दुर्गा सप्तश्लोकी || Durga Saptashloki || Shri Durga Saptashloki

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श्रीदुर्गासप्तश्लोकी || Sri Durga Saptashloki || Durga Saptashloki

हम यंहा आपको श्रीदुर्गासप्तश्लोकी के मुख्य मुख्य श्लोक के बारे में बताने जा रहे हैं ! बताये जा रहे श्रीदुर्गासप्तश्लोकी को जाप करके आप सम्पूर्ण श्री दुर्गा सप्तशती का फ़ल पा सकते हैं ! श्रीदुर्गासप्तश्लोकी मंत्रों का जप करने से व्यक्ति को लंबे जीवन को प्रदान करता हैं, स्वास्थ्य, धन, बच्चों, आध्यात्मिक ज्ञान इत्यादि में भी लाभ पहुचंता हैं ! श्रीदुर्गासप्तश्लोकी आदि के बारे में बताने जा रहे हैं !! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !! यदि आप अपनी कुंडली दिखा कर परामर्श लेना चाहते हो तो या किसी समस्या से निजात पाना चाहते हो तो कॉल करके या नीचे दिए लाइव चैट ( Live Chat ) से चैट करे साथ ही साथ यदि आप जन्मकुंडली, वर्षफल, या लाल किताब कुंडली भी बनवाने हेतु भी सम्पर्क करें : 9667189678 Sri Durga Saptashloki By Online Specialist Astrologer Sri Hanuman Bhakt Acharya Pandit Lalit Trivedi.

श्रीदुर्गासप्तश्लोकी || Sri Durga Saptashloki

अथ सप्तश्लोकी दुर्गा

शिव उवाच

देवि त्वं भक्तसुलभे सर्वकार्यविधायिनी।

कलौ कार्यसिद्ध्यर्थमुपायं ब्रूहि यत्नतः॥

देव्युवाच

श्रृणु देव प्रवक्ष्यामि कलौ सर्वेष्ट्साधनम्।

मया तवैव स्नेहेनाप्यम्बास्तुतिः प्रकाश्यते॥

ॐ अस्य श्रीदुर्गासप्तश्लोकीस्तोत्रमन्त्रस्य नारायण ॠषिः , अनुष्टुप

छन्दः, श्रीमहाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वत्यो देवताः ,श्री दुर्गाप्रीत्यथं

सप्तश्लोकी दुर्गापाठे विनियोगः।

ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा।

बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति॥१॥

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दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः

स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।

दारिद्र्यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या

सर्वोपकारकरणाय सदाऽऽर्द्रचित्ता॥२॥

सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।

शरण्ये त्र्यंम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥३॥

शरणागतदीनार्तपरित्राणे।

सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते॥४॥

सर्वस्वरुपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते।

भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते॥५॥

रोगानशेषानपहंसि तुष्टा

रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्।

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त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां

त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्र्यन्ति॥६॥

सर्वबाधाप्रश्मनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्र्वरि।

एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम्॥७॥

॥ इति श्रीसप्तश्लोकी दुर्गा सम्पूर्णा ॥

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