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दशावतार स्तोत्रम || Dashavatara Stotram || Dasavatara Stotra

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श्री दशावतार स्तोत्रम || Sri Dashavatara Stotram || Dasavatara Stotra

श्री दशावतार स्तोत्र भगवान श्री विष्णु जी को समर्पित हैं ! भगवान श्री विष्णु के दस अवतार माने गये हैं जिन्हें दशावतार कहते हैं । श्री दशावतार स्तोत्र में भगवान श्री विष्णु जी के सारे अवतार के बारे में बताया गया हैं ! श्री दशावतार स्तोत्र श्री मद्वेदान्तदेशिक द्वारा रचियत हैं ! श्री दशावतार स्तोत्र अष्टपदी अन्तर्गत से लिया गया हैं ! श्री दशावतार स्तोत्रम आदि के बारे में बताने जा रहे हैं !! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !! यदि आप अपनी कुंडली दिखा कर परामर्श लेना चाहते हो तो या किसी समस्या से निजात पाना चाहते हो तो कॉल करके या नीचे दिए लाइव चैट ( Live Chat ) से चैट करे साथ ही साथ यदि आप जन्मकुंडली, वर्षफल, या लाल किताब कुंडली भी बनवाने हेतु भी सम्पर्क करें : 9667189678 Sri Dashavatara Stotram By Online Specialist Astrologer Sri Hanuman Bhakt Acharya Pandit Lalit Trivedi.

श्री दशावतार स्तोत्रम || Sri Dashavatara Stotram || Dasavatara Stotra

दशावतार स्तोत्रम || Dashavatara Stotram || Dasavatara Stotra

देवो नश्शुभमातनोतु  दशधा निर्वर्तयन्भूमिकां, रङ्गे धामनि लब्धनिर्भररसैरध्यक्षितो भावुकैः ।

यद्भावेषु पृथग्विधेष्वनुगुणान्भावान् स्वयं बिभ्रती, यद्धर्मैरिह धर्मिणी विहरते नानाकृतिर्नायिका॥१॥

निर्मग्नश्रुतिजालमार्गणदशादत्तक्षणैरीक्षणै, रन्तस्तन्वदिवारविन्दगहनान्यौदन्वतीनामपाम्।

निष्प्रत्यूहतरङ्गरिङ्गणमिथःप्रत्यूढपाथच्छटा, डोलारोहसदोहलं भगवतो मात्स्यं वपुः पातु नः॥२॥

अव्यासुर्भुवनत्रयीमनिभृतं कण्डूय़नैरद्रिणा निद्राणस्य परस्य कूर्मवपुषो निःश्वासवातोर्मयः ।

यद्विक्षेपणसंस्कृतोदधिपयःप्रेङ्खोलपर्यङ्किका-नित्यारोहणनिर्वृतो विहरते देवः सहैव श्रिया॥३॥

गोपायेदनिशं जगन्ति कुहनापोत्री पवित्रीकृत-ब्रह्माण्डः प्रलयोर्मिघोषगुरुभिर्घोणारवैर्घुर्घुरैः।

यद्दंष्ट्राङ्कुरकोटिगाढघटनानिष्कंपनित्यस्थितिः ब्रह्मस्तंबमसौदसौ भगवती मुस्तेव विश्वंभरा ॥४॥

प्रत्यादिष्टपुरातनप्रहरणग्रामः क्षणं पाणिजैः पायात्त्रीणि जगन्त्यकुण्ठमहिमा वैकुण्ठकण्ठीरवः।

यद्प्रादुर्भवनादवन्ध्यजठरा यादृच्छिकाद्वेधसां या काचित्सहसा महासुरगृहस्थूणा पितामह्यभूत् ॥५॥

व्रीडाविद्धवदान्यदानवयशोनासीरधाटीभटः त्रय्यक्षं मकुटं पुनन्नवतु नस्त्रैविक्रमो विक्रमः।

यत्प्रस्तावसमुच्छ्रितध्वजपटीवृत्तान्तसिद्धान्तिभि-स्स्रोतोभिस्सुरसिन्धुरष्टसु दिशासौधेषु दोधूयते ॥६॥

क्रोधाग्निं जमदग्निपीडनभवं सन्तर्पयिष्यन्क्रमा-दक्षत्रामपि सन्ततक्ष य इमां त्रिस्सप्तकृत्वः क्षितिम्।

दत्वा कर्मणि दक्षिणां क्वचन तामास्कन्द्य सिन्धुं वस-न्नब्रह्मण्यमपाकरोतु भगवानाब्रह्मकीटं मुनिः  ॥७॥

पारावारपयोविशोषणकलापारीणकालानल-ज्वालाजालविहारहारिविशिखव्यापारघोरक्रमः।

सर्वावस्थसकृत्प्रपन्नजनतासंरक्षणैकव्रती धर्मो विग्रहवानधर्मविरतिं धन्वी स तन्वीत नः ॥८॥

फक्कत्कौरवपट्टणप्रभृतयः प्रास्तप्रलंबादयः तालाङ्कस्य तथाविधा विहृतयस्तन्वन्तु भद्राणि नः।

क्षीरं शर्करयैव याभिरपृथग्भूता प्रभूतैर्गुणैः आकौमारकमस्वदन्त जगते कृष्णस्य ता खेलय: ॥९॥

नाथायैव नमःपदं भवतु नश्चित्रैश्चरित्रक्रमै-र्भूयोभिर्भुवानान्यमूनि कुहनागोपाय गोपायते।

कालिन्दीरसिकाय कालियफणिस्फारस्फटावाटिका रङ्गोत्सङ्गविशङ्कचंक्रमधुरापर्यायचर्याय ते ॥१०॥

भाविन्या दशया भवन्निह भवध्वंसाय नः कल्पतां कल्की विष्णुयशस्सुतः कलिकथाकालुष्यकूलङ्कषः।

निश्शेषक्षतकण्टके क्षितितले धाराजलौघैर्ध्रुवं धर्म्यं कार्तयुगं प्ररोहयति यन्निस्त्रिंशधाराधर:॥११॥

इच्छामीन विहारकच्छप महापोत्रिन् यदृच्छाहरे रक्षावामन रोषराम करुणाकाकुत्स्थ हेलाहलिन् ।

क्रीडावल्लव कल्कवाहनदशा कल्किन्निति प्रत्यहं जल्पन्तः पुरुषाः पुनन्ति भुवनं पुण्यौघपण्यापणाः ॥१२॥

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