श्री शंकराचार्य अष्टकम || Shri Shankaracharya Ashtakam || Shankaracharya Ashtak

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श्री शंकराचार्य अष्टकम || Shri Shankaracharya Ashtakam

श्री शंकराचार्य अष्टकम श्री शान्त्यानन्दसरस्वति द्वारा रचियत हैं ! श्री शंकराचार्य अष्टकम के बारे में बताने जा रहे हैं !! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !! यदि आप अपनी कुंडली दिखा कर परामर्श लेना चाहते हो तो या किसी समस्या से निजात पाना चाहते हो तो कॉल करके या नीचे दिए लाइव चैट ( Live Chat ) से चैट करे साथ ही साथ यदि आप जन्मकुंडली, वर्षफल, या लाल किताब कुंडली भी बनवाने हेतु भी सम्पर्क करें : 9667189678 Shri Shankaracharya Ashtakam By Online Specialist Astrologer Sri Hanuman Bhakt Acharya Pandit Lalit Trivedi.

श्री शंकराचार्य अष्टकम || Shri Shankaracharya Ashtakam

॥ श्रीशङ्कराचार्याष्टकम् ॥ श्रीगणेशाय नमः ।

अथ श्रीशङ्कराचार्याष्टकम् ।

धर्मो ब्रह्मेत्युभयविषयं ज्ञापयत्येव वेदो,

नायं लोके पुरुषमतिजः काव्यकल्पानुकल्पः ।

प्रामाण्यं च स्वयमिह भवेदित्यनूद्दिष्टवन्तं,

भाष्याचार्यं प्रणमत सदा शङ्करं न्यासिवर्यम् ॥ १॥

धर्मो नित्यं विधिविषयतो ज्ञापयत्येष वेद-,

स्तस्मिन्निष्ठा द्विविधमुदिता कामजाकामजाभ्याम् ।

काम्यं कर्म त्रिदिवभुवनायेत्यनूद्दिष्टवन्तं,

भाष्याचार्यं प्रणमत सदा शङ्करं न्यासिवर्यम् ॥ २॥

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कामापेतं भवति मनसः शोधनायात्र लोके,

तस्मान्नूनं विविदिषति ना साधनैः संयुतः सन् ।

तस्माद्धर्मं चरत मनुजा इत्यनूद्दिष्टवनतं,

भाष्याचार्यं प्रणमत सदा शङ्करं न्यासिवर्यम् ॥ ३॥

वेदो यस्मिन् विधिमुखभिदा षड्विधः शास्त्रसिद्धो,

वैधो भेदो दशहतशतं पूर्वतन्त्रे प्रसिद्धः ।

धर्माद्यर्थः प्रमितिपुरतश्चेत्यनूद्दिष्टवन्तं,

भाष्याचार्यं प्रणमत सदा शङ्करं न्यासिवर्यम् ॥ ४॥

अद्वैतार्थग्रहणपटुतां पूर्वतन्त्रानुकूलं,

शास्त्राज्ज्ञात्वा कुरुत सुधियो धर्मचर्यां यथार्थम् ।

नोचेत्कष्टं नरकगमनं चेत्यनूद्दिष्टवन्तं,

भाष्याचार्यं प्रणमत सदा शङ्करं न्यासिवर्यम् ॥ ५॥

द्वैतं मिथ्या यदि भवति चेत्प्राप्यतेऽद्वैतसिद्धि-,

स्तस्याः प्राप्त्यै प्रथममधुना साध्यते द्वैतनिष्ठम् ।

मिथ्यात्वं यच्छ्रुतिशतगतं चेत्यनूद्दिष्टवन्तं,

भाष्याचार्यं प्रणमत सदा शङ्करं न्यासिवर्यम् ॥ ६॥

नाना नेहेत्युपदिशति वाग्द्वैतमिथ्यात्वसिद्ध्यै,

द्वैतं मिथ्या परिमितिगतेर्दृश्यतः स्वप्नवत्स्यात् ।

एवंरूपा ह्यनुमितिमितिशेत्यनूद्दिष्टवन्तं,

भाष्याचार्यं प्रणमत सदा शङ्करं न्यासिवर्यम् ॥ ७॥

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एवं मिथ्या जगदिदमिति ज्ञायतां निश्चयेन,

ब्रह्माहं चेत्यलमनुभवः प्राप्यतां वेदवाक्यात् ।

शान्तो भूयात् तदनु च सुखं चेत्यनूद्दिष्टवन्तं,

शान्त्यानन्दः प्रणमति यतिः शङ्कराचार्यमूर्तिम् ॥ ८॥

शान्त्यानन्दसरस्वत्या कृतं शाङ्करमष्टकम् ।

यः पठेद्भक्तिसंयुक्तः स सर्वां सिद्धिमाप्नुयात् ॥ ९॥

इति श्रीपरमहंसपरिव्राजकाचार्यश्रीशान्त्यानन्दसरस्वतिविरचितं श्रीशङ्कराचार्याष्टकं समाप्तम् ॥

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