भक्त मनोरथसिद्धिप्रदं गणेश स्तोत्र || Bhakta Manoratha Siddhipradam Ganesha Stotram

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भक्त मनोरथसिद्धिप्रदं गणेश स्तोत्र || Bhakta Manoratha Siddhipradam Ganesha Stotram

॥ भक्तमनोरथसिद्धिप्रदं गणेशस्तोत्रम् ॥

श्री गणेशाय नमः । स्कन्द उवाच ।

नमस्ते योगरूपाय सम्प्रज्ञातशरीरिणे ।

असम्प्रज्ञातमूर्ध्ने ते तयोर्योगमयाय च ॥ १॥

वामाङ्गभ्रान्तिरूपा ते सिद्धिः सर्वप्रदा प्रभो ।

भ्रान्तिधारकरूपा वै बुद्धिस्ते दक्षिणाङ्गके ॥ २॥

मायासिद्धिस्तथा देवो मायिको बुद्धिसंज्ञितः ।

तयोर्योगे गणेशान त्वं स्थितोऽसि नमोऽस्तु ते ॥ ३॥

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जगद्रूपो गकारश्च णकारो ब्रह्मवाचकः ।

तयोर्योगे हि गणपो नाम तुभ्यं नमो नमः ॥ ४॥

चतुर्विधं जगत्सर्वं ब्रह्म तत्र तदात्मकम् ।

हस्ताश्चत्वार एवं ते चतुर्भुज नमोऽस्तु ते ॥ ५॥

स्वसंवेद्यं च यद्ब्रह्म तत्र खेलकरो भवान् ।

तेन स्वानन्दवासी त्वं स्वानन्दपतये नमः ॥ ६॥

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द्वंद्वं चरसि भक्तानां तेषां हृदि समास्थितः ।

चौरवत्तेन तेऽभूद्वै मूषको वाहनं प्रभो ॥ ७॥

जगति ब्रह्मणि स्थित्वा भोगान्भुंक्षि स्वयोगगः ।

जगद्भिर्ब्रह्मभिस्तेन चेष्टितं ज्ञायते न च ॥ ८॥

चौरवद्भोगकर्ता त्वं तेन ते वाहनं परम् ।

मूषको मूषकारूढो हेरम्बाय नमो नमः ॥ ९॥

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किं स्तौमि त्वां गणाधीश योगशान्तिधरं परम् ।

वेदादयो ययुः शान्तिमतो देवं नमाम्यहम् ॥ १०॥

इति स्तोत्रं समाकर्ण्य गणेशस्तमुवाच ह ।

वरं वृणु महाभाग दास्यामि दुर्लभं ह्यपि ॥ ११॥

त्वया कृतमिदं स्तोत्रं योगशान्तिप्रदं भवेत् ।

मयि भक्तिकरं स्कंद सर्वसिद्धिप्रदं तथा ॥ १२॥

यं यमिच्छसि तं तं वै दास्यामि स्तोत्रयंत्रितः ।

पठते शृण्वते नित्यं कार्तिकेय विशेषतः ॥ १३॥

इति श्रीमुद्गलपुराणन्तर्वर्ति गणेशस्तोत्रं समाप्तम् ।

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