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परशुराम जयंती की कथा || Parshuram Jayanti Ki Katha || Parshuram Jayanti Story
परशुराम जयंती कब आती हैं ? || Parshuram Jayanti Kab Aati Hai ?
परशुराम जयंती हिन्दू पंचांग के वैशाख माह की शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है. इसे “परशुराम द्वादशी” भी कहा जाता है. अक्षय तृतीया को परशुराम जयंती के रूप में भी मनाया जाता है. ऐसा माना जाता है कि इस दिन दिये गए पुण्य का प्रभाव कभी खत्म नहीं होता. अक्षय तृतीया से त्रेता युग का आरंभ माना जाता है. इस दिन का विशेष महत्व है.
भगवान परशुराम का इतिहास || Parshuram Jayanti Ka Itihaas
भारत में हिन्दू धर्म को मानने वाले अधिक लोग हैं. मध्य कालीन समय के बाद जब से हिन्दू धर्म का पुनुरोद्धार हुआ है, तब से परशुराम जयंती का महत्व और अधिक बढ़ गया है. इस दिन उपवास के साथ साथ सर्व ब्राह्मण का जुलूस, सत्संग भी सम्पन्न किए जाते हैं.
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परशुराम शब्द का अर्थ || Parshuram Shabd Ka Artha
परशुराम दो शब्दों से मिलकर बना हुआ है. परशु अर्थात “कुल्हाड़ी” तथा “राम”. इन दो शब्दों को मिलाने पर “कुल्हाड़ी के साथ राम” अर्थ निकलता है. जैसे राम, भगवान विष्णु के अवतार हैं, उसी प्रकार परशुराम भी विष्णु के अवतार हैं. इसलिए परशुराम को भी विष्णुजी तथा रामजी के समान शक्तिशाली माना जाता है. परशुराम के अनेक नाम हैं. इन्हें रामभद्र, भार्गव, भृगुपति, भृगुवंशी (ऋषि भृगु के वंशज), जमदग्न्य (जमदग्नि के पुत्र) के नाम से भी जाना जाता है.
कौन थे परशुराम ? || Kon The Parshuram
परशुराम ऋषि जमादग्नि तथा रेणुका के पांचवें पुत्र थे. ऋषि जमादग्नि सप्तऋषि में से एक ऋषि थे. भगवान विष्णु के 6वें अवतार के रूप में परशुराम पृथ्वी पर अवतरित हुए. परशुराम वीरता के साक्षात उदाहरण थे. हिन्दू धर्म में परशुराम के बारे में यह मान्यता है कि वे त्रेता युग एवं द्वापर युग से अमर हैं. परशुराम की त्रेता युग दौरान रामायण में तथा द्वापर युग के दौरान महाभारत में अहम भूमिका है. रामायण में सीता के स्वयंवरमें भगवान राम द्वारा शिवजी का पिनाक धनुष तोड़ने पर परशुराम सबसे अधिक क्रोधित हुए थे.
परशुराम जी का जन्म कँहा हुआ || Parshuram Ji Ka Janm Kanha Huaa
परशुराम के जन्म एवं जन्मस्थान के पीछे कई मान्यताएँ एवं अनसुलझे सवाल है. सभी की अलग अलग राय एवं अलग अलग विश्वास हैं. एक और मान्यता के अनुसार मध्यप्रदेश के इंदौर जिले के पास स्थित महू से कुछ ही दूरी पर स्थित है जानापाव की पहाड़ी पर भगवान परशुराम का जन्म हुआ था। यहां पर परशुराम के पिता ऋर्षि जमदग्नि का आश्रम था। कहते हैं कि प्रचीन काल में इंदौर के पास ही मुंडी गांव में स्थित रेणुका पर्वत पर माता रेणुका रहती थीं।
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एक और मान्यता के अनुसार रेणुका तीर्थ पर परशुराम के जन्म के पूर्व जमदग्नि एवं उनकी पत्नी रेणुका ने शिवजी की तपस्या की. उनकी तपस्या से प्रसन्न हो कर शिवजी ने वरदान दिया और स्वयं विष्णु ने रेणुका के गर्भ से जमदग्नि के पांचवें पुत्र के रूप में इस धरती पर जन्म लिया. उन्होनें अपने इस पुत्र का नाम “रामभद्र” रखा.
