रातरधीयानो रात्रिकृतं पापं नाशयति ।

सायं प्रातः प्रयुञ्जानो अपापो भवति।निशीथे तुरीयसन्ध्यायां जप्त्वा वाक्सिद्धिर्भवति ।

नूतनायां प्रतिमायां जप्त्वा देवतासान्निध्यं भवति ।

प्राणप्रतिष्ठायां जप्त्वा प्राणानां प्रतिष्ठा भवति ।

भौमाश्विन्यां महादेवीसन्निधौ जप्त्वा महामृत्युं तरति ।

स महामृत्युं तरति य एवं वेद। इत्युपनिषत् ॥२७॥

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