द्वादशाक्षर मंत्र स्तोत्र || Dwadasa Akshara Stotram || Dwadashakshara Stotram

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श्री द्वादशाक्षर मंत्र स्तोत्र || Sri Dwadasa Akshara Stotram || Sri Dwadashakshara Stotram

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श्री द्वादशाक्षर मंत्र स्तोत्र || Sri Dwadasa Akshara Stotram || Sri Dwadashakshara Stotram

ओमिति ज्ञानवस्त्रेण रागनिर्णेजनीकृतः ।

कर्मनिद्रां प्रपन्नोऽस्मि त्राहि मां मधुसूदन ॥ १ ॥

न गतिर्विद्यते चान्या त्वमेव शरणं मम ।

मायापङ्केनलिप्तोऽस्मि त्राहि मां मधुसूदन ॥ २ ॥

मोहितो मोहजालेन पुत्रदारगृहादिषु ।

तृष्णया पीड्यमानोऽस्मि त्राहि मां मधुसूदन ॥ ३ ॥

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भक्तिहीनं तु दीनं च दुःखशोकसमन्वितउ ।

अनाश्रयमनाथं च त्राहि मां मधुसूदन ॥ ४ ॥

गतागतपरिश्रान्तो दूरमध्वनि कर्मणाम् ।

संसारभयभीतोऽस्मि त्राहि मां मधुसूदन ॥ ५ ॥

वसितो मातृगर्भेषु पीडितोऽहं जनार्दन ।

गर्भवासक्षयकर त्राहि मां मधुसूदन ॥ ६ ॥

तेन देव प्रपन्नोऽस्मि सत्वाश्रयपरायण ।

जरामरणभीतोऽस्मि त्राहि मां मधुसूदन ॥ ७ ॥

वाचा तूपकृतं पापं कर्मणा यदुपार्जितम् ।

मया देव दुराचारं त्राहि मां मधुसूदन ॥ ८ ॥

सुकृतं न कृतं किञ्चित् दुष्कृतं तु सदा कृतम् ।

तेनाहं परितप्तोऽस्मि त्राहि मां मधुसूदन ॥ ९ ॥

देहान्तरसहस्रेषु कुयोनिः सेविता मया ।

तिर्यक्त्वं मानुषत्वं च त्राहि मां मधुसूदन ॥ १० ॥

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वासुदेव हृषीकेश वैकुण्ठ पुरुषोतम ।

सृष्टिसंहारकरण त्राहि मां मधुसूदन ॥ ११ ॥

यत्राहमागमिष्यामि नारी वा पुरुषोऽपि वा ।

तत्र तत्र च ते भक्तिः त्राहि मां मधुसूदन ॥ १२ ॥

द्वादशार्णवस्तुतिमिमां यः पठेच्छृणुयादपि ।

स याति परमं स्थानं यत्र योगेश्वरो हरिः ॥ १३ ॥

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