भवानी अष्टकम || Bhavani Ashtakam || Bhawani Ashtakam || Bhavani Ashtak

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भवानी अष्टकम || Bhavani Ashtakam || Bhawani Ashtakam

भवानी अष्टकम माँ दुर्गा देवी जी को समर्पित हैं ! भवानी अष्टकम के रचियता श्री शंकराचार्य जी ने की हैं ! भवानी अष्टकम का नियमित रूप से पाठ करने से मुत्यु के बाद स्वर्ग और मोक्ष को प्राप्त होता हैं ! भवानी अष्टकम का पाठ करने से जातक दरिद्र, जरा-जीर्ण, रोगी, अत्यन्त दुर्बल, दीन आदि परेशानी दूर हो जाती हैं ! भवानी अष्टकम के बारे में बताने जा रहे हैं !! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !! यदि आप अपनी कुंडली दिखा कर परामर्श लेना चाहते हो तो या किसी समस्या से निजात पाना चाहते हो तो कॉल करके या नीचे दिए लाइव चैट ( Live Chat ) से चैट करे साथ ही साथ यदि आप जन्मकुंडली, वर्षफल, या लाल किताब कुंडली भी बनवाने हेतु भी सम्पर्क करें : 9667189678 Bhavani Ashtakam By Online Specialist Astrologer Sri Hanuman Bhakt Acharya Pandit Lalit Trivedi.

भवानी अष्टकम || Bhavani Ashtakam || Bhawani Ashtakam

न तातो न माता न बन्धुर्न दाता न पुत्रो न पुत्री न भृत्यो न भर्ता ।

न जाया न विद्या न वृत्तिर्ममैव गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥1॥

भवाब्धावपारे महादुःखभीरु पपात प्रकामी प्रलोभी प्रमत्तः ।

कुसंसारपाशप्रबद्धः सदाहं गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥2॥

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न जानामि दानं न च ध्यानयोगं न जानामि तन्त्रं न च स्तोत्रमन्त्रम् ।

न जानामि पूजां न च न्यासयोगं गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥3॥

न जानामि पुण्यं न जानामि तीर्थ न जानामि मुक्तिं लयं वा कदाचित् ।

न जानामि भक्तिं व्रतं वापि मातर्गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥4॥

कुकर्मी कुसङ्गी कुबुद्धिः कुदासः कुलाचारहीनः कदाचारलीनः ।

कुदृष्टिः कुवाक्यप्रबन्धः सदाहं गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥5॥

प्रजेशं रमेशं महेशं सुरेशं दिनेशं निशीथेश्वरं वा कदाचित् ।

न जानामि चान्यत् सदाहं शरण्ये गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥6॥

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विवादे विषादे प्रमादे प्रवासे जले चानले पर्वते शत्रुमध्ये ।

अरण्ये शरण्ये सदा मां प्रपाहि गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥7॥

अनाथो दरिद्रो जरारोगयुक्तो महाक्षीणदीनः सदा जाड्यवक्त्रः ।

विपत्तौ प्रविष्टः प्रनष्टः सदाहं गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥8॥

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