ब्रह्म स्तुति || Brahma Stuti || Kalidasa Krita Brahma Stuti

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ब्रह्म स्तुति || Brahma Stuti 

ब्रह्म स्तुति के रचियता कालिदास जी हैं ! ब्रह्म स्तुति भगवान श्री ब्रह्मा जी को समर्पित हैं ! ब्रह्म स्तुति का उपयोग भगवान श्री ब्रह्मा जी की पूजा अर्चना में किया जाता हैं ! ब्रह्म स्तुति के बारे में बताने जा रहे हैं !! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !! यदि आप अपनी कुंडली दिखा कर परामर्श लेना चाहते हो तो या किसी समस्या से निजात पाना चाहते हो तो कॉल करके या नीचे दिए लाइव चैट ( Live Chat ) से चैट करे साथ ही साथ यदि आप जन्मकुंडली, वर्षफल, या लाल किताब कुंडली भी बनवाने हेतु भी सम्पर्क करें : 9667189678 Brahma Stuti By Online Specialist Astrologer Sri Hanuman Bhakt Acharya Pandit Lalit Trivedi.

ब्रह्म स्तुति || Brahma Stuti 

नमस्त्रिमूर्तये तुभ्यं प्राक्सृष्टेः केवलात्मने ।

गुणत्रयविभागाय पश्चाद्भेदमुपेयुषे ॥१॥

यदमोघमपामन्तः उप्तं बीजमज त्वया ।

अतश्चराचरं विश्वं प्रभवस्तस्य गीयसे ॥२॥

तिसृभिस्त्वमवस्थाभिः महिमानमुदीरयन् ।

प्रलयस्थितिसर्गाणां एकः कारणतां गतः ॥३॥

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स्त्रीपुंसावात्मभागौ ते भिन्नमूर्त्तेः सिसृक्षया ।

प्रसूतिभाजः सर्गस्य तावेव पितरौ स्मृतौ ॥४॥

स्वकालपरिमाणेन व्यस्तरात्रिन्दिवस्य ते ।

यौ तु स्वप्नावबोधौ तौ भूतानां प्रलयोदयौ ॥५॥

जगद्योनिरयोनिस्त्वं जगदन्तो निरन्तकः।

जगदादिरनादिस्त्वं जगदीशो निरीश्वरः ॥६॥

आत्मानमात्मना वेत्सि सृजस्यात्मानमात्मना ।

आत्मना कृतिना च त्वमात्मन्येव प्रलीयसे ॥७॥

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द्रवस्संघात कठिनः स्थूलः सूक्ष्मो लघुर्गुरुः ।

व्यक्तो व्यक्ततरश्चासि प्राकाम्यं ते विभूतिषु ॥८॥

उद्घातः प्रणवो यासां न्यायैस्त्रिभिरुदीरणम् ।

कर्म यज्ञः फलं स्वर्गः तासां त्वं प्रभवो गिराम् ॥९॥

त्वामामनन्ति प्रकृतिं पुरुषार्थप्रवर्त्तिनीम् ।

तद्दर्शिनमुदासीनं त्वामेव पुरुषं विदुः ॥१०॥

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त्वं पितॄणामपि पिता देवानामपि देवता ।

परतोऽपि परश्चासि विधाता वेधसामपि ॥११॥

त्वमेव हव्यं होता च भोज्यं भोक्ता च शाश्वतः ।

वेद्यं च वेदिता चासि ध्याता ध्येयं च यत्परम् ॥१२॥

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