परशुराम के अगले जन्म के पीछे बहुत सी दिलचस्प मान्यता है. एसा माना जाता है कि वे भगवान विष्णु के दसवें अवतार में “कल्कि” के रूप में फिर एक बार पृथ्वी पर अवतरित होंगे. हिंदुओं के अनुसार यह भगवान विष्णु का धरती पर अंतिम अवतार होगा. इसी के साथ कलियुग की समाप्ति होगी.
परशुराम का परिवार एवं कुल || Parshuram Ka Pariwar Or Kul
परशुराम सप्तऋषि जमदग्नि और रेणुका के सबसे छोटे पुत्र थे. ऋषि जमदग्नि के पिता का नाम ऋषि ऋचिका तथा ऋषि ऋचिका, प्रख्यात संत भृगु के पुत्र थे. ऋषि भृगु के पिता का नाम च्यावणा था. ऋचिका ऋषि धनुर्वेद तथा युद्धकला में अत्यंत निपुण थे. अपने पूर्वजों कि तरह ऋषि जमदग्नि भी युद्ध में कुशल योद्धा थे. जमदग्नि के पांचों पुत्रों वासू, विस्वा वासू, ब्रिहुध्यनु, बृत्वकन्व तथा परशुराम में परशुराम ही सबसे कुशल एवं निपुण योद्धा एवं सभी प्रकार से युद्धकला में दक्ष थे. परशुराम भारद्वाज एवं कश्यप गोत्र के कुलगुरु भी माने जाते हैं.
भगवान परशुराम अस्त्र || Parshuram Astra
परशुराम का मुख्य अस्त्र “कुल्हाड़ी” माना जाता है. इसे फारसा, परशु भी कहा जाता है. परशुराम ब्राह्मण कुल में जन्मे तो थे, परंतु उनमे युद्ध आदि में अधिक रुचि थी. इसीलिए उनके पूर्वज च्यावणा, भृगु ने उन्हें भगवान शिव की तपस्या करने की आज्ञा दी. अपने पूर्वजों कि आज्ञा से परशुराम ने शिवजी की तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया. शिवजी ने उन्हें वरदान मांगने को कहा. तब परशुराम ने हाथ जोड़कर शिवजी की वंदना करते हुए शिवजी से दिव्य अस्त्र तथा युद्ध में निपुण होने कि कला का वर मांगा. शिवजी ने परशुराम को युद्धकला में निपुणता के लिए उन्हें तीर्थ यात्रा की आज्ञा दी. तब परशुराम ने उड़ीसा के महेन्द्रगिरी के महेंद्र पर्वत पर शिवजी की कठिन एवं घोर तपस्या की.
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उनकी इस तपस्या से एक बार फिर शिवजी प्रसन्न हुए. उन्होनें परशुराम को वरदान देते हुए कहा कि परशुराम का जन्म धरती के राक्षसों का नाश करने के लिए हुआ है. इसीलिए भगवान शिवजी ने परशुराम को, देवताओं के सभी शत्रु, दैत्य, राक्षस तथा दानवों को मारने में सक्षमता का वरदान दिया.
परशुराम युद्धकला में निपुण थे. हिन्दू धर्म में विश्वास रखने वाले ज्ञानी, पंडित कहते हैं कि धरती पर रहने वालों में परशुराम और रावण के पुत्र इंद्रजीत को ही सबसे खतरनाक, अद्वितीय और शक्तिशाली अस्त्र – ब्रह्मांड अस्त्र, वैष्णव अस्त्र तथा पशुपत अस्त्र प्राप्त थे. परशुराम शिवजी के उपासक थे. उन्होनें सबसे कठिन युद्धकला “कलारिपायट्टू” की शिक्षा शिवजी से ही प्राप्त की. शिवजी की कृपा से उन्हें कई देवताओं के दिव्य अस्त्र-शस्त्र भी प्राप्त हुए थे. “विजया” उनका धनुष कमान था, जो उन्हें शिवजी ने प्रदान किया था.
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